Hindi Short Story Nark By M.Mubin

कहानी      नरक    लेखक  एम मुबीन   
तीन दिन में पता चल गया कि मगन भाई ने उसे कमरा किराये पर नहीं दिया बल्कि उसे कमरा किराए पर देने के नाम पर ठग लिया है.
अब सोचता है तो उसे स्‍वंय  आश्चर्य होता है कि इससे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई? बस कुछ देर के लिए वह उस बस्ती में आया. मगन भाई ने अपनी चाल का बंद कमरा खोलकर उसे बताया 1012 x कक्ष था. जिसके एक कोने में किचन बना हुआ था. उससे लगकर छोटा सा बाथरूम जिसे उर्फ आम में मवरी कहा जा सकता था. कमरे में एक दरवाजा था जो तंग सी गली में खुलता था. दो खिड़कियां थीं हुआ और प्रकाश का अच्छा प्रबंध था. जमीन पर रफ ला दिया था. कमरे का पलासटर जगह जगह से उखड़ गया था परंतु समेनट का था . छत पतरे की थी. गली के दोनों ओर कच्चे झोनपड़ों का सिलसिला था जो दूर तक फैला था. मध्य एक नली बह रही थी. जिससे गंदा पानी उबल कर चारों ओर फैल रहा था जिसकी बदबू से मस्तिष्‍क फटा जा रहा था. मगन भाई की वह चाल सात आठ कमरों शामिल थी. उसके मन ने फैसला किया कि उसे इस शहर में इतना अच्छा कमरा इतने कम दामों पर किराए पर नहीं मिल सकता है. इस शहर में इससे अच्छे कमरे की आशा भी नहीं रखी जा सकती थी. वह तुरंत कमरा लेने पर राजी हो गया.
दूसरे दिन उसने पच्चीस हजार रुपये मगन भाई को डपाज़ट के रूप में अदा किए. मगन भाई ने तुरंत किराया समझौते के दस्तावेज हस्ताक्षर कर उसके हवाले कर दिए. बिजली और पानी का अपनी तौर पर प्रबंध करने के बाद उसे किराए के रूप हर महीने मगन भाई केवल सौ रुपए अदा करने थे. किराए का करार पत्र केवल ग्यारह महीने के लिए था परंतु मगन भाई ने वादा किया था वह ग्यारह महीने बाद भी वह कमरा खाली नहीं कराएगा. वह जब तक चाहे इस कमरे में रह सकता है. अगर उसका कहीं दूसरी जगह इससे बेहतर प्रबंधन हो जाता है तो वह अपनी डपाज़ट की राशि वापस लेकर कमरा खाली कर सकता है.
उस शाम अपने दोस्त के घर से अपना छोटा सा सामान लेकर दोस्त और उसके घर वालों को अलविदा कहकर अपने नए घर में आ गया. दो तीन घंटे तो कमरे की सफाई में लग गए बाकी थोड़े से सामान को करीने से सजाने में . कमरे में बिजली का प्रबंध था. उसे सिर्फ बल्ब लगाने पड़े. कमरे की सफाई से वह इतना थक गया था कि उस रात वह बिना खाए पए ही सो गया. सवेरे हस्बेआदत सामान्य छह बजे के समीप  आंख खुली तो अपने आप को वह तर व ताज़ा महसूस कर रहा था.
बस्ती में पानी आया था. घर के सामने एक सरकारी नल पर औरतों की भीड़ थी. “पानी की व्यवस्था करना चाहिए.” उसने सोचा. परंतु पानी भरने के लिए कोई बर्तन नहीं था. चहलकदमी करते हुए अपने घर से थोड़ी दूर आया तो उसे एक कराने की दुकान दिखी. इस दुकान पर लटके पानी के कैन देखकर उसकी बानछें खुल गईं. कारोबार खरीद कर वह नल पर आया और नंबर लगाकर खड़ा हो गया. नल पर पानी भरती औरतें उसे अजीब नज़रों से घूर कर आपस में एक दूसरे को कुछ इशारे कर रही थीं. उसका नंबर आया तो उसने कैन भरा और अपने घर आ गया. नहा धोकर कपड़े बदले घर में नाश्ता तो बना नहीं सकता था. नाश्ता बनाने के लिए आवश्यक कोई भी वस्‍तु  नहीं थी .
किसी होटल में नाश्ता करने का सोचता हुआ वह घर से बाहर निकल आया. सोचा नाश्ता करने तक ऑफिस का समय हो जाएगा तो वह ऑफिस चला जाएगा. उस दिन वह अपने आप को बेहद चाक और चौबनद और खुश और खुर्रम महसूस कर रहा था. एक एहसास बार बार उसके भीतर एक करोटें ले रहा था कि अब वह इस शहर में बेघर नहीं है. उसका अपना एक घर तो है.
कल तक यह एहसास उसे कचौकता रहता कि उसके पास एक अच्छी नौकरी है, परंतु रहने के लिए छत नहीं है. वह दूसरों की छत के नीचे शरण लिए हुए है. और छत की शरण कभी भी उसके सिर से हट सकती है.उसे अपनी योग्यता के आधार पर इस शहर में नौकरी तो मिल गई थी. परंतु इस शहर में उसका न तो कोई रिश्तेदार था और न ननवा. उसने ड्यूटी संयुक्त तो कर ली परंतु आवास की सबसे बड़ी समस्या किसी िफ़्रीत की तरह के सामने मुंह फाड़ खड़ा था. इस समस्या का समय हल उसने एक मध्यम स्तर के होटल में एक कमरा किराए से लेकर निकाल लिया. कुछ दिनों में ही उसे लगा कि उसकी वेतन में इस होटल में केवल रह सकता है, खा पी नहीं सकता. इसलिए उसने दूसरे सहारे की खोज शुरू कर दी. उसे एक होस्टल में सिर छिपाने की जगह मिल गई. दो चार महीने उसने होस्टल में निकाले. परंतु एक दिन वह सख्त संकट  में फंस गया. एक दिन पुलिस ने उसने होस्टल में छापा मारा और होस्टल के सारे निवासियों को गिरफ्तार कर लिया. इस होस्टल से पुलिस को मादक पदार्थ मिली थीं. इस होस्टल में कुछ गैर सामाजिक तत्वों मादक का कारोबार करते थे. बड़ी मुश्किल से वह पुलिस के चंगुल से छूट पाया.
वह एक बार फिर बेघर हो गया था. वह अपने लिए किसी छत की खोज कर रहा था कि अचानक उसकी मुलाकात एक दोस्त से हो गई. वह दोस्त काफी दिनों के बाद मिला था. इस दोस्त का इस शहर में छोटा सा व्यवसाय था . उसने अपना समस्या उसके सामने रखा तो उसने बड़े प्रेम से उसे पेशकश की कि जब तक तुम्हारा कोई व्यवस्था नहीं हो जाता तुम मेरे घर में रह सकते हो. प्रबंधन होने के बाद चले जाना. उसे उस समय अपना वह मित्र एक स्वर्गदूत पता चला. वह अपने दोस्त के घर रहने लगा साथ ही साथ अपने लिए कोई कमरा ढूंढने लगा.
शहर में किराए से मकान मिलना मुश्किल था. मकान खरीदने की उसकी बूते नहीं थी. जो मकान मिलते थे उनका किराया उसकी आधी वेतन से अधिक था पर डपाज़ट की प्रभाव राशि की शर्त. कुछ दिनों बाद थक हार कर उसने सोचा उसे ऐसे क्षेत्रों में मकान खोज करना चाहिए जहां कमरों के दाम कम हूं भले ही वह क्षेत्र के स्वभाव और गुणवत्ता नहीं. उसे इससे क्या लेना देना है. उसे केवल रात में एक छत चाहिए. दिन भर तो वह ऑफिस में रहेगा.
उसे एक एस्टेट एजेंट ने मगन भाई से मिलाया. मगन भाई ने बताया कि बस्ती में उनकी चाल में एक कमरा खाली है वह पच्चीस हजार रुपये डपाज़ट पर देंगे.
ठीक है मगन भाई मैं डपाज़ट की व्यवस्था कर आप से मिलता हूँ.” कहकर वह चला आया और पैसों के प्रबंधन में लग गया. इतने पैसों का प्रबंध बहुत मुश्किल था. अपने शहर जाकर उसने दोस्तों और रिश्तेदारों से ऋण लिया और घर के गहने एक बैंक में ग्रहण रखकर ऋण लिया और पैसों का इंतजाम करके वापस आया. मगन भाई ने कमरा दिखाया उसने कमरा पसंद करके पैसे मगन भाई को दिए और रहने लगा.
शाम को जब वह जरूरी सामान से लदा अपने घर आया तो अपने घर के निकट पहुंचने पर उसके कदम ज़मीन में गुड़ गए. गली में चारों ओर पुलिस फैली हुई थी.
क्या बात है भाई! यह गली में पुलिस क्यों आया है?” उसने एक आदमी से पूछा.
होगा क्या? दारू के अड्डे पर झगड़ा हुआ उसमें चाकू चल गए और एक आदमी टपक गया.” यह कहता हुआ वह आदमी आगे बढ गया.
तो इस जगह शराब का अड्डा भी है?” सोचता हुआ वह अपने घर की तरफ बढ़ा और सामान पैरों के पास रख कर दरवाज़ा खोलने लगा. सामान घर में रख कर वह मामले की जानकारी जानने के लिए बाहर आया तो तब तक पुलिस जा चुकी थी और लाश भी ाठवाई जा चुकी थी. आसपास के लोग जमा होकर इस घटना के बारे में बातें कर रहे थे.
अभी तो पुलिस ने अड्डा बंद कर दिया है. कल फिर शुरू हो जाएगा.”
यह अड्डा है कहाँ?” उसने पूछा तो वे उसे सिर से पैर तक देखने लगे.
बाबू किस दुनिया में हो तुम जिस चाल में रहते हो इसी में तो दारू का अड्डा है.”
मेरी चाल में शराब का अड्डा?” उसने आश्चर्य से यही बात दोहराई.
हां! न केवल शराब गृह बल्कि एक जुए का अड्डा भी है. एक कमरे में मादक बिक्री होती है और अन्य दो कमरों में धंधा करने वालिआं रहती हैं.” यह सुनते ही उसकी आंखों के सामने तारे नाचने लगे. उसकी चाल में शराब, जुए और ड्रग अड्डे हैं यहां ्वायफें भी रहती हैं और अब वह उसी चाल में रह रहा है. उस दिन तो उसे केवल यह पता चला कि वह कैसी जगह रहने आया है परंतु दो चार दिनों के बाद उसे यह पता चला कि वहां रहना कितना बड़ा प्रकोप  है. लोग बे धड़क घर में घुस आते थे और तरह तरह की फरतिशें करते थे.
एक बोतल चाहिए.”
ज़रा एक अफीम की गोली देना.”
एक आतंक  की पौड़ी देना.”
यमुना बाई को बुलाना, आज उसका फुल नाइट का रेट देगा.” वह यह सब सुनकर अपना सिर पकड़ लेता और उस व्यक्ति को पकड़ कर बाहर कर देता और उसे बताता कि उसे उसकी आवश्यक वस्तु कहां मिल सकती है. इस बीच उसे पता चल गया था कि कहां कौन सा धंधा चलता है और धंधे का मालिक कौन है. दरवाज़ा खुला छोड़ना एक सिर दर्द था इसलिए उसने दरवाजे को हमेशा बंद रखने में ही खैरियत समझी. परंतु दरवाजा बंद रखना तो और भी सिर दर्द था. दरवाज़ा ज़ोर ज़ोर से पीटा जाता. जैसे अभी तोड़ दिया जाएगा. वह झल्ला कर दरवाजा खोलता तो वही प्रशन   सामने होते थे जो दरवाजा खुला होने पर ाजनब्यूं द्वारा घर में घुसकर पूछे जाते थे. वह सोचता वह अकेला है केवल रात को ीहास सोने के लिए आता है तो उसका यह हाल है. इसके बजाय वह या कोई भी शरीफ़ आदमी अपने परिवार के साथ तो एक क्षण भी नहीं रह सकता है.
यहां उसका रहना कठिन है तो भला वह अपने परिवार यहाँ लाने के बारे में कैसे सोच सकता है. हर दिन एक नई कहानी, एक नया हंगामा और एक नया घटना सामने आता था. शराबी जवारी आपस में लड़ पड़ते और यह तो एक आम सी बात थी.
एक ग्राहक यमुना बाई के घर में जाने की बजाय सामने वाले रघुवीर के घर में घुस गया और उसकी पत्नी से छेड़छाड़ करने लगा. पुलिस छापा मारने आई तो शराब का अड्डा चलाने वालों ने शराब के दो कैन वापस रहने वाले गनपत के घर में छुपा दिए पुलिस ने वह कारोबार ढूंढ निकाले. अड्डा चलाने वाले तो भाग गए परंतु बेचारा गनपत इस अपराध में पकड़ा गया.
सामने की शियामलह बाई यमुना बाई के कमरे के पास खड़ी थी पुलिस ने यमुना बाई के अड्डे पर रेड और देह के अपराध में शियामलह को पकड़ कर ले गई. वह बड़ी मुश्किल से छूट पाई.
मादक का धंधा करने वाले सईद के घर में मादक फेंक गए और पुलिस सईद के घर से ड्रग्स बरामद कर उसे उठा ले गई. ये सारे घटनाक्रम देख कर उसका दिल आतंक  के मारे दहल जाता था. वह सोचता कि हो सकता है यह घटना कल उसके साथ भी हो. गुंडे उसके कमरे में मादक फेंक जाएं या शराब रख जाएं और पुलिस उसके घर से वह चीजें बरामद कर उसे भी इसी तरह पकड़ कर ले जाए. यमुना बाई उसके कमरे के सामने खड़ी हो कर किसी ग्राहक से मोल तोल कर रही होगी और पुलिस यमुना को तो धर लेगी और उसे भी इस अपराध में गिरफ्तार कर ले जाएगा. कि वह उस जगह देह का धंधा करवाता है.
यहाँ इस छत के नीचे रहने से तो बेहतर है बेघर आसमान की खुली छत के नीचे रहा है. वहां रहते हुए मन में केवल पीड़ा  का एहसास होगा कि वह घर है परंतु छत के नीचे रहकर क्षण क्षण आतंक का बंदी  होकर तो नहीं जिए है. इन सब बातों से घबरा कर उसने एक फैसला कर लिया कि उसे यह घर छोड़ देना चाहिए. जब तक कोई दूसरा इंतजाम नहीं हो जाता भले इसे घर रहना पड़ेगा परंतु इस आतंक  और प्रकोप  से तो बचा रहेगा. वह मगन भाई के पास गया और उससे साफ कह दिया. “मेरा डपाज़ट वापस कर दीजिए. मुझे आपका कमरा नहीं चाहिए.”
अरे कैसे वापस करेगा. हमारा ग्यारह महीने का ाीगरीमेनट है इसलिए तुम ग्यारह महीने से पहले वह कमरा खाली नहीं कर सकता.”
तुम ग्यारह महीने की बात करते हो. मैं इस जगह एक पल भी नहीं रह सकता. अपनी पूरी चाल शराब, जुए, मादक और वेश्‍याओं के अड्डे चलाने वालों को किराए पर दी है और इस जगह मुझसे सज्जन को भी धोखे से किराए पर रखा. तुम्हें ऐसा ज़लील काम करते हुए शर्म आनी चाहिए. मेरे बजाय किसी शराब, जुए, मादक और देह का धंधा करने वाले को किराए पर दे देते. ”
अरे भाई! उन लोगों को मैंने कमरे किराए से कहां दिए हैं. मैंने वहां चाल बनाई थी और इस लालच में कमरे नहीं दिए थे कि मुझे ज्यादा डपाज़ट और किराया मिलेगा. वह गुंडे बदमाश लोग तालह तोड़ कर उन कमरों में घुसआए हैं और अपने काले धंधे करने लगे. मैंने एक सज्जन को एक कमरा किराए से दिया था जो कुछ दिनों पहले वहाँ के वातावरण से डर कर भाग गया. उस कमरे पर भी गुंडे कब्जा न कर लें इसलिए वह कमरा तुम्हें किराए पर दे दिया. अब तुम उसे खाली करने की बात करते हो. अरे बाबा जाओ वह कमरा मैंने तुम्हें दे दिया. हमेशा के लिए दे दिया. मुझे किराया भी मत दो. तुम वह कमरा छोड़ दोगे और मैं तुम्हें डपाज़ट वापस कर दूंगा तो उस कमरे पर कोई गुंडा कब्जा कर लेगा. मगन भाई की बात सुनकर उसका गुस्सा ठंडा हुआ. उसे लगा मगन भाई तो अधिक मज़लूम है. “मगन भाई!गुंडो ने तुम्हारी पूरी चाल पर कब्जा कर लिया और तुमने पुलिस में शिकायत भी नहीं की? ”
शिकायत करके क्या मुझे अपने जीवन गुणवान है. वह सब गुंडे लोग हैं उनके मुंह कौन लगेगा. पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती. पुलिस उनसे मिली हुई है. शिकायत पर थोड़ी देर के लिए उन्हें अंदर करेगी वहफिर स्वतंत्र होकर मेरी जान के दुश्मन बन जायेंगे. इसलिए मैंने यह सोच लिया कि वह मेरी चाल है ही नहीं. यह समझ लिया कि मुझे व्यापार में घाटा हो गया. देखो अगर तुम वहां रहना नहीं चाहते तो किसी से भी डपाज़ट की राशि डपाज़ट के रूप में लेकर वह कमरा उसे दे दो. मुझे कोई आपत्ति नहीं होगा. मैं उसे भी बना किराए का करार पत्र बनाकर दे दूंगा. “मगन भाई की बातें सुनकर वह चुपचाप वापस आ गया.
उस रात उसे रात भर नींद नहीं आई. उसके सामने एक ही प्रशन   था. वह वहां रहे या चला जाए? फिलहाल तो ऐसी स्थिति थी. वह उस जगह से कहीं जा नहीं सकता था. वहां रहना एक प्रकोप  था. परंतु इतना भी बज़दल डरिपोक नहीं था कि इस प्रकोप  से डर कर भाग की राह ले ले. हर प्रकार की स्थिति का सामना करने के लिए उसने स्‍वंय  को तैयार कर लिया था. उसे केवल रात में ही तो मानसिक करबों को झेलना पड़ता था. दिन में तो वह ऑफिस में रहता था. दिन में वहां क्या होता है या जो कुछ होता था उन सबबातों के सामने वह नहीं होता था. परंतु रात घर आने पर दिन में जो कुछ होता था वह सारी कहानी उसे मालूम पड़ जाती थी.
दो शराब्यूं ने ऊषा को छेड़ा, एक गुंडे ने अशोक की पत्नी लक्ष्मी की इज्जत लूटने की कोशिश की. गुंडो में जमकर मारपीट हुई तो कई घायल हुए और पूरा कमरा ध्वस्त हो गया. आज गुंडो के टकराव में पिस्तौल चल पड़ी, गोली कोई गुंडा तो घायल नहीं हुआ परंतु सामने रहने वाले लक्ष्मण के दस वर्षीय लड़के को गोली लग गई उसे अस्पताल ले जाया गया अब उसकी हालत बहुत नाजुक है.
जो लोग उसे यह कहानियां सुनाते वह उन पर बरस पड़ता था. “कब तक तुम लोग यह सब सहन करते रहोगे. तुम लोग शरीफ हो. यह मुहल्ला शरीफों का है और गुंडो ने इस मुहल्ले पर कब्जा कर उसे शरीफों के रहने के योग्य नहीं रखा. अगर तुम चुप रहे और चुपचाप सब सहन करते रहे तो तुम लोगों के साथ भी यही होगा और हमेशा होता रहेगा. अगर इससे मुक्ति  हासिल करनी हो तो उसके विरोध करो. गुण्डों बदमाशों के विरूध  एकजुट हो जाओ और जो कुछ यहां हो रहा है उसके विरुद्ध पुलिस में शिकायत करो. तुम्हारी शिकायत पर पुलिस को कार्रवाई करनी ही पड़ेगी और यह सब कुछ रुक जाएगा. ”
निश्चित भाई! हम यह नहीं कर सकते.” उसकी बातें सुनकर वह सहम गए. “यदि हमने ऐसा किया तो संभव है पुलिस कार्रवाई करे. परंतु वह अधिक दिनों तक गुण्डों को लॉक अप में नहीं रख सकेगी. शिकायत करने पर वे हमारे दुश्मन हो जाएंगे. और स्वतंत्र होते ही हमसे बदला जरूर लेंगे. इसलिए हम सोचते हैं गुण्डों से क्या उलझा जाए. जो कुछ हो रहा है चुपचाप सहन करने में ही खैरियत है. ”
यही तो आप लोगों की कमजोरी है. विरोध की हिम्मत और साहस नहीं है जिससे गुंडो का साहस बढ़ती जाती है. विरोध नहीं कर सकते, सब कुछ ग़लत बात सहन  कर सकते हैं?” वह गुस्से से बोला. “यदि मेरे साथ दिन भी ऐसा कुछ हुआ तो मैं बिल्कुल सहन  नहीं करूंगा. जो मेरे साथ ऐसी वैसी हरकत करेगा उसे मजा चखा दूंगा. “दूसरे दिन वह शाम को ऑफिस से आया तो उसे चार पांच आदमियों ने घेर लिया. उनकी स्थिति और रूप ही ज़ाहिर कर रही थी कि गुंडे हैं.
ऐ बाबू! क्यों बहुत नेता बनने की कोशिश कर रहा है? हम लोगों के विरूध  बस्ती वालों को भड़का रहा है. तो नया नया है इसलिए तुझे हमारी ताकत का अंदाज़ा नहीं है. ये लोग पुराने हैं इसलिए इन लोगों को हमारी ताक़त पता है. इसलिए यह कभी हमसे नहीं ालझें हैं. अगर यहां रहना है तो खैरियत इसी में है कि तुम भी पुराने बन जाओ. हमारी ताकत जान जाओ और हमसे मत उलझ. जैसा चल रहा है चलने दो, जो कुछ हो रहा वह होने दो. “एक गुंडा उसे घूर हुआ बोला.
दादा! यह बातों से नहीं माने हैं. एक दो हड्डी पसली टूटे तो सारी नेता भूल जाएगा. उसे अब मजा चखा है.” एक गुंडे ने यह कहते हुए अपनी हॉकी ास्टिक हवा में लहराई.
नहीं आज के लिए इतनी चेतावनी काफ़ी है.” इस गुंडे ने हाकी को रोक दिया. “इसके बाद उसने होशियारी की तो मेरी ओर से और दो चार हड्डियां तोड़ देना.” यह कहता हुआ वह सब को लेकर चल दिया.
वह सन्नाटे में आ गया. उसका सारा शरीर पसीने में सराबोर हो गया. उसे ऐसा लग रहा था जैसे कई हाकी ास्टिक उसके शरीर से टकराई हैं. और उसका शरीर दर्द का फोड़ा बना हुआ है. उसे रात भर नींद नहीं आई. आंखों के सामने गुंडो के चेहरे घूमते और कानों में उनकी चेतावनी गूंजती रही. यदि आज वह गुंडे हाथ ाठादीते तो वह कैसे उनसे अपना बचाव कर पाता?
उसके मन में एक ही बात चकरा रही थी. जो आज टल गया वह कल भी हो सकता है. इससे बचने का एक ही तरीका है. चुपचाप आंखे बंद करके वह यहां रहे और जो कुछ हो रहा है उससे ला संबंध बन जाए तो उसे कभी कोई खतरा नहीं होगा. परंतु वहां रहना भी किसी नरक में रहने से कम नहीं था.
आए दिन गुंडो के झगड़े, फसाद, शराबी, नशा बल्लेबाज, जवारी और बदुकार लोगों का धड़क घर में घुस आना या अभद्र व्यवहार दरवाजा पीटना, पुलिस के रेड अलर्ट, रेट में गुंडे बदमाशों का तो निकल भागनाऔर  शरीफों का पकड़ा जाना. बात बात पर चाकू छरयों का चलना, आस पास रहने वालों की पत्नियों, माउं, बहनों से गुण्डों और वहां आने वालों की बदतमीज़याँ.
वह सोचने लगा कि किसी को यह कमरा डपाज़ट पर देकर उससे अपनी राशि लेकर इस नरक से निकल जाए. परंतु फिर सोचता कि वह अकेला इस नरक में रह सकता है, परंतु कोई शरीफ़ बाल बच्चे और परिवार वाले व्यक्ति को इस नरक में डालना क्या उचित है? उसका ज़मीर इस बात के लिए राजी नहीं हो पाता था और उसे इस नरक में रहने के लिए स्‍वंय  से समझौता करना पड़ा.
 
अप्रकाशित
मौलिक
————————समाप्‍त——————————–पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

Hindi Short Story Sherni By M.Mubin

कहानी     शेरनी   लेखक  एम मुबीन   
ख वह घर से निकली तो नौ बज रहे थे. तेज लोकल ट्रेन तो मिलने से रही, धीमी लोकल से ही जाना पड़ेगा. वह भी समय पर मिल गई तो ठीक. वरना यह तय है कि आज फिर वह देरी से ऑफिस पहुँचेगी. और लेट कार्यालय आने का मतलब? इस विचार से ही उसके माथे पर बल पड गए और भवें तन गईं. आँखों के सामने बॉस का चेहरा घूम गया. और कानों में उसकी गरजदार आवाज सुनाई दी.
श्रीमती महातरे! आप आज फिर लेट आई हैं. मेरे बार बार ताकीद करने पर भी रोजाना लेट आती हैं. आपकी इस डुट्टाई पर मुझे गुस्सा आता है. आपको शर्म आनी चाहिए. बार बार ताकीद करने पर भी आप वही हरकत करती हैं . आज के बाद मैं आफ साथ कोई रियायत नहीं करूंगा.
कोई उससे तेजी से टकराया और उसके विचारों का क्रम टूट गया था. वह सड़क पर थी. भीड़ और यातायात भरी सडक उसे पार करनी थी. इसलिए होश में रहना बहुत जरूरी था. गायब मस्तिष्‍क रहते हुए सड़क पार करने की कोशिश में कोई भी हादसा हो सकता था. जो उससे टकराया वह तो कहीं दूर चला गया था परंतु इसके टकराने से उस पर गुस्सा नहीं आया था.
अच्छा हुआ वह उससे टकरा गई. उसके विचारों का सिलसिला तो टूट गया और वह होश की दुनिया में वापस आ गई. वरना तनाव में अपने इन्हीं विचारों में खोई रहती और बेख़याली में सड़क पार करने की कोशिश में किसी दुर्घटना का शिकार हो जाती. उसने चारों ओर चौकन्ना होकर देखा. सड़क के दोनों ओर गाडयाँ इतनी दूर थी कि वह आसानी से सडक पार कर सकती थी.
सिग्नल तक रुकने का अर्थ था स्वयं को दो चार मिनट लेट करना. विचार आते ही उसने सडक पार करने का फैसला कर लिया और दौडती हुई सडक की दूसरी ओर पहुँच गई. दोनों तरफ से आने वाली गाडयाँ उसके काफी समीप हो गई थीं. ज़रा सी देरी या सस्ती किसी दुर्घटना का कारण बन सकती थी. परंतु उसने अपने आप को पूरी तरह इसके लिए तैयार कर लिया था. कोई दुर्घटना हो इस बात का पूरा ध्यान रखा था. सड़क पार कर वह तंग सी गली में प्रवेश किया. जिसको पार करने के बाद रेलवे स्टेशन की सीमा आरम्भ होती थी. गली में कदम रखते ही उसके हृदय की धडकनें तेज हो गईं. साँसें फूलने लगीं और माथे पर पसीने की बूँदें उभर आईं. उसने हाथ में पकड़े रूमाल से माथे पर आई पसीने की बूँदें साफ कीं और फूली हुई साँसों पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगी. परन्तु उसे पता था न फूली हुई साँसों पर नियन्त्रण पा सकेगी ना दिल की धड़कने की गति सामान्य कर सकेगी.
मस्तिष्क में खोटा का विचार जो आ गया था. उसे पूरा विश्वास था. गली के बीच उस पान की दुकान के पास वह कुर्सी लगाकर बैठा होगा. उसे आता देख भद्दे अंदाज में वाक्य मुस्कुराए है और उस पर कोई गंदा वाक्यांश किसे है. खोटा की यह दिनचर्या थी. सुबह शाम वह उसी जगह उसकी राह देखता था. उसे पता था सवेरे वह कब ऑफिस  जाती है और शाम को ऑफिस  से घर लौटती है. उसके आने जाने का रास्ता वही है. रेलवे स्टेशन जाने और रेलवे स्टेशन से घर जाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है. एक है भी तो वह इतना लम्बा रास्ता है कि उस रास्ते से जाने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है. इसलिए खोटा उसी रास्ते पर बैठा उसकी राह देखता रहता है और उसे देखते ही कोई भद्दा सा वाक्य हवा में उछाला था.
हाय डारलनग! बहुत अच्छी लग रही हो. यह कार्यालय, नौकरी वोकरी छोड़ो. मुझे खुश कर दिया करो. हर महीने इतने पैसे दिया करूँगा जो नौकरी से चार महिनों में भी नहीं मिलते होंगे. आओ आज किसी होटल में चलते हैं. चलती आज शेरेटन होटल में पहले ही से अपना एक कमरा बुक है. नौकरी करते हुए जन्दगी भर शेरेटन होटल का दरवाजा भी नहीं देख पाओगी. आज हमारे साथ उसमें दिन गुजार कर देख लो. ”
खोटा के हर वाक्य के साथ उसे अनुभव होता एक भाला आकर उसके मन में चुभ गया है. हृदय की धडकनें तेज हो जाती थीं और आँखों के सामने अंधेरा छाने लगता था. तेज चलने की कोशिश में कदम लड़खड़ाने लगते थे.परंतु वह जान तोड़ कोशिश कर के तेज क़दमों से खोटा की नज़रों से दूर हो जाने की कोशिश करती थी.
खोटा उस क्षेत्र का माना हुआ गुण्डा था. उससे क्षेत्र का बच्चा बच्चा उससे परिचित था. शराब, जुए, वेश्याओं के अड्डे चलाना, सप्ताह वसूली, सुपारी वसूली, अपहरण, हत्या और मारपीट आदि. लिए कि ऐसा कोई काम नहीं था जो वह नहीं करता था या इस तरह के मामलों में शामिल नहीं था. वह जो चाहता था कर जाता था कभी पुलिस की पकड़ में नहीं आता था. अगर किसी मामले में फँस भी गया तो उसके प्रभाव के कारण पुलिस को उसे दोदिनों में ही छोडना पडता था.
उस खोटा का दिल उस पर आ गया था. उसे माया महातरे पर एक छोटे से निजी कार्यालय में काम करने वाली एक बच्चे की माँ पर पहले तो खोटा उसे सिर्फ घूरा करता था. फिर जब उसके आने जाने का समय और रास्ता मालूम हो गया तो वह प्रतिदिन उसे उस रास्ते पर मिलने लगा.
रोज उसे देखकर मुस्कराता और उस पर गंदे वाक्यांश की बारिश करने लगता. खोटा की हरकतों से वह आतंकित सी हो गई थी. उसे यह अनुमान तो हो गया था खोटा के मन में क्या है. और उसे पूरा विश्वास था कि उसके मन में है खोटा उसे एक दिन पूरा करके ही रहेगा. इस कल्पना से ही वह काँप उठती थी. यदि खोटा ने अपने मन की मुराद पूरी कर डाली, या पूरी करने की कोशिश की तो? इस कल्पना से ही उसकी जान निकल जाती थी.
नहीं! नहीं! ऐसा नहीं हो सकता. यदि खोटा ने मेरे साथ ऐसा कुछ किया तो मैं किसी को मुँह दिखाने के योग्य नहीं रहूँगी. में जीवित नहीं रह पैर है.” उसे यह पता था कि वह इतनी सुन्दर है कि खोटा जैसे लोग उसे देखकर बहक सकते हैं. दूसरे हजार लोग उसे देखकर ऐसा कोई विचार अपने मन में लाते तो उसे कोई परवाह नहीं थी क्योंकि उसे विश्वास था कि वह कभी इस विचार को पूरा करने का साहस नहीं कर पाएंगे.
परन्तु खोटा? हे भगवान! जो सोच ले दुनिया की कोई भी शक्ति उसे अपने सोचे हुए काम को रोकने की कोशिश नहीं कर सकती थी. वह आते जाते खोटा की कल्पना से आतंकित रहती थी. और उस दिन तो खोटा ने सीमा कर दी. ना केवल उसका रास्ता रोक कर खड़ा हो गया था बल्कि उसकी कलाई भी पकड ली.
बहुत ाकड़ती हो. अपने आप को क्या समझती हो. तुम्हें पता नहीं तुम्हारा पाला खोटा से पड़ा है. ऐसी अकड निकालूँगा कि जन्दगी भर याद रखो है. सारी अकड़ निकल जाएगी.”
छोड़ दो मुझे.” उसकी आँखों में भय से आँसू आ गए. और वह खोटा के हाथों से अपनी कलाई छुडाने का प्रयत्न करने लगी. परन्तु वह किसी शेर के चंगुल में फँसी हिरनी सी स्वयं को अनुभव कर रही थी. खोटा भयानकअंदाज में हँस रहा था और वह उसके हाथों से अपनी कलाई छुडाने का प्रयत्न करती रही. इस दृश्य को देखकर एक दो रास्ता चलने वाले रुक गए. परन्तु खोटा पर नजर पडते ही वे तेजी से आगे बढ़ गए. दानवी हँसी हँसता हुआखोटा, उसकी विवशता से आनन्दित हो रहा था. फिर हँसते हुए उसने धीरे से उसका हाथ छोड़ दिया. वह रोती हुई आगे बढ गई. खोटा का दानवी अट्टाहास उसका पीछा करता रहा. वह रोती हुई स्टेशन आई और लोकल ट्रेन में बैठ सिसकती रही. उसे रोता देखकर आसपास के यात्री उसे आश्चर्य से देख रहे थे.
ऑफिस पहुँचने तक रो रोकर उसकी आँखें सूज गई थीं. उसमें आया परिवर्तन ऑफिस वालों से छिप ना सका. उसे ऑफिस की सहेलियों ने घेर लिया.
क्या बात है माया, यह तुम्हारा चेहरा क्यों सूजा हुआ है आँखें क्यों लाल हैं?” उसने कोई उत्‍तर  नहीं दिया और उनसे लिपटकर दहाडे मार मार कर रोने लगी. वह सब भी घबरा गई और उसे सांत्वना देते हुए चुप कराने की कोशिश करने लगीं. बड़ी मुश्किल से उसके आँसू रुके और उसने पूरी कहानी उन्हें सुना दी. इससे पहले भी वह कई बार उन्हें खोटा की हरकतों के बारे में बता चुकी थी परंतु उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया था.
नौकरी करने वाली स्त्रियों के साथ तो यह सब होता ही रहता है. मेरा स्वयं का एक प्रेमी है जो अंधेरी से चर्नी रोड तक मेरा पीछा करता है.”
मेरे भी एक आशिक साहब हैं. सवेरे शाम मेरे मोहल्ले के नुक्कड पर मेरा इंतजार करते रहते हैं.”
और मेरे आशिक साहब तो ऑफिस के गिर्द मंडराते रहते हैं. आओ बताती हूँ सडक पर खडे कार्यालय की ओर टकटकी लगाए देख रहे होंगे.”
अगर खोटा तुम पर आशिक हो गया है तो यह कोई चिन्ता की बात नहीं है. तुम कुछ ही ऐसी हो कि तुम्हारे तो सौ दो सौ प्रेमी हो सकते हैं.” उनकी बातें सुनकर वह झुंझला जाती.
तुम लोगों को मजाक सूझा है और मेरी जान पर बनी है. खोटा एक गुण्डा है, बदमाश है. वह ऐसा सब कुछ कर सकता है जिसकी कल्पना भी तुम्हारे प्रेमी लोग नहीं कर सकते. परन्तु उस दिन की खोटा की यह हरकत सुनकर सब सन्नाटे में आ गई थीं.
क्या तुमने इस बारे में अपने पति को बताया?”
नहीं आज तक कुछ नहीं बताया. सोचती थी कोई हंगामा ना खडा हो जाए.”
तो अब पहली फुरसत में उसे सब कुछ बता दो..”
उस शाम वह सामान्य रास्ते से नहीं लंबे रास्ते से घर गई. और विनोद को सब कुछ बता दिया कि खोटा इतने दिनों से उसके साथ क्या कर रहा था और आज उसने क्या हरकत की. उसकी बातें सुनकर विनोद का चेहरा तनगया.
ठीक है! फिलहाल तो तुम एक दो दिन ऑफिस  मत जाओ. उसके बाद सोचेंगे क्या करना है. उसके बाद वह तीन दिन ऑफिस  नहीं गई. एक दिन वह बालकनी में खडी थी. अचानक उसकी नजर नीचे गई और उसका दिल धक से रह गया. खोटा नीचे खडा उसकी बालकनी को घूर रहा था. उससे नजर मिलते ही वह दानवी अंदाज में मुस्कराने लगा. वह तेजी से भीतर आ गई.
रात विनोद घर आया तो उसने आज की घटना बताई. इस घटना को सुन कर उसने अपने हूंठ भींच लिए. दूसरे दिन ऑफिस  जाना बहुत जरूरी था. इतने दिनों तक वह सूचना दिए बिना ऑफिस से गायब नहीं रह सकती थी.
आज मैं तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने आऊँगा.” विनोद ने कहा तो उसकी हिम्मत बँधी. विनोद उसे स्टेशन तक छोड़ने आया. जब वह गली से गुजरे तो पान स्टाल के पास खोटा मौजूद था.
क्यों जानेमन! आज बॉडीगार्ड साथ लाई हो. तुम्हें अच्छी तरह मालूम है कि इस तरह के सौ बॉडीगार्ड मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते.” पीछे से आवाज आई तो उस आवाज को सुनकर जोश में विनोद मड़ा परंतु उसने उसे थामलिया.
नहीं विनोद, यह गुण्डों से उलझने का समय नहीं है.” और वह विनोद को लगभग खींचती स्टेशन की ओर बढ गई. फिर शाम वापसी के लिए उसने लम्बा रास्ता अपनाया. परन्तु उसकी कॉलोनी के गेट के पास पहुँचते ही उसका मन धक से रह गया.
खोटा गेट पर उसकी राह था.
मुझे अनुमान था कि तुम वापस उस रास्ते से नहीं आओ है. इसलिए तुम्हारी कॉलोनी के गेट पर तुम्हें सलाम करने आया हूं. काश तुम मुझसे फरार हासिल कर सको.” यह कहते हुए खोटा उसे सलाम करता आगे बढ गया. रात विनोद को उसने सारी कहानी सुनाई, तो विनोद बोला. “कल यदि खोटा ने तुम्हें छेडा तो हम उसके विरुद्ध पुलिस में शिकायत करेंगे.”
दूसरे दिन विनोद उसे छोडने के लिए आया तो खोटा से फिर आमना सामना हो गया. खोटी की गंदी बातें विनोद सहन नहीं कर सका और उससे उलझ गया. विनोद ने एक मुक्का खोटा को मारा. उत्तर में खोटा ने विनोद के मुँह पर ऐसा वार कि उसके मुंह से खून बहने लगा.
बाबू! खोटा से अच्छे अच्छे तीसमारखाँ नहीं जीत सके तो तुम्हारी हैसियत ही क्या है?” घायल विनोद ने ऑफिस  जाने के बजाय पुलिस स्टेशन जाकर खोटा के विरुद्ध शिकायत करना जरूरी समझा. थाना प्रमुख ने सारी बातें सुनकर कहा. ” ठीक है हम आपकी शिकायत लिख लेते हैं. परन्तु हम खोटा के विरुद्ध ना तो कोई सख्त कार्यवाही कर पाएँगे और ना कोई मजबूत केस बना पाएँगे. क्योंकि कुछ घंटों में खोटा छूट जाएगा और सम्भव है छूटने के बाद खोटा तुम से इस बात का बदला भी ले. वैसे आप डरेये नहीं हम खोटा को उसके किए की सजा जरूर देंगे. ”
पुलिस स्टेशन से भी उन्हें निराशा ही मिली. उस दिन दोनों ऑफिस  नहीं गए. तनाव में बिना एक दूसरे से बात किए घर में ही टहलते रहे. शाम को उसने पुलिस स्टेशन फोन लगाकर अपनी शिकायत पर की जाने वाली कार्यवाही के बारे में पूछा .
श्री विनोद!” थाना प्रभारी ने कहा. आपकी शिकायत पर हमने खोटा को स्टेशन बुलाकर ताकीद की है. यदि उसने दोबारा आपकी पत्नी को छेडा, आपसे उलझने की कोशिश की तो उसे अन्दर डाल देंगे. अन्य दिन दोनों साथ ऑफिस जाने के लिए रवाना हुए. निर्धारित स्थान पर फिर खोटा से सामना हो गया.
वाह बाबू वाह! तेरी तो बहुत पहुँच है. खोटा से भी ज्यादा तेरी एक शिकायत पर पुलिस ने खोटा को बुलाकर ताकीद की और सिर्फ ताकीद की है ना? अब की बात खोटा ऐसा कुछ करेगा कि पुलिस को तुम्हारी शिकायत पर खोटा के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी ही पड़ेगी. ”
खोटा! हम शरीफ लोग हैं हमारी इज्जत हमें अपनी जान से ज्यादा प्यारी है और उस इज्जत की रक्षा के लिए हम अपनी जान भी दे सकते हैं और किसी की जान ले भी सकते हैं. इसीलिए भलाई इसी में है कि हम शरीफ लोगों को परेशान मत करो. तुम्हारे लिए और भी हजारों औरतें दुनिया में हैं. तुम कीमत अदा करके मन चाही औरत को प्राप्त कर सकते हो. फिर क्यों मेरी पत्नी के पीछे पडे हो? ”
मुश्किल यही है बाबू! खोटा का दिल जिस पर आया है वह उसे पैसों के बल पर नहीं मिल सकती. उसकी शक्ति के बल पर ही मिल सकती है.”
कमीने! मेरी पत्नी की ओर आँख भी उठाई तो मैं तेरी जान ले लूँगा.” यह कहते हुए विनोद खोटा पर झपटा और उस पर बेतहाशा घूँसे बरसाने लगा. हक्का बक्का खोटा विनोद के वार से स्वयं को बचाने की कोशिश करने लगा . अचानक रास्ता चलते कुछ लोगों ने विनोद को पकड़ लिया, कुछ ने खोटा को. और वह किसी तरह विनोद को ऑफिस  जाने के बजाए घर ले जाने में सफल हो गई. खोटा से विनोद के टकराव ने उसे आतंकित कर दिया था. उसे विश्वास था कि खोटा इस अपमान का बदला जरूर लेगा. और किस तरह लेगा इस कल्पना से ही वह काँप जाती थी. वह विनोद को बहलाती रही.
खोटा को तुमने ऐसा सबक सिखाया है कि आज के बाद तो ना वह तुमसे उलझेगा ना मेरी ओर आँख उठाने का साहस करेगा. तुमने जो कदम उठाया वह बहुत सही था.” यूँ वह विनोद को बहला रही थी परन्तु भीतर ही भीतर काँप रही थी कि खोटा जरूर इसका बदला लेगा. अगर उसने विनोद को कुछ किया तो?
नहीं! नहीं! विनोद को कुछ नहीं होना चाहिए विनोद मेरा जीवन है. यदि उसके शरीर पर एक खराश भी आई तो मैं जन्दा नहीं रहूँगी. उसे ऐसा महसूस हो रहा था उसके कारण यह युद्ध छिडा है. इस युद्ध का अंत दोनों पक्षों का अंत है. इसके अलावा कुछ और निकल भी नहीं सकता. भलाई इसी में है कि दोनों पक्षों के बीच संधि करा दी जाए. ताकि युद्ध की नौबत ही न आए. परन्तु वह संधि किस प्रकार सम्भव थी. खोटा बदले की आग में झुलस रहा होगा और जब तक बदले की यह आग नहीं बुझेगी उसे चैन नहीं आएगा. उसे खोटा एक अजगर अनुभव हो रहा था. जो उसके सामने खडा उसे निगलने के लिए अपनी जीभ बार बार लपलपाता और फनकार रहा था. उस अजगर से उसे अपनी रक्षा करनी थी. दूसरे दिन वह ऑफिस  जाने लगी तो पान पर खोटा का सामना हो गया. वह क्रोध भरी दृष्टि से उसे घूर रहा था. उसने मुस्कराकर देखा और आगे बढ़ गई. उसे मुस्कराता देखकर खोटा आश्चर्य से उसे आँखें फाड़ फाड़ कर देखता रह गया.
एक दिन फिर वह ऑफिस  जाने लगी तो मुस्कराता हुआ खोटा उसका रास्ता रोककर खड़ा हो गया. उसकी आंखों में एक चमक थी.
मेरा रास्ता छोड़ दो.” वह क्रोध भरी दृष्टि से उसे घूर हुई क्रोध से बोली.
जानम अब तो हमारे तुम्हारे रास्ते एक ही हैं.” कहते हुए खोटा ने उसका हाथ पकड़ लिया. उसने एक झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और समीप खडे नारियल पानी बेचने वाले की गाडी से नारियल छिलने की तेज दरांती उठाकर खोटा की ओर खेरनी की तरह लपकी. खोटा के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. अचानक वह सिर पर पैर रखकर भागा. वह उसके पीछे दरांती लिए दौड रही थी.
फूलती हुई साँसों के साथ खोटा अपनी गति बढाता जा रहा था. जब खोटा उसकी पहुँच से बहुत दूर चला गया तो वह खडी होकर अपनी फूली हुई साँसों पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगी. और फिर दरांती को एक ओर फेंककर ऑफिस  चल दी.
 
अप्रकाशित
मौलिक
————————समाप्‍त——————————–पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

Hindi Short Story Sawali By M.Mubin

कहानी      सवाली   लेखक  एम मुबीन   
इमाम ने सलाम फेरा और उसी समय िकब से उभरने वाली आवाज को सुनकर सभी प्रार्थना पीछे मुड़ कर देखने लगे. एक व्यक्ति खड़ा था.
बंधुओं! मेरा संबंध बिहार से है. मेरी लड़की के दिल का ऑपरेशन होने वाला है इस संबंध में, मैं यहाँ आया हूँ. ऑपरेशन के लिए लाखों रुपये की आवश्यकता है. आपकी सहायता का कतरा कतरा मिलकर मेरे लिए सागर बन जाएगा . मेरी बेटी की जान बच जाएगी. मेरी बेटी की जान बचाकर सवाब दारीन प्राप्त करें. “व्यक्ति की आवाज़ सुन कर कुछ नमाज़ियों के चेहरों पर नागवार के टिप्पणी उभरे कुछ गीज़ व गज़ब भरी नज़रों से उसे देखने लगे. कुछ बड़बड़ाने लगे .
लोगों ने धंधा बना लिया है. परमेश्वर के घर में बैठ कर भी झूठ बोलते हैं.”
भगवान के घर, नमाज़ का भी कोई सम्मान नहीं. नमाज़ ख़त्म भी नहीं हुई और हज़रत शुरू हो गए.”
नमाज़ के दौरान इस प्रकार के सूचना पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए.” बातों का सिलसिला बीच में ही टूटी हो गया. क्योंकि इमाम ने प्रार्थना  के लिए हाथ उठा लिए थे.
पता नहीं क्यों उस व्यक्ति की बात सुन कर उनके दिल में एक हूक सी उठी. उस व्यक्ति के बैठ जाने के बाद भी वह बार बार उसे मुड़ कर देखते रहे. उन्हें उस व्यक्ति का चेहरा बड़ा दीं लगा. ऐसा लगा जैसे यह व्यक्ति सचमुच मदद छात्र है और यह झूठ बोल रहा है. उसे ऐसा सचमुच अपने बेटी की जान बचाने के लिए सहायता चाहिए. प्रार्थना समाप्त हो गई और वह इसी बारे में सोचते रहे. वह मस्जिद से बाहर निकले तो उन्हें व्यक्ति मस्जिद के दरवाज़े के पास एक रूमाल फैलाए बैठा दिखाई दिया. रूमाल में कुछ सिक्के और एक दो एक दो रुपया की नोटें फैली थीं. एक क्षण के लिए वह रुक गए जेब में हाथ डाला और पैसों का अनुमान लगाने लगे और आगे बढ़ गए .
घर आए तो बहू और बेटा एक आदमी के साथ बातें कर रहे थे.
यदि आप सेल्ङ्ग लगाते हैं?” वह आदमी कह रहा था. “तो मैं आप को बिल्कुल नए शैली की सेल्ङ्ग लगा कर दूंगा. इस तरह की सेल्ङ्ग मैं एक फिल्म स्टार के बेडरूम में लगाई है. एक बड़ी कंपनी के ऑफिस में भी इसी तरह की सेल्ङ्ग है. अगर आप केवल सेल्ङ्ग लगाईं तो पूरे फ्लैट में सेल्ङ्ग लगाने का खर्च पच्चीस हजार रुपये के समीप  आएगा. यदि आप सेल्ङ्ग सिर्फ बेडरूम में लगाना चाहते हैं तो दस हजार रुपये के समीप  खर्च आएगा. ”
पूरे फ्लैट में सेल्ङ्ग लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है. केवल बेड रूम में ही सेल्ङ्ग लगायेंगे.” बहू बेटे की ओर सवालिया नज़रों से देख रही थी. अभी पिछले साल ही तो बीस हजार रुपये खर्च कर सेल्ङ्ग लगवाए थी. “इतनी जल्दी सीलिंग बदलने की आवश्यकता नहीं है हाँ बेडरूम में सीलिंग बदलने की सख्त जरूरत है क्योंकि बेडरूम में नया पिन तो होना चाहिए. ”
ठीक है!” बेटा उस आदमी से कहने लगा कि तुम कल ऑफिस आकर पाँच हज़ार रुपये ाडोांस ले लेना और परसों काम शुरू कर देना. काम दो तीन दिन में समाप्त हो जाना चाहिए. ”
साहब दो तीन दिनों में काम समाप्‍त  होना तो मुश्किल है कम से कम आठ दिन तो लगेंगे ही.” वह आदमी कहने लगा.
ठीक है! परंतु कम से कम समय में काम समाप्‍त  करना अगले महीने मैम साहब की बर्थ डे है. उस बर्थ डे पार्टी में अपने और मैम साहब के दोस्तों को सरपुरायज़ गिफ्ट देना चाहता हूँ.” बेटा कह रहा था.
आप चिंता न करें काम समय पर हो जाएगा.” वह आदमी उठकर जाने लगा.
अरे हाँ मुझे अपनी उस बर्थ डे पर कोई कीमती गिफ्ट चाहिए जो कम से कम बीस हजार रुपये का हो और फिर पार्टी पर भी तो दस बारह हजार रुपए खर्च तो होंगे ही. फिर यह सीलिंग का काम. इतने पैसे हैं भी या नहीं? “
तुम चिंता क्यों करती हो. सारा इंतजाम हो जाएगा.” बेटा बोला. अचानक उसकी नजर उन पर पड़ी. “अरे अब्बा जान! आइए. हम लोग आप ही का इंतज़ार कर रहे थे.
चलिए जल्दी से हाथ मुंह धो लीजिए. नर्गिस ज़रा खाना लगाना.”
अभी लगाती हूँ.” कहती हुई बहू उठ गई. खाना लगा गया और वह साथ में खाना खाने लगे. खाना खाते समय भी उनका ध्यान कहीं और ही उलझा हुआ था. बेटा फ्लैट की छत बदलने पर दस बीस हजार रुपये खर्च करने परतैयार है. पत्नी के जन्मदिन पर दस बीस हजार रुपये का उपहार देने के लिए तैयार है जन्मदिन की पार्टी पर दस बारह हजार रुपए खर्च करेगा. ख़ुदा ने उसे आसोदगी प्रदान की है. जिसके लिए मैं जीवन भर तरसता रहा.
मरियम! लगता है हमारे बुरे दिन दूर हो गए हैं तुम्हारी भी सारी दुख कष्ट दूर होने वाली हैं. तुम्हें बहुत जल्द इस मोज़ी रोग से मुक्ति  मिलने वाली है रात को सोने के लिए लेटे भी तो कोई बेटा ही छाया हुआ था.
बेटे आमिर! ऐसा लगता है तुम मेरे सारे सपनों को पूरा कर दोगे. तुम्हारे बारे में मैंने जो जो सपने देखे थे वह सारे सपने पूरे कर दोगे. ख़ुदा तुम्हें जीवन के हर परीक्षा में सफल करे. और सारी दुनिया की मसरतें , खुशिया आकर तुम्हारी झोली में जमा हो जाएं. उनकी आंखों के सामने पांच छह साल के आमिर की तस्वीर घूम गई. जब वह खेतों में काम कर रहे होते तो आमिर अपने नन्हे नन्हे हाथों में तख्ती थामे दौड़ता हुआ आता था और दूर से उनसे चीखकर कहता था कि अब्बा! आज मास्टर जी ने हमें ए से लेकर सात तक शब्द सखाए हैं. मुझे अब आपके, त सब लिखना आता है देखिए मैंने लिखा है. वह आकर उनसे लिपट जाता था. अपनी तख्ती उनकी ओर बढ़ा देता था. तख्ती पर लिखे नन्हें नन्हें अक्षर पर नज़र पड़ते ही उनका दिल खुशी से झूम उठता था.
बेटे मेरा दिल कहता है तो मेरा नाम सारी दुनिया में रौशन करेगा. तो एक दिन पढ़ लिखकर बहुत बड़ा आदमी बनेगा.” और सचमुच आमिर ने निचली दलों से ही उनका नाम रोशन करना शुरू कर दिया था.
गांव का हर व्यक्ति जानता था कि आमिर पढ़ने लिखने में बहुत सावधान है. हमेशा क्लास में अव्वल आता है. दसवीं परीक्षा में तो पूरे बोर्ड में तीसरा आया था और उसकी इस सफलता से न केवल उनका बल्कि सारे गाँव और गाँव की इस छोटी सी स्कूल का नाम भी उजागर हो गया था और उसके बाद आमिर को उच्च शिक्षा के लिए शहर जाना था. यह तो बहुत पहले ही तय हो चुका था कि वह आमिर को उच्च शिक्षा के लिए शहर भेजेंगे.
मरियम ने अपने कलेजे पर पत्थर रख लिया था और पत्थर रख कर उस ने आमिर को उच्च शिक्षा के लिए शहर रवाना किया था. जिसे वह एक क्षण अपनी आंखों से जुदा नहीं होने देना चाहती थी. आख़िर उसकी एक ही तो औलाद थी. दो तीन बच्चे तो नहीं थे जिनमें से दिल बहला सके. पता नहीं क्यों कुदरत ने उन्हें आमिर के बाद औलाद नहीं दी.
आमिर का प्रवेश एक अच्छे कॉलेज में हुआ. अच्छे नंबरों के कारण यह गृह मुमकिन हो सका था. परंतु कॉलेज की फीस तो अदा करनी ही थी. शुल्क इतनी अधिक थी कि उनकी सारी बचत भी कम पड़ रही थी और मरियम के गहने बेच करने के बाद भी फीस के पैसे जमा नहीं हो रहे थे.
यह तय किया गया कि खेत का एक टुकड़ा बेच दिया जाए. बच्चे के भविष्य और उसकी पढ़ाई से बढ़ कर खेत नहीं है. अंत यह सब तो उसी का है. अगर यह काम नहीं आए तो क्या ोकित. खेत एक टुकड़ा बेचकर आमिर शुल्क अदा कर दी गई और उसकी पढ़ाई के खर्च का इंतजाम भी कर लिया गया. बढ़ती उम्र के साथ उनसे खेतों में काम नहीं होता था. खेत में मजदूर लगवा कर उनसे काम लेते थे. कभी कभी जब वह किसी काम से गाँव से बाहर जाते तो यह काम मरियम को करना पड़ता था. मरियम की पुरानी बीमारी का ज़ोर बढ़ता ही जा रहा था.
रात में जब ठंडी हवाएं चलते तो दमे का ज़ोर कुछ इतना बढ़ जाता था कि उन्हें मरियम को संभालना मुश्किल हो जाता था. मौसम के बदलने से दमा से राहत मिलती तो गुर्दे की पथ्री ज़ोर करती थी और इन्हीं दो बीमारियों की वजह से उन्हें मरियम को बार बार शहर ले जाना पड़ता था. गांव में आने वाले डॉक्टर मरैम की इन बीमारियों का सही रूप से इलाज नहीं कर पाते थे. शहर के एक अच्छे डॉक्टर के इलाज से थोड़ा अ. फ़ाकह हो जाता था. मरियम की दवाओं का खर्च आमिर की पढ़ाई के खर्च के बराबर था. खेत में नई फसल आते ही सबसे पहले दोनों के खर्च के पैसे अलग उठा कर रख देते थे. परंतु न तो आमिर की पढ़ाई के खर्च की कोई सीमा थी और न मरियम की बीमारी के खर्च की . दोनों बार बार अपनी सीमा को पार कर जाते थे और उनका सारा बजट गड़बड़ी जाता था. ऐसे में मरियम त्याग की मूर्ति बन जाती थी. वह लाख तकलीफों को सहन  कर लेती थी और उनसे कहती थी कि मेरी तबीयत ठीक है. डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है. पैसे आमिर को भेज दो. वह पत्नी के समर्पण को समझते थे परंतु इस मामले में पत्नी से बहस नहीं कर पाते थे. क्योंकि बेटे की पढ़ाई सामने सवालिया निशान बनकर खड़ी हो जाती थी और आमिर हर बार अच्छे नंबरों से पास होता था. और उसकी सफलता से वह खुशी से झूम उठते थे. कि आमिर के लिए वह जो इबादत कर रहे हैं. प्रकृति उन्हें उनकी इस पूजा का फल दे रहा है. आखिर वह दिन आपहोनचा जब आमिर ने शिक्षा अच्छे स्तर से पूरी कर ली.
अब्बा! अब आप को दिन भर धूप आग में खेतों में काम करने की कोई जरूरत नहीं है. अब हमें खेती करने की कोई जरूरत नहीं है. अल्लाह ने चाहा तो मुझे बहुत जल्दी कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी और मुझे इतनी आय होगी कि आय से आसानी से मैं आप लोगों की देखभाल कर सकता. अम्‍मी  का किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज कर सकता ताकि अम्‍मी  की बीमारी जड़ से हमेशा के लिए समाप्‍त  हो जाए.
आमिर की बात सच भी थी. आमिर ने जो शिक्षा प्राप्त की थी शिक्षा की वजह से उसे ऐसी नौकरी तो आसानी से मिल सकती थी कि इसमें इन तीनों का गुज़ारा हो जाए. खेतों में काम न करने के आमिर के निर्णय से भी हुसैन थे अब उनसे भी धूप में खेतों में काम करने वाले मजदूरों की निगरानी का काम नहीं होता था. वह खेत में होते थे. परंतु उनका सारा दिल घर में लगा होता था. मरियम कैसी होगी फिर कहीं दर्द का दौरा तो नहीं पड़ गया? कई बार ऐसा हुआ जब वह खेत से वापस आए तो उन्होंने मरियम कभी पथ्री के दर्द या कभी दमे के दौरे के दर्द से तड़पता हुआ पाया. बस इसी कारण मरियम को छोड़ कर जाने को उनका दिल नहीं चाहता था.
शिक्षा समाप्त करने के बाद आमिर एक दो सप्ताह उनके पास आकर रहा था. फिर नौकरी की खोज में वापस शहर चला गया. एक सप्ताह के अंदर उसका पत्र आया कि उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई है. दो महीने बाद आया तो कहने लगा. पहले से भी अच्छी जगह नौकरी मिल गई है. इसलिए उसने पहली नौकरी छोड़ दी है.
तीन चार महीने के बाद पत्र आया कि उसने एक छोटा सा कमरा ले लिया है. वे चाहें तो आकर उसके साथ रह सकते हैं. आमिर के पास जाकर रहना एक तज़ाद का मामला था. दोनों उसके लिए राज़ी नहीं थे. अपना गाँव, खेत और घर छोड़ कर अजनबी शहर कहां जाएं? वहां न किसी से जान न पहचान. फिर वहाँ के हजारों समस्याओं. आमिर के बहुत जोर देने पर वह कुछ दिन उसके पास रहने आए. परंतु आने के बाद दोनों का यही मानना था कि उसके पास शहर में नहीं रह सकते. उन्हें वहां का वातावरण रास नहीं आया था न उनमें वहाँ समस्याओं का सामना करने की ताब थी. इस बीच में आमिर ने उन्हें लिखा उसने एक लड़की पसंद कर ली है और लड़की के घर वाले इस विवाह  आमिर से करने के लिए तैयार हैं . आप लोग आकर इस मामले को तय कर जाएं. इस बात को पढ़कर वह खुशी से झूम उठे थे. आमिर ने उनके सरका एक बोझ हल्का कर दिया था. उन्हें आमिर के लिए लड़की डखविंडनी नहीं पड़ी थी. उसने स्‍वंय  खोज ली थी. विवाह  ब्याह के बारे में वे इतने दकियानूसी नहीं थे कि आमिर की इस बात का बुरा मान जाएं. उनका विचार था कि आमिर को उस लड़की के साथ जीवन गज़ारनी है. उसने स्‍वंय  लड़की पसंद है तो लड़की अच्छी ही हो है.
एक दिन जाकर नरगस को देख आए और विवाह  की तारीख भी पक्की कर आए. इसके बाद उन्होंने बड़ी धूम से आमिर की विवाह  की. गांव के जो लोग भी उनके साथ आमिर की विवाह  के लिए शहर गए थे उनका भी कहा कि आज तक गांव में इतनी धूम धाम से किसी की विवाह  नहीं हुई.
इस विवाह  में उनकी सारी जमा पूंजी और मरियम के सारे गहने के साथ जमीन का एक टुकड़ा भी बुक गया परंतु फिर भी उन्हें कोई ग़म नहीं था. वह एक कर्तव्य से सबक दोष हो गए थे जैसे उनकी किस्मत में प्रकृति ने आराम लिख दिया था. आमिर हर महीने इतनी रकम भेजता था कि उन्हें खेतों में फसल उग वाने की जरूरत ही महसूस नहीं होती थी और उस रकम में उनका आराम से गुजर बसर हो रहा था.
मामला उस समय गड़बड़ी जाता जब आमिर राशि रवाना नहीं करता और रवॉनह नहीं करने के कारण लिख देता. नर्गिस अस्पताल में थी उसकी बीमारी पर काफी खर्च हो गया. नया फ्लैट बुक गया के पैसे भरने हैं. रंगीन टीवी लिया है उसकी किश्तें चुकानी हैं. फिर मरियम की बीमारियां भी जोर पकड़ने लगीं. कभी कभी उन्हें भी छोटी मोटी बीमारियां आ घीरतें तब उन्हें लगता कि आमिर पर तकिया करना बेवकूफी है. चाहे कुछ भी हो उन्हें आराम करने की बजाय खेतों में काम करना चाहिए. और वह फिर से खेतों की ओर आकर्षित हो गए. इस वजह से उनकी बीमारियां भी बढ़ने लगी और मरियम की. मरियम कभी कभी दर्द के इतने गंभीर दौरे पड़ते थे कि लगता कि अभी उसकी जान निकल जाएगी . डॉक्टर ने भी साफ उत्‍तर  दे दिया था. अब तक दवाओं से दर्द को दबाने की कोशिश के साथ पथ्री समाप्त करने की कोशिश भी करता रहा हूँ. परंतु न तो पथ्री समाप्‍त  हो सकी है और न दर्द और उस समय जो स्थिति हाल है उसके मद्देनजर ऑपरेशन बेहद जरूरी है. वरना किसी दिन दर्द का दौरा जान लेवा साबित होगा.
मरियम के जीवन के लिए ऑपरेशन बेहद जरूरी था और उस पर दस पन्द्रह हज़ार रुपए के खर्च की उम्मीद थी. इतनी राशि उनके पास नहीं थी. डॉक्टर ने जल्द ऑपरेशन करने पर ज़ोर दिया था. इसलिए उन्होंने सोचा सारी स्थिति से आमिर को सूचित कर दिया जाए. वह मरियम के ऑपरेशन की व्यवस्था कर देगा. इसके लिए वह आमिर के पास आए आते ही इधर उधर की बातों के बाद और फिर रात का खाना खाकर सोने के लिए आलेटे. सोचा सवेरे इत्मीनान से बातें करेंगे.
दूसरे दिन नाश्ते की मेज़ पर उन्होंने सारी स्थिति बेटे के सामने रख दी. “अब्बा मैंने आपको बार बार लिखा था कि आप अम्‍मी  के उपचार से कोताही न बरतें उनकी बीमारी बहुत खतरनाक है.”
डॉक्टर कहता है अब ऑपरेशन बेहद जरूरी है.” वह बताने लगे. “वरना किसी दिन भी तुम्हारी अम्‍मी  की जान जा सकती है. ऑपरेशन में दस पन्द्रह हज़ार रुपये खर्च आएगा. इसलिए मैं तुम्हारे पास आया हूँ. अगर तुम पैसों का व्यवस्था कर दो तो ऑपरेशन करवा लूँ. डॉक्टर ने सारी तैयारियां कर ली हैं. ”
ऑपरेशन?” उनकी बात सोच कर आमिर कुछ सोच में डूब गया. “दस पन्द्रह रुपए की व्यवस्था?” बहू बेटे का मुंह देखने लगी.
अब्बा! अब आपसे क्या कहूँ में भला इतनी बड़ी रकम का प्रबंधन कैसे कर सकता हूँ. आप जानते हैं मेरे पीछे कितने खर्च हैं. आपको नियमित रूप से पैसा रवाना करना होता है. उस फ्लैट को खरीदने के लिए जो ऋण लिया थाकी किश्तें कट रही हैं. फर्नीचर और टीवी वालों की उधार देना है. समझ लीजिए उस समय कंधे तक ऋण में धनसा हूँ और आप अम्‍मी  के ऑपरेशन के लिए दस पन्द्रह हज़ार रुपये मांग रहे हैं? ”
बेटे की बात सुन कर आश्चर्य वह उसका मुंह ताकने लगे. बेटे ने नज़रें चुरा लें तो वह फ्लैट की छत को घूरने लगे जहां नई शैली की सेल्ङ्ग लगी थी. अचानक उनकी आँखों के सामने मस्जिद में अपनी बेटी के दिल के ऑपरेशन के लिए लोगों से मदद मांगने वाले उस आदमी का चेहरा घूम गया और वह लरज़ उठे. उन्हें लगा जैसे वह बेटे के फ्लैट के दरवाजे पर रूमाल बिछा कर उस से मां के ऑपरेशन के लिए मदद मांग रहे हैं.
 
अप्रकाशित
मौलिक
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एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
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Hindi Short Story Yatna Ki Ek Rat By M.Mubin

कहानी  यातना की एक रात लेखक  एम मुबीन   
पत्नी के बुरी तरह झकझोरते पर आंख खुली. वही हुआ जो आमतौर पर इस तरह अचानक जागरूक किए जाने पर होता है. हृदय की धडकनें तेज हो गईं. साँसें अपनी पूरी गति से चलने लगीं और भाषा रेत का रेगिस्तान और गले में कानों का जंगल उभर आया.
क्या है?” बड़ी मुश्किल से होंटों से आवाज़ निकली और अपने होंटों पर जीभ फेरकर भाषा तर करने की कोशिश करने लगा.
बाहर पुलिस आई है.” पत्नी कलेजा पकड़ कर बोली.
पुलिस?” उसके माथे पर बल पड़ गए. “इतनी रात गए इस इलाके में पुलिस का क्या काम?”
सायरन की आवाज़ सुनकर आंख खुल गई. फिर सन्नाटे में ऐसा लगा जैसे कई वाहन आकर रुकी. और फिर भारी भरकम बोों की आवाज़ गली में गूंज लगी.” पत्नी बताने लगी. “फिर वातावरण में वही पुलिस के पारंपरिक प्रश्न गरजने लगे.
दरवाज़ा खोलो, कौन हो तुम कहाँ से आए हो और कितने दिनों से यहां रह रहे हो.” अब पत्नी की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि फिर गली में भारी भरकम क़दमों की आवाज़ गूंज और दरवाजा खटखटाया जाने लगा. उसकादिल धड़क उठा. वह डर नज़रों से दरवाजे की ओर देखने लगा. परंतु जब फिर दरवाजा खटखटाया गया तो अंदाज़ा हुआ उनका नहीं पड़ोसी का दरवाजा खटखटाया जा रहा है.
दरवाज़ा खोलो वरना हम दरवाजा तोड़ देंगे.” एक तेज़ आवाज़ गूंज और उसके बाद दरवाज़ा खुलने और फिर पड़ोसी की घबराई हुई आवाज़.
क्या बात है, कौन है?”
दिखाई नहीं देता, हम पुलिस वाले हैं.”
पुलिस?” सिद्दीकी साहब घबराए हुए थे. “क्या बात है इन्‍सपेक्‍टर  साहब! इतनी रात आप मेरे घर आने की ज़हमत क्यों की?”
हमें तुम्हारे घर की तलाशी लेनी है.”
तलाशी और मेरे घर की, मगर क्यों?”
हमें तुम्हारे घर की तलाशी लेनी है.”
परंतु मेरे घर की तलाशी क्यों ली जा रही है?”
केवल तुम्हारी ही नहीं, पूरे क्षेत्र के हर घर की तलाशी की जा रही है और हमारे इस मिशन का नाम है कोम्बनग ऑपरेशन.”
परंतु हमारे इस क्षेत्र में आपको कोम्बनग करने की जरूरत क्यों पेश आया है?”
इसलिए कि हमें पता चला है कि इस क्षेत्र में अवैध काम होते हैं. और यह क्षेत्र अपराधियों की आमास्थाह है. इस पूरे क्षेत्र में बांग्लादेशी और आई. एस. आई एजेंट फैले और छिपे हुए हैं.”
परंतु हमारा इन सभी बातों से कोई संबंध नहीं है हम नौकरी पेशा शरीफ लोग हैं?”
शरीफ़ लोग हैं, नौकरी पेशा लोग हैं और झोपडपटटी में रहते हो?”
शरीफ़ और नौकरी पेशा लोगों का झोपडपटटी में रहना कोई अपराध तो नहीं है.”
हे! अधिक बुक बुक मत कर हम अपना काम करने दे. हमें कानून मत सिखा, क्या? अधिक होशियारी की तो उठाकर पटख दूंगा साला स्‍वंय  को सज्जन बताता है. प्रथम! उसके घर की अच्छी तरह से तलाशी लो. अगर कोई भी चीज़ मिले तो उसे बताना कि सज्जनता क्या है? पुलिस के कामों में टांग अड़ाती है. इसके बाद सिद्दीकी साहब की आवाज़ नहीं सुनाई दी परंतु घर के एक सामान को उलट पलट करने, गिराने और फेंके की आवाज़ें ज़रूर पॉप लगीं.
साहब देखिए कितना बड़ा छरा है.”
यह मांस काटने का छरा है.” सिद्दीकी साहब की आवाज़ उभरी.
यह मांस काटने का छरा या मर्डर करने का अभी पता हो जाएगा. हवलदार उसे हथकड़ी डाल कर ले चलो.” इंस्पेक्टर की आवाज़ उभरी. “नहीं नहीं!” सिद्दीकी साहब की पत्नी की आवाज़ उभरी. “मेरे पति को कहाँ ले जा रहे हो, नहीं मैं अपने पति को बिना किसी कारण तुम्हें घर से ले जाने नहीं दूंगी. ”
हे बाई! दलों सरक, हमारे काम में दखल देने की कोशिश मत कर वरना बहुत भारी पड़ेगा.” एक गरजदार आवाज़ उभरी.
इन्‍सपेक्‍टर  साहब मैं सच कहता हूँ आप को गलतफहमी हो रही है. एक शरीफ नौकरी पेशा आदमी हूं.” सिद्दीकी साहब की आवाज़ उभरी.
साब बंगाली किताबें.” एक आवाज़ उभरी.
यह देखिए! कई बंगाली किताबें हैं.”
तो यह आदमी जरूर बांग्लादेशी होगा.”
बांग्लादेश में भारतीय हूं.”
यदि भारतीय हो तो फिर यह बंगला भाषा की किताबें तुम्हारे पास कहाँ से आईं?”
मुझे बांग्लादेश साहित्य में रुचि है. इसलिए बंगला भाषा की किताबें पढ़ता हूं.”
वह सब पुलिस स्टेशन में साबित करना कि तुम बांग्लादेशी हो या भारतीय.” इसके बाद सिद्दीकी साहब को शायद धक्के देकर कमरे से बाहर ले जाया गया. उनकी पत्नी की दाद फ़रियाद की आवाज़ें, डानों और गालयों के शोर में दब रह गई थीं. इसके बाद उनकी बारी थी दरवाज़ा ज़ोर से पीटा जाने लगा.
कौन?” धड़क दिल थाम कर बड़ी मुश्किल से वह कह सका.
पुलिस! दरवाजा खोलो. हम तुम्हारे घर की तलाशी लेना चाहते हैं.” बाहर एक गरजदार आवाज़ उभरी. उसने बिना कोई पसो पेश के द्वार खोल दिया. सात आठ पुलिस के सिपाही और एक इंस्पेक्टर धड़धड़ाते हुए कमरे में घुस आए और तेज नज़रों से कमरे की एक एक वस्‍तु  की समीक्षा लगे. इसके बाद वह बड़ी तेजी से कमरे के एक कोने की ओर लपके और वहां की चीज़ें और सामान बड़ी बे दरदी नीचे ऊपर और पटखनी लगे. पत्नी डर से थर थरकांप उसके सीने से आ लगी.
क्या नाम है तुम्हारा?” इंस्पेक्टर ने कड़क कर पूछा.
रहस्य अहमद.”
पता है. जगह रहस्यमय अहमद नहीं तो क्या सचिन खेडीकर रहेगा. क्या काम करते हो?”
एक सरकारी कार्यालय में नौकरी करता हूँ.”
सरकारी कार्यालय में नौकरी करते हो.” इन्‍सपेक्‍टर  आश्चर्य से उसे देखने लगा.
और यहाँ रहते हो?” “साब ज़रूर इस संबंध आईएसआई से है. ये लोग सरकारी कार्यालयों में काम करते हैं और देश से गद्दारी करते हुए जासूसी करते हैं देश के राज़ बेचते हैं.” ऐसा लगा जैसे शरीर सारी शक्ति दाहिने हाथ में जमा हो गई है. और वह हाथ मक्का के रूप में हवलदार के मुँह पर पड़ने के लिए बेताब है. उसने बड़ी मुश्किल से स्‍वंय  पर काबू पाया और आगे बढ़कर अपनी पैंट की जेब से अपने कार्यालय का कार्ड निकाला और इंस्पेक्टर की ओर बढ़ा दिया.
ओह! तो मंत्रालय में हो?” इंस्पेक्टर ने कार्ड देखते हुए कहा. “ठीक है हम अपना काम कर लिया है. प्रथम! चलो बाहर निकलवा.” उसने दूसरे सिपाहियों को आदेश दिया और सब कमरे से बाहर निकल गए. सारा घर कबाड़ा गृह बन गया था. वह और पत्नी विवश्‍ता  से अपने घर के बेतरतीब सामान को देखने लगे फिर पत्नी एक सामान को उठाकर अपनी जगह रखने लगी. उसके बाद उनके पड़ोस के कमरे पर हमला हुआ था. असग़र नशे में धुत था. पैदा करने पर वह पुलिस से उलझ गया. “साला! तुम पुलिस वाले अपने आपको क्या ख़ुदा समझते हो. कभी शरीफ लोगों के घरों में भी धड़क घुस आते हो. उनकी मीठी नींद खराब करते हो. चले जाओ नहीं तो एक एक को देख लूँगा. ”
साले अधिक चर्बी चढ़ गई है शायद, ठहर जा! अब तेरी चर्बी उतारते हैं.” और उसके बाद डंडों के बरसने की आवाज़ें और असग़र की चीखें वातावरण में गूंज लगीं. “बचाव! बचाव! नहीं! नहीं! मुझे मत मारो. “इस की चीजों में उसके घर वालों, पत्नी और बच्चों की चीखें भी शामिल थीं. इसके बाद असग़र को खींचते हुए बाहर ले जाया गया था. इस प्रकोप  का सिलसिला चाल के दूसरे कमरों पर तारी रहा.
या खुदा! हम लोगों का यह हाल है तो बस्ती के दूसरे लोगों का क्या हाल होगा.” बड़बड़ाते हुए उसने सोचा. वह बस्ती झनपड़ पट्टी ज़रूर थी परंतु इतनी बदनाम नहीं थी. जितनी आम तौर पर दूसरी झनपड़ पट्टियाँ हैं.वहां इक्का दुक्का अपराध होते थे और वहां अपराधियों की संख्या बहुत कम थी. इस बस्ती के बीच में एक छोटी सी चाल थी. आठ दस कमरों पे शामिल. पहले वह बस्ती नहीं थी केवल वही चाल थी. जहां उसके जैसे नौकरी व्यावसायिक आकर बस गए थे. जो अपनी साख के अनुसार शहर के पाश इलाके में घर, मकान लेने में असमर्थ थे. अपने पास जमा छोटी सी राशि डपाज़ट के रूप में देने के बाद उन्हें उसी चाल में कमरा मिला था. इसके बाद जीवन भर की कमाई पेट की आग, जीवन की समस्याओं, बच्चों की परवरिश और शिक्षा की भेंट हो गई थी. इस चाल से बाहर निकलने का मौका ही नहीं मिला. और चाल के आसपास मशरूम की तरह झोपडपटटी बढ़ती और बस्ती गई. झोपडपटटी उनकी तरह अच्छे शरीफ और संकट  के मारे लोग भी थे. जो सिर छिपाने के लिए वहां बसे हुए थे तो सर फिरे, जाहिल, उजड़ और गनवार भी थे. ऐसे लोगों को इस तरह के प्रकोप  भी सहने पड़ते हैं.
रहस्य भाई रहस्यमय भाई! कुछ करें, पुलिस उन्हें ज़बरदस्ती पकड़ कर ले गई है.” सिद्दीकी साहब की पत्नी रोती हुई उसके पास आई.
आप धैर्य  रखें भाबी! कुछ नहीं होगा मैं देखता हूँ.” उसने सिद्दीकी साहब की पत्नी को सांत्वना दी और फिर पत्नी से बोला. “शकीलह! तुम अपना ख्याल रखना मैं अभी आया.
आप कहाँ जा रहे हैं? मुझे बहुत डर लग रहा है.” पत्नी बोली.
डरने की कोई बात नहीं है. तुम सिद्दीकी साहब के घर चली जाओ.” यह कहकर बाहर आया तो शायद प्रकोप  समाप्‍त  हो चुका था. पुलिस की वाहन जा चुकी थीं. चाल और आसपास के क्षेत्र के दस बारह लोगों को गिरफ्तार कर पुलिस स्टेशन ले जाया जा चुका था. जो बच गए थे आपस में सलाह कर रहे थे जिन्हें पुलिस पकड़ कर ले गई है, उन्हें कैसे वापस लाया जाए. असग़र तो शराब के नशे में धुत था और अकारण पुलिस से उलझ गया था उसे तो पुलिस छोड़ने से रही. उनके लिए इसका नशा में होना ही काफी था. परंतु सिद्दीकी साहब को ख्वामख्वाह पुलिस स्टेशन ले जाया गया. उनकी पत्नी की हालत गैर है. वह मेरे पैरों पर गिर कर विनती कर रही थी कि सिद्दीकी साहब को वापस लाया जाए. पड़ोसी एक जगह जमा होकर बातें कर रहे थे. “ठीक है! चलो पुलिस स्टेशन चलकर देखते हैं और इंस्पेक्टर को समझाने की कोशिश करते हैं कि सिद्दीकी साहब सज्जन हैं. उनका संबंध ऐसे किसी आदमी से नहीं है. जिसकी खोज में उन्होंने यह प्रकोप  इस बस्ती पर डखाया था. वह बोला तो सब उसके साथ पुलिस स्टेशन जाने के लिए राजी हो गए.
पुलिस स्टेशन में लोगों की भीड़ थी. कुछ तो लोग थे जो इस ऑपरेशन के तहत पकड़ कर लाए गए थे. कुछ उन्हें छुड़ाने के लिए आए थे. पुलिस बड़ी सख्ती से पेश आ रही थी. किसी को पुलिस स्टेशन में कदम रखने की अनुमति नहीं थी. “जाओ सवेरे आना. सवेरे तक यह लोग यहां रहेंगे. सवेरे उनके बारे में सोचेंगे कि उनका क्या होगा.” उसने अपना कार्ड बताया तो उसे अन्दर जाने की अनुमति दी गई. उसने इंस्पेक्टर से सिद्दीकी साहब के बारे में बात की.
इन्‍सपेक्‍टर  साहब! सिद्दीकी साहब को पिछले दस सालों से जानता हूं. उनका संबंध अपराधियों, आतंक  या देश दुश्मन लोगों से नहीं है. वह एक शरीफ़ नौकरी पेशा आदमी हैं और एक निजी फर्म में अकाउंट नट हैं.”
क्या बात करते हो रहस्यमय साहब उनके घर हमें छरा और बांग्लादेश किताबें मिली हैं. पूरा जांच के बाद ही उन्हें छोड़ सकते हैं.” इन्‍सपेक्‍टर  ने साफ कह दिया.
रहस्य भाई! मुझे यहाँ से किसी तरह ले चलो अगर मैं सवेरे तक यहां रह गया तो यहाँ मेरी जान निकल जाएगी, वहां मेरी पत्नी की. अपने मालिक का फोन नंबर देता हूँ उनसे इस सिलसिले में बात कर लीजिए.” कहतेउन्होंने एक फोन नंबर दिया तो वह उसे लेकर बाहर आया और एक सार्वजनिक टेलीफोन बूथ से इस नंबर पर फोन लगाने की कोशिश करने लगा.
हैलो!” तीन चार बार कोशिश करने पर नींद में डूबी आवाज़ उभरी.
मलहोतरह साहब सिद्दीकी साहब आपकी ऑफिस में काम करते हैं. उनका पड़ोसी बोल रहा हूँ. उन्हें ऑपरेशन कोम्बनग के दौरान पुलिस पकड़ कर ले गई है और उन पर बांग्लादेशी, अपराधियों और देश दुश्मन होने का शक कर रही है. आप पुलिस स्टेशन फोन करके सिद्दीकी साहब के बारे में कुछ कह दें तो हमें सिद्दीकी साहब को छुड़ाने में मदद मिलेगी. ”
सिद्दीकी साहब और बांग्लादेश, अपराधियों और देश दुश्मन? ना न सनस. उन लोगों ने तो शरीफ लोगों का जीना मुश्किल कर रखा है. भई मेरे फोन से कुछ नहीं होगा. मेरा एक दोस्त गृह मंत्रालय में काम करता है. इस से फोन करवाता हूं तब ही कुछ काम बनेगा. ”
आप फोन जरूर करवाई. वरना सिद्दीकी साहब को रात भर …!”
तुम चिंता मत करो सिद्दीकी मुझे बहुत प्रिय है.” मलहोतरह साहब ने उसकी बात काटकर कहा और फोन बंद कर दिया. वह पुलिस स्टेशन आया और सिद्दीकी साहब को तसल्ली देने लगा. कि मलहोतरह साहब गृह मंत्रालय के किसी आदमी से फोन करने हैं और पुलिस उन्हें छोड़ देगी. पुलिस स्टेशन में हाथों, गालयों और लातों से एक आदमी की बल्लेबाज परस जारी थी. समय चयून्टी गति से रेंग रहा था. अचानक टेलीफोन की घंटी बजी तो इंस्पेक्टर ने फोन उठाया.
कोली वाड़ह पुलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर साने. अच्छा साहब अच्छा साहब. वह बस यूं ही शक के आधार पर पूछताछ के लिए यहां लाए हैं. छोड़ रहे हैं.” फोन रखकर वह क्रोध भरी दृष्टि से सामने बैठे लोगों को घूरने लगा . “सिद्दीकी कौन है?”
मैं हूँ.” सिद्दीकी साहब ने डरते डरते कहा. तो पहले साफ साफ क्यों नहीं बताया कि वाई कर साहब को पहचानते हो? जाओ अपने घर जाओ. ”
सब जब सिद्दीकी साहब के साथ पुलिस स्टेशन से बाहर आए तो पौ फट रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे प्रकोप  की एक रात समाप्‍त  हो गई है.
 
अप्रकाशित
मौलिक
————————समाप्‍त——————————–पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
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Hindi Short Story Kitne Nark By M.Mubin

कहानी   कितने नरक  लेखक  एम मुबीन   
सवेरे जब वह घर से निकली थी तो बुशरा  बुखार में तप रही थी.
अम्‍मी ! मुझे छोड़कर मत जाओ, अम्‍मी  आज स्कूल मत जाओ मुझे बहुत डर लग रहा है.”
जब वह जाने की तैयारी कर रही थी तो बुशरा  की आंख भी खुल गई थी और वह उसे आज स्कूल न जाने के लिए जिद कर रही थी.
नहीं बेटे!” प्यार से उसे समझाने के लिए जब उसने उसके माथे पर हाथ रखा तो कांप उठी. बुशरा  के माथे बुखार से तप रही थी.
अम्‍मी  से इस तरह की ज़िद नहीं करते.” यह कहते हुए उसकी भाषा लड़खड़ा गई थी. “आज अम्‍मी  का स्कूल जाना बेहद जरूरी है. कल चाहे रोक लेना. तुम कहो तो कल हम आठ दिनों के लिए स्कूल नहीं जायेंगे तुम्हारे पास ही रहेंगे. आज हमें जाने दो. ”
अम्‍मी  रुक जाओ नां! मुझे अच्छा नहीं लग रहा है.” बुशरा  रोने लगी थी.
नहीं रोते बेटे!” बुशरा  को रोता देख कर उसकी आंखों में भी आंसू आ गए थे. परंतु बड़ी मुश्किल से उसने अपने आंसुओं को रोका था और भुराई हुई आवाज़ पर काबू पाने की कोशिश की थी. “हम आज जल्दी घर आ जायेंगे फिर तुम्हारे अब्बा तो तुम्हारे पास ही हैं नां बेटा. डरने की कोई बात नहीं है. ”
दूसरे कमरे में तारिक़ और ावफ बेखबर सो रहे थे. थोड़ी देर सिसककते रहने के बाद बुशरा  की भी आंख लग गई थी. उसने अपना परस कंधे पर लटका और जाकर धीरे से तारिक़ को हिलाने लगी.
आं! क्या बात है?” तारिक़ ने आंख खोल दी.
मैं जा रही हूँ.” वह बोली. “बुशरा  को सख्त बुखार है उसे डॉक्टर के पास ले जाना. नौकरानी से कह देना कि उसका अच्छी तरह ध्यान रखे. यदि संभव हो तो आज आप छुट्टी कर लें. वैसे मैं आज जल्दी आने की कोशिश करूंगी परंतु कह नहीं सकती कि यह संभव हो सकेगा भी या नहीं क्योंकि आज इन्‍सपेकशन  है. यदि इन्‍सपेकशन  न होता तो आज जाती ही नहीं. ”
ठीक है.” तारिक़ ने उठते हुए जमाही ली. वह जब घर से बाहर आई तो चारों ओर गहरा अंधेरा था. सर्दियों के दिनों में सात भी बज जाते हैं तो अंधेरा ही छाया रहता है दिन नहीं निकलता और उस समय तो केवल साढ़े पांच ही बजे थे. पूरी गली सुनसान थी. रास्ते पर इक्का दुक्का लोग आ जा रहे थे. ऐसे आलम में किसी औरत के घर से निकलने की कल्पना भी नहीं किया जा सकता है. वह प्रतिदिन उसी समय अकेली उस गली से गुज़र कर रिक्शा स्टैंड तक जाती जो लोग सवेरे जल्दी जागने के आदी थे. उन्हें पता था कि वह उस समय घर से स्कूल जाने के लिए निकलती है. ननवा लोग उससे दो बातें कर लिया करते थे.
बेटी स्कूल जा रही हो.”
हाँ बाबा.” वह उत्तर देती.
भाबी अकेली अँधेरे में प्रतिदिन  इतने सवेरे जाती हो तुम्हें डर नहीं लगता?”
अब तो आदत हो गई है.” वह मुस्कुरा कर कहती.
सभी ननवा और अच्छे नहीं होते. कभी कभी कोई अजनबी और बदमाश भी मिल जाता है. अकेले में उस समय किसी अजनबी औरत को देख कर वह जो कुछ कर सकता है वह करने से नहीं चौकता था. कभी कोई भद्दा सा वाक्यांश मुंह से निकाल देता . कभी कोई नागवार बात कह देता. कोई तो जसारत कर धक्का देकर आगे बढ़ जाता और अपनी किसी मानसिक  इच्छा की संतोष कर लेता. ऐसी स्थिति में इस प्रक्रिया सिवाय ख़ामोशी और कुछ नहीं होता था. न तो वह से उलझ सकती थी न शोर मचा कर अपनी मदद के लिए किसी को बुला सकती थी. उलझी तो नुकसान उसी का होता. अकेली औरत जो ठहरे. किसी को मदद के लिए बुलाती तो संभव नहीं था कि कोई उसकी मदद को आता. इतने सवेरे कोई अपनी लाखों रुपए की मीठी नींद खराब करता है? अगर कोई आए भी तो बदमाश से तो उसे मुक्ति मिल जाती परंतु मदद करने के वाक्यों से शायद जीवन भर मुक्ति  नहीं मिलती.
इतनी रात गए अकेली घर से निकली हो. शरीफ़ औरतों के क्या यही चाल चलन हैं?”
यदि इज़्ज़त का उतना ही पास है तो अकेली इतने सवेरे घर से क्यों निकलती है. घर में रहा करो. छोड़ दो यह नौकरी.” गरज वह ऐसी बातों से कतरा के लिए अपने साथ हुए जा रहे बे जा व्यवहार को अनदेखा कर आगे बढ़ जाती थी. रिक्शा स्टैंड से एस टी के लिए उसे पाँच मिनट में रिक्शा मिल जाता था. कभी कभी तो उसे रिक्शा तैयार मिल जाता था कभी दो चार मिनट रिक्शा का इंतजार करना पड़ता था. कुछ रिक्शा वालों को पता था वह उस समय वहां से एस. टी स्टैंड जाने के लिए निकलती है तो वह उसके इंतजार में वहाँ पहुँच जाते थे. इसमें भी उन लोगों की नियत के दो पहलू होते थे. कुछ शरीफ लोग अपनी रोज़ी धंधे के लिए की सीट पाने के लिएवहाँ पहुँचते थे. कुछ बदमाश मानसिकता वाले केवल स्वाद के लिए वहाँ पहुँचते थे कि एक अकेली अकेले खूबसूरत जवान लड़की को अकेले रिक्शा में एस. टी स्टैंड तक पहुँचाने का अवसर मिलेगा. उससे कुछ ऐसी भी बातें हो सकती हैं जो उनके लिए मानसिक  स्वाद का कारण हूँ. ऐसी हालत में वह ख़ामोश रहकर यात्रा को प्राथमिकता देती थी.
उनका कोई उत्‍तर  नहीं देती थी या यदि देती भी तो ऐसा उत्‍तर  देती कि उसकी सारी उम्मीदों और इरादों पर पानी फिर जाए. ऐसी स्थिति में जो दुर्घटना संभव था वह एक बार इसके साथ हो चुका था. सन्नाटे और अंधेरे का लाभ उठाकर एक रिक्शा वाले ने उसे गलत रास्ते पर ले जाना चाहा. उसने चीख कर उसे रोका जब उसने नहीं सुना तो चलते रिक्शे से कूद गई. उसे मामूली चोटें आईं परंतु उसकी सौभाग्य था कि सामने पुलिस खड़ी थी और उसे रिक्शा से कूदती देखा तो दौड़कर उसके पास पहुंचे.
क्या बात है मैडम, क्या आप रिक्शा से गिर गईं?”
नहीं! वह रिक्शा वाला मुझे अकेली देख कर गलत रास्ते पर ले जा रहा था.”
ऐसी बात है?” यह सुनते ही दो पुलिस वाले गाड़ी लेकर भागे. थोड़ी देर बाद ही वह रिक्शा को मारते हुए उसके पास ले आए उन्होंने शायद उसे बुरी तरह मारा था. उसके माथे से खून बह रहा था .
बहन जी मुझे क्षमा कर दो! अब जीवन भर ऐसी गलती नहीं करूंगा.” वह उसके पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाते लगा तो उसने पुलिस वालों से कहा कि उसके विरूध  कोई कार्रवाई न करे उसे छोड़ दे. इस घटना को तो उसने अपने तक ही सीमित रखा था परंतु रिक्शा वालों में शायद इस घटना का प्रचार हो गई थी क्योंकि उसके बाद उसके साथ ऐसा कोई घटना पेश नहीं आया था.
इस घटना से वह स्‍वंय  बहुत डर गई थी. उसने सोचा था कि वह अपना रूपांतरण दोपहर की नलं में करा ले जाएगा. इसके लिए उसने काफी हाथ पैर भी मारे थे. परंतु बात नहीं बन सकी थी. रूपांतरण करने वाले इतनी कीमत मांग रहे थे जितनी देना उसकी बिसात के बाहर था. वैसे दोपहर की नलं उसके और उसके घर वालों के पक्ष में भी उचित नहीं थी. दोपहर की नलं करने के लिए उसे सवेरे नौ दो बजे घर से निकलना होगा और वापसी शाम सात आठ दस बजे तक संभव ही नहीं हो सकेगी. ऐसी स्थिति में घर, ावफ और बुशरा  का कौन ध्यान रखेगा. तारिक़ ड्यूटी देखेगा या घर और बच्चों को?
इसलिए उसने दूसरी नलं लेने का इरादा बदल दिया था. सवेरे की नलं के लिए उसे साढ़े पांच बजे के समीप  घर से निकलना पड़ता था. इस तरह से वह ठीक वक्त पर स्कूल पहुंच भी जाती थी. स्कूल से दो ढाई बजे के समीप  वापस घर आ जाती थी. तारिक़ दस ग्यारह बजे तक घर में ही रहता था उसके बाद नौकरानी आ जाती उसके आने तक नौकरानी घर और बच्चे संभाली थी. साढ़े पांच बजे घर छोड़ने के लिए उसे चार बजे जागने पड़ता था. जागने के वह अपने और बच्चों के लिए सवेरे का नाश्ता और कभी कभी दोपहर का खाना बनाती थी हाँ! कभी देर हो जाती तो यह जिम्मेदारी नौकरानी पर डालनी पड़ती. सारे काम करके वह ठीक वक्त पर घर से निकल जाती थी. निकलते समय वह हल्का सा नाश्ता कर लेती थी परंतु स्कूल में उसे भूख लग ही जाती थी. अवकाश में उसे हल्का नाश्ता करना ज़रूरी हो जाता था. इसके बाद वह घर आकर ही खाना खाती थी.
बस स्टैंड पहुंचने के बाद उसे पुणे छह बजे बस मिल जाती थी. यह बस भी समझमह थी. कभी बिल्कुल खाली होती थी तो कभी इतनी भीड़ कि पैर रखने के लिए भी मुश्किल से जगह मिलती थी. बस खाली हो या भीड़ उसे उसी से यात्रा करना आवश्यक होता था. अगर वह बस छूट जाए तो निश्चित समय पर स्कूल लगना ना मुमकिन था. क्योंकि 20 किलोमीटर का पल सरा् सा यात्रा उसी बस द्वारा निर्धारित समय में तय करना संभव था. वरना भिवंडी थाना यात्रा? भगवान की शरण. भिवंडी से निकले लोग नासिक पहुँच जाये परंतु थाना जाने के लिए निकले रास्ते में ही फंसे रहे. खराब रास्ता, आवागमन, यात्रियों, बस कंडकटर, चालक के झगड़े. सुबह के समय आवागमन कम होती थी भीड़ कम होने की वजह से कंडकटर का मूड भी अच्छा होता था. इसलिए यह यात्रा निश्चित समय में पूरा हो जाता था. इसके बाद थाने से आधे घंटे का लोकल ट्रेन यात्रा. उसमें बहुत कम परेशानी होती थी. दो चार मिनट में कोई तेज या धीमी लोकल मिल जाती थी. सवेरे का समय होने के कारण लोकल में भीड़ नहीं होती थी. कभी सामान्य डिब्बे में जगह मिल जाती थी तो कभी लीडीज़ डिब्बे में. हाँ! किसी मजबूरी के तहत भीड़ होने की वजह से खड़े होकर यात्रा करना भी भारी नहीं पड़ता था.
लीडीज़ डिब्बे में खड़े होकर यात्रा करने में तो कोई समस्या पेश नहीं आती थी परंतु जनरल डिब्बे में खड़े होकर यात्रा करना औरत के लिए प्रकोप  से कम नहीं है. धक्के शरीर की हड्डी पसलियां एक कर देते हैं. और एक औरत को तो कुछ अधिक ही धक्के लगते हैं और विशेष रूप से नाजुक स्थानों पर. ऐसा लगता है जैसे कई गध अपनी नवकीली चौनचों से उसका मांस नोच रहे हैं. कभी राहत भरा आराम तो कभी प्रकोप  भरा यह सफर तय करने के बाद कुछ क़दमों का पैदल यात्रा और उसके बाद स्कूल. कैसी अजीब बात थी.
तीस चालीस किलोमीटर से आती थी. परंतु कभी कभी वे सबसे पहले स्कूल आने वाली एकमात्र शिक्षक होती थी. या पहले नहीं भी आती थी तो लेट कभी नहीं होती थी. मगर स्थानीय शिक्षक हमेशा देर से आते थे. इसके बाअस्तित्‍व  अगर किसी दिन मजबूरी से एक आध घंटा देर से स्कूल पहुँचती तो लोग नाक भौं चढ़ाने. और देरी से आने के लिए उसे उत्‍तर  देना पड़ता था या उसकी उपस्थिति में लेट मार्क किया जाता था. वह उसके विरोध भी करती तो उसका विरोध बेअसर रहता. क्योंकि स्कूल में कोई लॉबी नहीं था. लॉबी न होने की वजह से उसके विरोध में न तो शक्ति थी और न प्रभाव. जिनकी लॉबी मजबूत थी वह सारे कानून को ताक पर रखकर नौकरी करते थे.
स्कूल से वह साढ़े बारह बजे के समीप  निकलती थी. थोड़ी दूर पैदल चलने के बाद रेलवे स्टेशन और स्थानीय से थाना. और थाना आने के बाद भिवंडी  तक पीड़ा नअक यात्रा.
जब भी वह थाना भिवंडी  के बीच यात्रा करती थी उसे सरा् मसतकीम की याद आती थी. दिन महशर के बाद बन्दों को जिस बाल से बारीक पुल से यात्रा करना होगा जिसके नीचे नरक की आग महक रही होगी. वह यात्रा कितना यातना नाक होगा इसका तो माना जा सकता था. परंतु इस यात्रा को तय करते हुए जो यातना सहन  करनी पड़ती थी उसकी कोई सीमा नहीं थी.
पहले बस की लाइन में घंटों खड़े रहना धक्के खाना. प्रकार के लोगों की नापाक नजरों का निशाना बनना. फिर दानसतगी या नादानसतगी से लगाए उनके हवस नाक धक्कों को अपने शरीर पर झेलना. बस आई और जगह मिल गई तो गनीमत वरना फिर भीड़ में खड़े खड़े यात्रा. भीड़ में घुटता दम और शरीर का निकलता कचूमर. इस यात्रा में यात्रा करने वाले यात्री भी कितने बे हस होते हैं.
कोई खड़ा है इससे उन्हें कुछ लेना देना नहीं होता है. उन्हें जगह मिल गई उनके लिए बस यही काफी है. कोई भूल कर भी यह नहीं सोचे कि कोई औरत खड़ी है. उसे बैठने के लिए जगह देनी चाहिए. अगर कोई इतनी फ़्रापदिली करेगा तो फिर उस फ़्रापदिली मूल्य भी प्राप्त करने की कोशिश करेगा. उस फ़्रापदिली की यातना नाक भुगतान करने से बेहतर तो है धक्के सहते हुए शरीर के बीच घट कर खड़े खड़े यात्रा करें. महिला थकी हुई है, गर्भवती या बीमार है कोई इस बारे में नहीं सोचता. उसकी इन स्थितियों पर दया खा कर कोई उसे जगह देने की कोशिश नहीं करता. यदि जगह देता है तो उससे मूल्य प्राप्त करने की नियत है. चाहे वह किसी भी हालत में हो . फिर ऐसी हालत में यह यात्रा और लंबी हो जाता है.
किसी दिन कोई एक्सटेंडिड हो गया जिसकी वजह से यातायात जाम हो गई और फिर सामान्य आने में घंटों लग गए और एक आधे घंटे की यात्रा दो तीन घंटे शामिल हो गया. घटना नहीं भी हुआ तो बेतरतीब से घुसने वाले वाहनों के कारण से यातायात जाम हो गई.
मामूली मामूली बातें कभी बड़ी बड़ी वजह बन कर कई घंटे बरबाद कर देती हैं. जब वह घर पहुँचती है तो भूख चमकी हुई है. सारा शरीर थकान से टूट रहा है आंखों में नींद समाई होती है. उसे कुछ वझाई नहीं देता है वह क्या करे खाना खाये, आराम करे या सोए उसके आते ही बच्चे उसे घेर लेते हैं वह उससे लिपट कर इतनी देर की दूरी के एहसास को कम करना चाहते हैं. और थकान की वजह से बच्चों के शरीर की निकटता भी उसे बिजली का तार महसूस होती है. बड़ी मुश्किल से पलंग पर लेट कर थोड़ी देर सस्ता कर फिर अपने कामों में लग जाती है. यदि नौकरानी ने खाना नहीं बनाया तो उसे खाना बनाना पड़ता है. इस बीच तारिक़ भी आ जाता है और फिर सब मिल कर खाना खाने बैठ जाते हैं. कभी वह जल्दी आ गई तो सब साथ ही खाना खा लेते हैं. कभी देर हो गई तो निर्धारित समय पर तारिक़ और बच्चे खाना खा लेते हैं. उसे अकेले ही खाना पड़ता है. खाना खाने के बाद एक दो घंटे की नींद का सामान्य है. एक दो घंटे सोने के बाद उसकी सारी थकान दूर हो जाती है. और तरोताज़ा होकर घर के कामों में लग जाती है.
घर के छोटे मोटे काम करना, रात का खाना बनाना, शाम बाज़ार जाकर शॉपिंग करना आदि आदि. परंतु जरूरी नहीं कि प्रतिदिन  जीवन का यह सामान्य है. कभी कभी सामान्य में मामूली बदलाव भी बड़ी यातना नाक साबित होती है. आज बुशरा  को सख्त बुखार आ गया. शाम से ही उसे हल्का हल्का बुखार था. आधी रात के बाद बुखार की तीव्रता बढ़ गई और अब वह तप रही है. उसका स्कूल जाना भी ज़रूरी है. इन्‍सपेकशन  जो है. एक महीने अगर वह स्कूल न तो चल सकता है परंतु इन्‍सपेकशन  के दिन न जाए यह कैसे संभव है?
एक मुहावरा है उस दिन तो बिस्तर मरग से उठ कर भी स्कूल आना जरूरी है. वह कई सालों से कोशिश कर रही है कि उसे भिवंडी का कोई टीचर मिल जाए जो उसके साथ मयूचौल ले. और प्रतिदिन  इस पल सरा् यात्रा से मुक्ति  मिल जाए. चाहे उसमें उसे वेतन में नुकसान सहना पड़े. परंतु आज तक यह संभव नहीं हो सका है. उस तरह कई शिक्षक मुंबई पढ़ाने जाते हैं. और मुंबई से शिक्षक पढ़ाने के लिए भिवंडी  आते हैं.
सब समस्याओं एक हैं. परंतु कोई भी उसे ऐसा हम विचार नहीं मिलता जो यातना से दोनों को उद्धार. घर बाल बच्चे पति भिवंडी  हैं नौकरी के लिए मुंबई जाना पड़ता है. जब तक विवाह  नहीं हुई थी कोई समस्या नहीं था यहयात्रा किसी तकलीफ का कारण नहीं था. हर दिन एक नया अनुभव और एक नया ाीडोनचर होता था. विवाह  के बाद भी कोई समस्या नहीं पैदा हुआ. केवल जल्दी घर पहुँच कर पति को देखने की इच्छा मन में ाँगड़ाईाँ लेती रहती थी. परंतु के बाद बच्चे आ गए और समस्याओं बढ़ते गए.
घर में कोई नहीं था जिनके भरोसे बच्चों को छोड़ कर संतुष्ट हो कर ड्यूटी पर जा सके. सब कुछ नौकरों के सहारे और उनके भरोसे करना पड़ता था पता नहीं नौकर बच्चों का अच्छी तरह ध्यान रखते भी होंगे या नहीं. बस यही प्रशन   हर क्षण मन को कचौकता रहता था. कई बार तो मन में आया नौकरी छोड़ दे. मियाँ बीवी में सलाह भी हुआ परंतु यह तय भावनात्मक फैसला साबित हुआ. जब सामने सच्चाई की प्रवेश दीवारें आईं तो यह फैसला उससे टकरा कर पाश पाश हो गया . अभी अभी नया घर लिया था.
तारिक़ की आधी से अधिक वेतन फ्लैट के लिए ऋण के सप्ताह भुगतान में खर्च हो जाती थी. अल्प आय के सहारे भिवंडी  जैसे महँगे शहर में जिंदा रहना भी हर चीज़ के लिए तरस तरस कर दिन मरना था. इसलिए नौकरी भी आवश्यक थी. और नौकरी के लिए प्रतिदिन  यातना यात्रा भी जरूरी था. बच्चे बुखार में तप रहे थे परंतु फिर भी स्कूल जाना जरूरी. घर पहुंचने की जल्दी परंतु ऐसे हालात पैदा हो गए कि सामान्य से दो चार घंटे लेट लगना पड़े.
प्रतिदिन  समय पर स्कूल जाना हो जाता था. एकाध बार बस या ट्रेन देर से चलने के कारण स्कूल पहुंचने में देरी हो गई और उसी दिन किसी अधिकारी ने स्कूल का दौरा किया. और हाथ में देरी से स्कूल आने का मीमो आ गया. रक्षा में बैठी तो कोई बुशरा  की बीमारी के साथ इन्‍सपेकशन  होने की वजह से जल्दी या समय पर स्कूल पहुंचने का विचार था. समय पर बस भी मिल गई और बैठने के लिए जगह. परंतु रास्ते में बस ड्राइवर एक ट्रक वाले से उलझ गया . उनके झगड़े में पंद्रह मिनट देर हो गई. थाने स्टेशन पर आई तो तेज लोकल निकल चुकी थी. धीमी ट्रेन दस मिनट देर से आई. स्कूल पहुंची तो पूरे आधे घंटे देरी हो गई थी.
शिक्षा अधिकारी आ चुका था और इन्‍सपेकशन  शुरू हो चुका था. “श्रीमती मोमिन! आपको शर्म आनी चाहिए. आप आधा घंटा लेट स्कूल आई हैं. उससे तो यही लगता है आप इन्‍सपेकशन  के दिन लेट आई हैं तो प्रतिदिन  तो कई घंटे लेट आती हूंगी. आप इस तरह लेट स्कूल आकर बच्चों का कितना नुकसान कर रही हैं आपको एहसास है? सरकार आपको वेतन क्यों देता है? “अधिकारी का लेक्चर सुनना पड़ा था. और अपनी विवश्‍ता  पर उसकी आंखों में आंसू आ गए. वह क्या उत्‍तर  दे उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था. दिन भर इन्‍सपेकशन  चलता रहा परंतु इसका कोई बुशरा  में उलझा रहा. पता नहीं कैसी होगी? बारह बजे के समीप  एक ननवा ने आकर खबर दी कि भिवंडी  से तारिक़ का फोन आया है कह रहे हैं कि तुम तुरंत आ जाओ बुशरा  की तबीयत बहुत खराब है.
उसने तारिक़ को ननवा संख्या दे रखा था ताकि यदि उसे कोई ज़रूरी संदेश देना हो तो वहां संपर्क करे. वे भी उसे तुरंत सूचित कर देते थे. वह तुरंत स्कूल से निकल गई. स्टेशन आकर लोकल में बैठी और स्थानीय चल दी. परंतु थोड़ी दूर जाकर रुक गई.
किसी नेता पर हमला हुआ था. उसके विरोध कर लोगों ने ट्रेन सेवा बंद कर दी थी विरोध करने वालों को पुलिस को पटरियों से हटाने में दो घंटे लग गए उसके बाद ट्रेन चली. थाने से स्पेशल रिक्शा कर वह घर आई तो पता चला बुशरा  को अस्पताल में भर्ती कराया गया. अस्पताल में पलंग पे बुशरा  बेहोश लेटी थी उसके हाथ में सरनज लगी हुई थी उससे कतरा कतरा दवाई टपक कर नली द्वारा उसके शरीर में जा रही थी.
बुखार बहुत बढ़ गया था इसलिए ऐडमट करना पड़ा.” तारिक़ ने बताया तो वह अचानक फूट फूट कर रोने लगी. यह सोचकर कि मरने के बाद तो इंसान केवल एक पल सरा् से गुजरना होगा. परंतु जीते जी इसे कितने पल सरा् से गुजरना पड़ता है?
 
अप्रकाशित
मौलिक
————————समाप्‍त——————————–पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

Hindi Short Story Bidai By M.Mubin

कहानी      विदाई    लेखक  एम मुबीन   
दिन भर एक पीड़ा नअक वातावरण घर पर छाया रहा. इस पीड़ा  को या तो वह महसूस कर रहे थे या फिर उनमें . सकता है जो पड़ोसी के काफी समीप  रहे हैं वह भी पीड़ा  को महसूस कर रहे हूं परंतु वह इस बात का इज़हार नहीं कृपा रहे थे.
अपने पीड़ा  व्यक्त न तो वह कृपा रहे थे और न उनमें . इस पीड़ा  व्यक्त यदि वे करते भी तो किस पर करते? इस पीड़ा  व्यक्त केवल उनमें  पर कर सकते थे परंतु क्योंकि उनमें  स्वंय उस पीड़ा  का शिकार थी इसलिए वह भय से उस पर व्यक्त नहीं कृपा रहे थे कि कहीं उनकी बात सुन कर उनमें  फट न पड़े और उन्हें उसे संभालना मुश्किल न हो जाए.
उनमें  स्वंय उस पीड़ा  का शिकार थी उनमें  दर्द कुछ उनसे अधिक था उनमें  को स्‍वंय  को संभालना मुश्किल हो रहा था. वह भी उनके दुखों को समझ रही थी इसलिए उन पर अपने दुख व्यक्त नहीं कृपा रही थी. उनकी तरह उसे भी डर था कि अगर उसने अपने दर्द का इज़हार पर कर दिया तो उनकी सहन  की शक्ति उत्‍तर  दे देगी और वह बेकाबू हो जाएंगे. और उसके बाद उन्हें काबू में लाना मुश्किल हो जाएगा. दोनों चोर नज़रों से बार बार आदिल के चेहरे को देखते थे. काश एक क्षण के लिए उसके चेहरे पर पीड़ा  उभर आए जिसमें दोनों गिरफ्तार थे.
अगर एक क्षण के लिए भी आदिल के चेहरे पर पीड़ा  का राय उभरती तो वह समझते उनकी जीवन भर की मुहब्बत, स्नेह और ममता रंग लाई है. आदिल ने अपने नाम की तरह उनके साथ न्याय करते हुए उनकी प्रेम मोहब्बत, ममता और अपनाईत का इक़रार कर लिया है. परंतु दिन भर में एक बार भी एक क्षण के लिए भी आदिल के चेहरे पर ऐसा कोई राय नहीं उभरा था. इस बात का एहसास उनके पीड़ा  को और अधिक बढ़ा रहा था. आदिल के इस रवैये के बाद यह कहकर दिल को बहलाना पड़ रहा था.
जब अपना ही खून सफेद हो गया है. उसके मन में इतने जित्तण से उसकी परवरिश करने वाले बूढ़े मां बाप के लिए कोई सहानुभूति की भावना नहीं है तो फिर लबनी से क्या शिकायत करें. वह तो पराए है उसने वही रास्ता चुनाजो हर कोई अपने सुख के लिए चिन्ता है. दुख तो इस बात का है कि लबनी चुने रास्ते पर चलने के लिए आदिल तैयार हो गया था. लबनी अपने साथ आए आदमियों को एक चीज़ बता कर उसे ले जाकर नीचे खड़े ट्रक में रखने का आदेश दे रही थी. वह जिस चीज़ की तरफ़ इशारा करती नौकर उस चीज़ को उसकी दी हुई निर्देश के अनुसार उठाकर नीचे रख आते. जब कोई चीज़ उनके घर से निकल कर नीचे खड़े ट्रक में पहोनचाई जाती तो उनके दिल एक ठेस लगती.
चाहे फिर वह लबनी की चीज़ हो. या फिर उनकी अपनी. लबनी यदि उनकी किसी भी चीज़ की तरफ़ इशारा कर के नौकरों को नीचे ट्रक में रख आने के लिए कहती भी तो भी वह उसके विरोध नहीं कर सकते थे. आदिल केवल एक वाक्य ने उनके विरोध का अधिकार भी छीन लिया था.
अम्‍मी , अब्बा! अगर हम आपकी कोई चीज़ भी ले जा रहे हैं तो परमेश्वर के लिए उस पर आपत्ति कर कोई मतभेद न बढ़ाए. हमारी नयी गहस्थी है हमारे पास गहस्थी के लिए आवश्यक चीजें नहीं हैं, इसलिए जिन चीजों की जरूरत पड़ सकती है ऐसी सभी चीजें ले जा रहे हैं जब वे चीजें हमारे पास आ जाएगी या हम खरीद लेंगे तो हम वे चीजें आपको लौटा देंगे. ”
बेटे! तुम अपनी और हमारी चीज़ों की बात कर रहे हो. यह घर, उस घर की हर चीज़ तुम्हारी है. हमारा क्या है? हमारे जीवन ही कितने दिनों की है? हमारे मरने के बाद तो यह सब तुम्हारा ही होने वाला है. यदि जीवन में तुम्हारा हो गया तो कौन सी बुरी बात है. हमारे पास दो समय की रोटी बनाने के लिए दो बर्तन भी रह गए तो हमारे लिए वही काफी है. “उन्होंने कहा तो सही परंतु उनकी आंखों में आंसू आ गए परंतु इन आंसुओं का न तो आदिल पर कोई असर हुआ और न ही लबनी पर. घर की एक एक वस्‍तु  जाती रही. हर चीज़ जाने के बाद वह उनमें  के चेहरे की समीक्षा करते. उन्हें उनमें  के चेहरे पर दुख के बादल छाए दिखते तो कभी उन्हें उनमें  आँखों में एक विरोध दिखाई देता.
देखो वह मेरी अम्मी का दिया गलदान लिए जा रही है और वह तसबीह मेरे अब्बा मेरे लिए हज से लाए थे, वह पान्दान मेरी बहन मेरे लिए मुरादाबाद से लाई थी, वह तो पान नहीं खाती आधुनिक ज़माने की लड़की जो है. उसे पान्दान की क्या जरूरत? फिर वह पान्दान क्यों लिए जा रही है? उसे पार्टियों, शॉपिंग और सहेलियों के घर जाने से ही फुरसत नहीं मिलती कि कभी एक समय की नमाज़ परख ले. फिर वह तसबीह क्यों ले जा रही है?उसके पास एक से बढ़कर एक कीमती सुधार की चीज़ें हैं फिर वह मेरा गलदान क्यों लिए जा रही है? परंतु उनकी आँखों में देखते ही उनमें  को जैसे आदेश मिल जाता था कि वह विरोध न करे. और उनमें  चाह कर भी विरोध नहीं कृपा रही थी. रात में आदिल ने अपना फैसला उन्हें और उनमें  को सुनाया था.
अब्बा! आप जानते तो हो ही गया होगा मैंने अपने लिए अलग घर ले लिया है. लबनी और अम्‍मी  की रात दिन की नाचाकी किसी दिन कोई बड़ा हादसा न बन जाए इस भय से मुझे यह कदम उठाना पड़ा. पिछले दिनों घटनाओं में हमारे संबंध तो कुछ तनावपूर्ण हो ही गए हैं. मैं नहीं चाहता कि यह तनाव और बढ़े. और हमारे बीच तलखयाँ बढ़ती जाएं. इसलिए मैंने यह कदम उठाया है. और यह सही है मुझे भी घर की जिम्मेदारी समझने दीजिए लबनी पर भी गहस्थी का बोझ आने दीजिए. हम एक दूसरे से दूर रहेंगे तो हमारे बीच प्यार कायम रहेगी. जब भी एक दूसरे का दिल चाहेगा हम एक दूसरे से मिलने आ जाया करेंगे. आपको मेरे घर आने से कोई नहीं रोके जाएगा उम्मीद है हमारे यहां से जाने के बाद भी आप हमें यहां आने से नहीं रोकें है. ”
तो हम को छोड़ कर जा रहा है, हम? अपने माँ बाप को? उनके माँ आपको जिन्होंने तुझे पैदा किया. पाला, पोसा , पढ़ाया, लिखा और योग्य बनाया कि दुनिया में आज तेरा एक स्थान है. हर कोई तेरा नाम साहित्य से लेता है तो आज अपनी पत्नी के लिए मां बाप को छोड़कर जाने की बात कर रहा है? ”
अम्‍मी ! मेरी बात को समझने की कोशिश क्यों नहीं करतीं. में अपनी जान से ज़्यादा चाहता हूँ और मैं नहीं चाहता हूँ कि मेरी या लबनी की वजह से आपको कुछ हो जाए. इसलिए माता! आप मेरे भावनाओं कोसमझने की कोशिश करें. मैंने जो कदम उठाया है कोई गलत कदम नहीं है. ”
मां बाप, अपने घर को छोड़कर जा रहा है और कह रहा है कोई ग़लत क़दम नही है? यह सब किसके लिए कर रहा है, अपनी पत्नी के लिए नां? अपनी पत्नी के कहने पर तो आज 25 वर्षों का रिश्ता तोड़ने के लिए तैयार हो गया? इस पत्नी के लिए जिसने अभी तेरे साथ ठीक से छह महीने भी नहीं गुज़ारे हैं अगर तुझे माँ बाप से उतना ही प्यार है जितना प्यार उस समय हमसे जता रहा है तो प्यार का सबूत भी दे. ”
उनमें  की बात सुन कर आदिल के चेहरे पर भूकंप के टिप्पणी उभरे.
उनमें ! तुम चुप रहो.” उन्होंने उनमें  को चुप कराया.
ठीक है पुत्र! अगर तुम्हें इसी में अपनी भलाई होती है तो हम तुम्हारी सुशीों के बीच नहीं आएंगे.” उनकी बात सुन कर आदिल तो अपने कमरे में चला गया परंतु आधी रात तक और उनमें  के बीच हुज्जत और तकरार चलती रही.
आपने उसे इतनी आसानी से घर छोड़कर चले जाने की अनुमति दे दी, आपने उसका अंजाम सोचा है, लोग क्या कहेंगे? यह सब उसकी लगाई आग है हमारी मौजूदगी में उसकी स्वतंत्रता सलब हो जाती है. उसे स्वतंत्रता नहीं मिलती है. जो चाहती है हम कारण नहीं पाती. जब हम ही नहीं होंगे तो उसे हर तरह की स्वतंत्रता मिल जाएगी. वह आदिल को बर्बाद करके रख देगी. ऐसी ऐसी हरकतें करेगी जिन्हें सुनकर हमारा सिर शर्म से झुक जाएगा. अपने करतूतों से वह हमारे परिवार के नाम पर धबह लगा देगी, वह आदिल को बर्बाद कर देगी. ”
जब वह हमारे घर में नहीं रहेगी तो फिर उसकी हरकतों से हमें क्या लेना देना? और आदिल कोई दूध पीता बच्चा नहीं है. उसे अच्छे बुरे की तमीज़ है. ग़लत बातों पर उसे रोके है.”
अरे क्या उसे रोके है, अगर उसे इतनी ही तमीज़ होती तो वह उसके कहने पर घर छोड़ने की बात नहीं करता.”
अगर वह आज कोई गलती कर रहा है तो जब उसे अपनी गलती का एहसास हो तो अपनी इस गलती पर नादम भी होगा.”
अपनी ग़लती पर लज्जा पता नहीं कब उसे महसूस हो परंतु आज तो वह अपनी जीवन नष्ट कर रहा है.”
हम ने जीवन भर उसे उंगलियां पकड़ कर चलना सिखाया परंतु आज वह इतना बड़ा हो गया है कि उसे हमारी मार्गदर्शन की जरूरत नहीं है. इसलिए उसने जो रास्ता चुना होगा ठीक ही होगा.” यूँ वह आदिल के फ़ैसले को सही साबित करने की कोशिश कर रहे थे परंतु आदिल के इस फैसले ने एक बारूद का काम करते हुए उनके अस्तित्व की धज्जियां उड़ा दी थीं. उनका वह बेटा उनसे अलग हो रहा था. जिसे एक क्षण के लिए भी वह अपनी नज़रों से दूर नहीं करते थे. परंतु क्या कर सकते थे? वह अपने आप को बड़ा लाचार और बेबस महसूस कर रहे थे. अगर वह आदिल के इस फैसले का विरोध करते तो उनमें  को मुख्य मिल जाती उनमें  आदिल के अलग होने के पक्ष में नहीं थी. और एक तज़ाद खड़ा हो जाता.
लबनी और आदिल किसी भी सूरत में उनके साथ रहने के लिए तैयार नहीं होते और वे इसके लिए तैयार नहीं होते तो तज़ाद बढ़ता. प्राप्त यही होता कि जीत आदिल और लबनी की होती उन्हें और उनमें  को हआभमत उठानी पड़ती. और लोगों को तमाशा देखने का मौका मिल जाता. इसलिए अपने दिल पर पत्थर रखते हुए उन्होंने आदिल के फैसले को स्वीकार किया था.
रात न वह सो सके और न ही उनमें  सो सकी. देर रात तक आदिल के कमरे से और लबनी की खुसर पसर की आवाज़ें आती रहीं. पलंग पर वह चुप चाप चित लेटे छत को ताकते रहे. उनमें  दूसरी तरफ करवट लिए दीवार ताकत रही. दोनों के मन में एक तूफान उठा रहा. उनकी आंखों के सामने आदिल के जन्म से ता दम तक एक एक क्षण, एक घटना किसी फ़िल्म की तरह चकरा रहा.
कितनी मन्नतों, मुरादों, मुश्किलों और मुसीबतों के बाद आदिल का जन्म हुआ था. विवाह  के पांच साल के बाद भी जब उनके घर कोई औलाद नहीं हुई तो वह औलाद की खुशी से निराश हो गए थे. दोनों ने अपना चेकअप कराया था डॉक्टरों ने बताया था कि उनमें कोई कमी नहीं है. फिर भी वह बच्चों के सुख से वंचित थे. उसे उनकी तक़दीर कम नसीब समझा जाए या कुदरत का मज़ाक़ या संकट. हजारों उपचार, मन्नतों और मुरादों के बाद उनके बाप बनने की खुश खबरी मिली थी. इस खबर को सुन कर उनकी हालत पागलों सी हो गई थी. उनमें  से उसकी खुशी संभाले नहीं संभल रही थी. उनके करीबी रिश्तेदार और कृपया फरमाउं में भी इस खबर को सुनकर खुशीलहर दौड़ गई थी. उन्होंने सबसे पहले यह खबर उन्हें सुनाई थी. क्योंकि उनकी बातें पाँच सालों तक उनके लिए उनमें  के लिए बड़ी अदिति का कारण बनी थीं. लोग हज़ारों तरह की बातें करते थे. कभी कहते उनमें  में कोई कमी है, कभी किसी कमी का आरोप लगाते. कभी कहते दोनों स्‍वंय  अब बच्चा नहीं चाह रहे हैं कुछ दिन और ऐयाशी  करना चाहते हैं. कभी उन्हें सलाह देते उनमें  उन्हें औलाद का सुख नहीं दे सकती. औलाद के लिए वह दूसरी विवाह  कर लें.
कभी उनमें  को समझाते उनसे उसे औलाद नहीं हो सकती इसलिए उनके पीछे वह क्यों जीवन तबाह कर रही है. अभी से संभल जाए और होश से काम ले उसकी अच्छी खासी नौकरी है वह स्‍वंय  कफ़ेल है. चाहे तो उनसे तलाक लेकर किसी पुरुष से विवाह  कर सकती है जो उसे औलाद का सुख दे. कभी उड़ाते कि दोनों नौकरी पेशा है. घर में कोई ऐसा नहीं है जो उनके बाद बच्चे की देखरेख करें इसलिए इस ज़िम्मेदारी से घबरा कर चाहते हैं कि उन्हें औलाद न हो.
जब भी वह किसी की बात सुनते उनके दिल को चोट सी लगती. उनमें  की आँखों से टिप टिप आँसू गिरने लगते और दहाड़ें मार मार कर रोने लगती और उनमें  को संभालना मुश्किल हो जाता. वह भुराई आवाज़ में कह उठती.
मुझ में ही कोई कमी है. आपको औलाद का सुख नहीं दे सकती आप मेरे पीछे जीवन बर्बाद न करें और किसी दूसरी लड़की से विवाह  कर लें. ताकि वह आपको औलाद का सुख दे सके.” उनमें  को लाउत्‍तर  करने के वह उनमें  के शब्द उसे लूटा देते तो उनमें  तड़प उठती.
भगवान के लिए ऐसी बातें मुंह से न नकालए. एक क्षण के लिए भी आप से अलग होने की कल्पना नहीं कर सकती.” इतने सालों से बाद उन्हें औलाद का सुसमाचार मिली थी.
आदिल की जन्म भी परीक्षा से कम नहीं थी. एक आग का दरिया था जिसे दोनों पार करना था. आदिल की जन्म के बाद ऐसे हालात पैदा हो गए कि उनमें  जीवन खतरे में पड़ गई.
आखिर ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों ने उनमें  और आदिल दोनों को बचा लिया परंतु इस कीमत पर कि उनमें  अब कभी मां नहीं बन पाएगी.
आदिल को पाकर उन्होंने खुशी खुशी यह रकम भी अदा कर दी. आदिल को पाकर उन्हें लगा जैसे उन्हें विश्व की सबसे बड़ी नेमत मिल गई. उसके बाद उनके मन में परमेश्वर की किसी नेमत की तमन्ना ही नहीं है. तीन महीनोंतक उनमें  घर में रही. उसके बाद आदिल को छोड़कर स्कूल जाने का कड़ा परीक्षा आगया. भावनाओं में यह फैसला भी किया गया कि आदिल के लिए उनमें  नौकरी छोड़ दे. क्योंकि उनका ऑफिस में दिल नहीं लगता है. आदिल में ही ध्यान लगा रहता है. परंतु यह तय किया गया कि आदिल की भलाई के लिए जीवन संवारने के लिए उनमें  नौकरी जारी रखेगी क्योंकि यह तय किया गया उनमें  एक एक पैसा आदिल की जाति पर खर्च कर उसे एक नेक, सालेह, अच्छा और सफल इंसान बनाया जाएगा. आदिल कभी नौकरों, पड़ोसियों या कभी रिश्तेदारों के पास छोड़ कर दोनों ड्यूटी पर निकल जाते. ऑफिस में उनका दिल नहीं लगता था. नज़रें घड़ी की सोईों पर लगी रहती थीं. जिस समय घड़ियाँ वह घंटा बताती जब उनमें  स्कूल से घर आ जाती तो उन्हें आराम मिल जाता.
अब आदिल सही हाथों में पहुँच गया है. अब चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. जैसे आदिल बड़ा हो रहा था इसके लिए उनके दिल में प्यार बढ़ती जा रही थी. उसकी मासूम हरकतें, आवाज़ें, बातों से अधिकार इस के लिए दिल में प्यार उमड़ आता था और वह उसे लिपटा लेते थे.
आदिल को मामूली छींक भी आ जाती तो उनका दिल चिंता से ग्रस्त हो जाता था. आदिल के शरीर का तापमान मामूली भी बढ़ जाता तो उनकी सारी रात आंखों में कट जाती थी. आदिल को मामूली बुखार भी आ जाता तो बड़े से बड़े डॉक्टर का इलाज कराया जाता.
बड़ा हुआ तो शिक्षा की चिंता सताने लगी. उसे सबसे अच्छे स्कूल में भर्ती किया गया और शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा. दो घंटे उसे पढ़ाते थे और दो घंटे उनमें . वैसे आदिल काफी बुद्धिमान था. फिर उनकी प्रशिक्षण और शिक्षा तो सोने पर सहाथान का काम करने लगी. वह हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आता. इसका नतीजा यह निकला कि दसवीं परीक्षा में बोर्ड के पहले दस सफल छात्रों में स्थान पा गया.
आदिल सिविल इंजीनियर बनना चाहता था. उन्होंने भी उसकी इच्छा के आगे अपना सिर खुम किया. उन्होंने आदिल के बारे में बहुत कुछ सोच रखा था परंतु वह आदिल की ईच्‍छा के ख़िलाफ़ कोई काम नहीं करना चाहते थे आदिल की रुचि का ही काम करना चाहते थे अच्छे नंबरों के कारण उसे आसानी से एक अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल गया. पढ़ाई में वह तेज था अपने लेख में बहुत मेहनत करने लगा.
द्वारा शिक्षा रहते हुए भी वे एक सिविल इंजीनियर के पास जाने लगा और वह काम करने लगा जिसे उसे परीक्षा पास करने के बाद करना था. दो तीन सालों में ही वह अपने क्षेत्र का इतना माहिर हो गया कि बड़े से बड़े इंजीनियर भी उसका मुक़ाबला नहीं कर पाए थे. उसके बनाए योजना, नकशों और खाकों में कोई भी गलती नहीं निकाल पाता था. नक्शे, चित्र और योजना वह करता था परंतु इस पर मुहर किसी और की लगती थी. बाद में नकशों पर बनने वाली इमारतें भी इसी द्वारा निगरानी निर्माण होती थी.
डिग्री मिलने से पहले ही उसका इतना नाम हो गया था और उसे इतना अनुभव प्राप्त हो गया था जिसे पाने में औरों को कई साल लग जाते थे. परीक्षा में शामिल नंबरों से सफल रहा. उसके सफल होते ही एक बहुत बड़ी कंस्ट्रक्शन फर्म उसे नौकरी मिल गई. अच्छी वेतन के साथ उसे गाड़ी और बंगला मिला. परंतु उसने बांग्लादेश यह कहकर लौटा दिया कि अपनी अम्मी और अब्बा के साथ उस छोटे से घर में रह कर उनके सारे सपने पूरे कर उनकी सेवा करना चाहता हूँ जो उन्होंने मेरे लिए देखे हैं.
एक सपूत बेटे की तरह वह अपनी सारी वेतन लाकर उन्हें दे देता था. ऑफिस से आने के बाद भी उनके घर आदिल से मिलने वालों का मेला लगा रहता था. वे चाहते थे कि आदिल कार्यालय से आने के बाद उनका कामकरे. वह उनका काम करता तो उसे जितनी वेतन मिलती थी उससे अधिक पैसा मिल जाता था. कई लोगों ने सुझाव दिया कि वह नौकरी छोड़कर अपना स्‍वंय  का कारोबार शुरू कर दे. यह कोई मुश्किल काम नहीं था.
अंत आदिल ने अपना अलग व्यवसाय शुरू कर दिया और दिन दोनिय रात चौगनी उन्नति करने लगा. इस बीच दोनों रिटायर हो गए थे. इन सभी सफलताओं के बाद माँ बाप का बच्चों के लिए बस एक ही अंतिम सपना होता है. औलाद का श्रेय देखे और बहू को घर देखने का सपना. यह सपना भी पूरा हो गया. लबनी बहू बनकर उनके घर आ गई. लबनी एक बहुत अमीर कबीर घराने की चश्म और चिराग थी. खूबसूरत इतनी कि उसकी सुंदरता के सारे शहर में चर्चे थे. ऐसी पत्नी पाकर कौन खुश नहीं हो सकता था. परंतु कुछ दिनों में ही उन्होंने महसूस किया कि लबनी और उनमें  के विचारों में ज़मीन आसमान का अंतर है. जो बातें लबनी को पसंद थीं वह उनमें  को पसंद नहीं थीं. उनमें  लबनी को जिस रूप में देखना चाहती थी वह लबनी के लिए एक दकियानूसी रूप था.
पहले दबे शब्दों में बाद में ऊँची आवाज़ में मुद्दों पर दोनों में बहस व तकरार हुई. ऐसी हालत में वह मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए भी उनमें  को दबाते थे. आदिल भी तमाशाई बना रहता. कभी लबनी की जिम्मेदारी करते हुए मां को समझाता कि वह बड़ी है उसे उन छोटी बातों को अनदेखा कर देना चाहिए. या फिर कभी माँ का पक्ष करता.
आखिर वही हुआ जिसके कल्पना से ही कभी कभी वह कांप उठते थे. आदिल और लबनी ने अलग रहने का फैसला कर लिया. और वह घर छोड़ कर जा रहे थे. और घर पर एक पीड़ा नअक सन्नाटा छाया हुआ था. उनके अंदर दर्द का नदी ठाठें मार रहा था रात तक वही सन्नाटा घर में बरकरार रहा.
आदिल हमें छोड़कर चला गया, उसने पत्नी के लिए हमें छोड़ दिया, हमारी मोहब्बतों का हमें यह सिला दिया? आखिर हमारी प्यार में ऐसी क्या कमी रह गई थी जो उसे बांध कर हमारे पास नहीं रख सकती थी.” उनमें  घर की दीवारों को घूरते हुए पागलों की तरह बड़बड़ा रही थी. “अब उसके जाने का गम न करो और स्‍वंय  को संभाल.” उन्होंने उसे समझाया. समझ लो ख़ुदा ने हमें बेटा नहीं बेटी दी थी. बेटी तो पराए अमानत होती है. एक न एक दिन तो उसे अपने घर जाना होता है. समझ लो आज हमारी बेटी की विवाह  हो गई है और आज वह हमसे बिछड़ कर अपने घर चली गई है. “उनकी इस बात को सुनते ही उनमें  फूट फूट कर रोने लगी.
पता नहीं यह किसके ोसाल के आंसू थे. बेटे या बेटी के?
अप्रकाशित
मौलिक
————————समाप्‍त——————————–पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
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जि ठाणे महा
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Hindi Short Story Rehai By M.Mubin

कहानी      रिहाई    लेखक  एम मुबीन   
दोनों चुपचाप पुलिस स्टेशन के कोने में रखी एक बेंच पर बैठे साहब के आने का इंतजार कर रहे थे. उन्हें वहां बैठे तीन घंटे हो गए थे. दोनों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि एक दूसरे से बातें करें. जब भी दोनों एक दूसरेको देखते और दोनों की नज़रें मिनतीं  तो वह एक दूसरे को दोषी मानते.
दोनों में से दोष किसका था, वह स्‍वंय  अभी तक यह तय नहीं कर पाए थे. कभी लगता वे अपराधी हैं कभी लगता जैसे एक पाप के आरोप  में दूसरे को सज़ा मिल रही है. समय गुजारे के लिए वह अंदर चल रही गतिविधियों की समीक्षा करते. उनके लिए यह जगह बिल्कुल अजनबी थी. दोनों को याद नहीं आ रहा था कि कभी उन्हें किसी काम से भी उस जगह या ऐसी जगह जाना पड़ा था. या कभी जाना पड़ा हो तो भी वह स्थान ऐसा नहीं था .
सामने लॉक अप था. छ सलाखों वाले दरवाजे और दरवाजों के छोटे छोटे कमरे. हर कमरे में आठ दस लोग बंद थे. कोई सो रहा था तो कोई ऊँघ रहा था, कोई आपस में बातें कर रहा था तो कोई सलाखों के पीछे से झांक कर कभी उन्हें तो कभी पुलिस स्टेशन में आने वाले सिपाहियों को देख कर भददे अंदाज़ में मुस्कुरा रहा था.
उनमें से कुछ के चेहरे इतने भयानक और कर्कश थे कि उन्हें देखते ही अंदाज़ा हो जाता था कि उनका संबंध अपराधियों से है या वह स्‍वंय  अपरधी हैं. परंतु कुछ चेहरे बिल्कुल उनसे मिलते जुलते थे. मासूम भोले भाले. सलाखों के पीछे से झांक कर बार बार उन्हें देख रहे थे. जैसे उनके भीतर उत्सुकता जागा है.
“तुम लोग शायद हमारे समुदाय से संबंध रखते हो. तुम लोग यहां कैसे ऑन फंसे?”
 वह जब भी चेहरों को देखते तो दिल में एक ही विचार आता कि देखने में  तो यह भोले भाले मासूम और शिक्षित लोग लगते हैं यहां कैसे  इस नरक में ऑन फंसे.
बाहर दरवाजे पर दो बंदूक धारी  पहरा दे रहे थे. लॉक आपके पास भी दो सिपाही बंदूक लिए खड़े थे. कोने वाली मेज़ पर एक वर्दी वाला लगातार कुछ लिख रहा था. कभी कोई सिपाही आकर उसकी मेज़ के सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाता तो वह अपना काम छोड़ कर उससे बातें करने लगता. फिर उसके जाने के बाद अपने काम में व्यस्त हो जाता था.
उसके बाजू में एक मेज़ खाली पड़ी थी. उस मेज़ पर दोनों के ब्रेफ केस रखे हुए थे. उनके साथ और भी लोग रेलवे स्टेशन से पकड़ कर लाए गए थे उनका सामान भी उसी मेज़ पर रखा हुआ था. वे भी साथ ही बेंच पर बैठे थे परंतु किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि एक दूसरे से बातें कर सके. एक दो बार इनमें से कुछ लोगों ने आपस में बातें करने की कोशिश की थी. उसी समय सामने खड़ा सिपाही गरज उठा.
हे चुप! आवाज़ मत निकालो, शोर मत करो. यदि शोर किया तो लॉक अप में डाल दूंगा.”
इसके बाद उन लोगों ने कानाफूसी में भी एक दूसरे से बातें करने की कोशिश नहीं की थी. वह सब एक दूसरे के लिए अजनबी थे. या संभव है एक दूसरे केा  जानते हों जिस तरह वह और अशोक एक दूसरे के जान पहचानवाले  थे. ना केवल जान पहचान वाले  बल्कि दोस्त थे. एक ही ऑफिस में वर्षों से काम करते थे और साथ ही इस संकट  में गिरफ्तार हुए थे.
आज जब दोनों ऑफिस से निकले थे तो दोनों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इस तरह संकट  में गिरफ्तार हो जाएंगे.
ऑफिस से निकलते हुए अशोक ने कहा था. “मेरे साथ जरा बाजार चलोगें ? एक छुरी का सेट खरीदना है. पत्नी कई दिनों से कह रही है, परंतु व्यस्तता के कारण बाजार तक जाना नहीं हो रहा है.”
चलो!” उसने घड़ी देखते हुए कहा. मुझे सात बजे की तेज लोकल पकड़ना है और अब छह बज रहे हैं. इतनी देर में हम यह काम निपटा सकते हैं. “वह अशोक के साथ बाजार चला गया था.
एक दुकान से उन्होंने छु‍िरयों का सेट खरीदा था. उस सेट में विभिन्न आकार की आठ दस छुरियां थीं. उनकी धार बड़ी तेज थीं और दुकानदार का दावा था प्रतिदिन  उपयोग के बाद भी दो सालों तक उनकी धार खराब नहीं होगी क्योंकि यह स्टेन लैस स्टील की बनी हुई हैं मूल्य भी वाजिब था.
भुगतान कर अशोक ने सेट अपनी अटैची में रखा और वह बातें करते हुए रेलवे स्टेशन की ओर चल दिए. स्टेशन पहुंचे तो सात बजने में बीस मिनट बाकी थे दोनों की तेज लोकल के आने में पूरे बीस मिनट बाकी थे.
तेज ट्रेन वाले प्लेटफार्म पर अधिक भीड़ नहीं थी धीमी ट्रेन वाले प्‍लेटफार्म  पर अधिक भीड़ थी लोग शायद बीस मिनट तक किसी गाड़ी का इंतजार करने की तुलना में धीमी गाड़ियों से जाना पसंद कर रहे थे.
अचानक वह चौंक पड़े. प्‍लेटफार्म  पर पूरी पुलिस  फोर्स   आई थी. और उसने प्‍लेटफार्म के हर व्यक्ति को अपनी जगह स्तब्ध कर दिया था. दो तीन सिपाही आठ आठ दस दस लोगों को घेर लेते उनसे पूछताछ कर उनके सामान और सूट केस, अटैचयों की तलाशी लेते कोई संदेहास्पद   वस्तु न मिलने की स्थिति में उन्हें जाने देते या यदि उन्हें कोई संदिग्ध या ईच्छि‍त  वस्तु मिल जाती तो तुरंत दो सिपाही उस व्यक्ति को पकड़ कर प्‍लेटफार्म से बाहर खड़ी पुलिस जीप में बिठा आते.
उन्हें भी तीन सिपाहियों ने घेर लिया था.
क्या बात है हवलदार साहब?” उसने पूछा. “यह तलाशियां क्यों ली जा रही हैं?”
हमें पता चला है कि कुछ आतंकवादी   इस समय प्‍लेटफार्म से हथियार ले जा रहे हैं. उन्हें गिरफ्तार करने के लिए यह कार्रवाई की जा रही है.” सिपाही ने उत्‍तर  दिया.
वह कुल आठ लोग थे जिन्हें उन सिपाहियों ने घेर रखा था उनमें से चार की तलाशियां हो चुकी थीं और उन्हें छोड़ दिया गया था. अब अशोक की बारी थी.
शारीरिक तलाशी लेने के बाद अशोक को ब्रेफ केस खोलने के लिए कहा गया. ब्रेफ केस खोलते ही एक दो चीजों को उलट पलट कर देखने के बाद जैसे ही उनकी नज़रें छु‍िरयों के सेट पर पड़ी वह उछल पड़े.
 “बाप रे इतनी छुरियां? साब हथियार मिले हैं. “एक ने आवाज देकर थोडी दूर खडे इन्सपेक़्टर को बुलाया.
हवलदार साहब यह हथियार नहीं हैं. सब्जी तरकारी काटने की छु‍िरयों का सेट है.” अशोक ने घबराई हुई आवाज़ में उन्हें समझाने की कोशिश की.
हां हवलदार साहब यह घरेलू उपयोग की छु‍िरयों का सेट है हमने अभी बाजार से खरीदा है.” उसने भी अशोक की सफाई पेश करने की कोशिश की.
तो  तू भी इसके साथ है, तू भी इसका साथी है?” कहते हुए एक सिपाही ने तुरंत उसे दबोच लिया. दो सिपाही पहले ही अशोक को दबोच चुके थे. “हम सच कहते हैं हवलदार साहब यह हथियार नहीं हैं यह घरेलू उपयोग की छु‍िरयों का सेट है.” अशोक ने एक बार फिर उन लोगों को समझाने की कोशिश की.
चुप बैठ!” एक जोरदार डंडा उसके सिर परपड़ा.
हवलदार साहब आप मार क्यों रहे हैं?” अशोक ने विरोध किया.
मारें नहीं तो क्या तेरी पूजा करें. यह हथियार साथ लिए फिरता है. दंगा  फसाद  करने का इरादा है. ज़रूर तेरा संबंध आतंक  संगठनों से है.” एक सिपाही बोला और दो सिपाही उस पर डंडे बरसाने लगे. उसने अशोक को बचाने की कोशिश की तो उस पर भी डंडे पडने लगे. उसने खैरियत इसी में समझी कि चुप रहे. दो चार डंडे उस पर पड़ने के बाद हाथ रुक गया. परंतु अशोक का बुरा हाल था. वह जैसे ही कुछ कहने के लिए मुंह खोलता उस पर डंडे बरसने लगते और विवश उसे चुप होना पड़ता.
क्या बात है?” इस बीच इंस्पेक्टर वहां पहुंच गया जिसे उन्होंने आवाज दी थी.
साब उसके पास हथियार मिले हैं.”
उसे तुरंत थाने ले जाओ.” इन्‍सपेक्‍टर  ने आदेश दिया और दूसरी ओर बढ़ गया. चार सिपाहियों ने उन्हें पकड़ा और घसीटते हुए प्लेटफार्म के बाहर ले जाने लगे. बाहर एक पुलिस जीप खड़ी थी. इस जीप में उन्हें बिठा दिया गया जीप में दो चार आदमी बैठे थे. इन सब को चार सिपाहियों ने अपनी सुरक्षा में ले रखा था. उसी समय जीप चल पड़ी.
आप लोगों को किस आरोप में गिरफ्तार किया गया है?” जैसे ही उन लोगों में से एक आदमी ने उनसे पूछने की कोशिश की एक सिपाही का फ़ोलादी मक्का उसके चेहरे पर पड़ा.
चुपचाप बैठा रह नहीं तो मुंह तोड़ दूँगा.” इस आदमी के मुंह से खून निकल आया था वह अपना मुँह पकड़ कर बैठ गया. और मुंह से निकलते खून को जेब से रूमाल निकाल कर साफ करने लगा.
पुलिस स्टेशन लाकर उन्हें उस कोने की खंडपीठ पर बैठा दिया गया और उनका सामान उस मेज़ पर रख दिया गया जो शायद इंस्पेक्टर की थी. जब वह पुलिस स्टेशन पहुंचे तो निरंतर लिखने वाले ने लाने वाले सिपाहियों से पूछा.
ये लोग कौन हैं? उन्हें कहां से ला रहे हो?”
रेलवे स्टेशन पर छापे के दौरान पकड़े गए हैं उनके पास से संदिग्ध चीजें या हथियार बरामद हुए हैं.”
फिर उन्हें यहाँ क्यों बैठा रहे हो? उन्हें लॉक अप में डाल दो.”
साहब ने कहा है कि उन्हें बाहर बिठा कर रखो वह आकर उनके बारे में फैसला करेंगे.” बेंच पर बैठा पहले उनकी अच्छी तरह तलाशी ली गई थी. कोई संदेहास्पद वस्‍तु  बरामद नहीं हुई यही गनीमत था. उनकी पुलिसस्टेशन आने की थोड़ी देर बाद दूसरा जथा पुलिस स्टेशन पहुंचा. वह भी आठ दस लोग थे शायद उन्हें किसी दूसरे इंस्पेक्टर ने पकड़ा था इसलिए उन्हें दूसरे कमरे में बिठाया गया. और भी इस तरह के कितने लोग लाए गए उन्हें अंदाज़ा नहीं था क्योंकि वह केवल कमरे की गतिविधियां देख पा रहे थे जिसमें वह मकीद थे.
नए सिपाही आते तो उन पर एक उचटती नज़र डालकर अपने साथियों से पूछ लेते. “यह कहां से पकड़े गए हैं. जुए घर से, ब्लू फिल्म देखते हुए या वेश्‍याओं के अड्डों से?”
हथियारों की खोज में. आज रेलवे स्टेशन पर छापा मारा था. वहां पर पकड़े गए हैं.”
क्या बरामद हुआ?”
पर्याप्त तो कुछ भी बरामद नहीं हो सका. खोज जारी है. साब अभी नहीं आए हैं. आईं तो पता चलेगा कि खबर सही थी या गलत और छापे से कुछ हासिल हुआ है या नहीं?”
जैसे जैसे समय बीत रहा था उसके दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. अशोक की हालत गैर थी. उसके चेहरे पर उसके दिल की स्थिति उभर रही थी. हर क्षण ऐसा लगता था जैसे वह अभी चकरा कर गिर जाएगा. उसे अनुमान था जो भय से डर रहा है अशोक की आशंकाएं कुछ अधिक ही होंगे. उसे इस बात का संतोष था तलाशी में उसके पास से कोई भी संदेहास्पद वस्तु बरामद नहीं हुई थी. इसलिए न तो पुलिस इस पर कोई आरोप लगा सकती है न उस पर हाथ डाल सकती है. परंतु संकट  यह थी कि वह अशोक के साथ गिरफ्तार हुआ है. अशोक पर जो भी आरोप पत्र लगाया जाएगा इसमें उसे भी बराबर का हिस्सा दिया जाएगा. कभी कभी उसे गुस्सा आ जाता .
आखिर हमें किस अपराध में गिरफ्तार किया गया है, किस अपराध में हमारे साथ आदी अपराधियों सा अपमान जनक व्‍यवहार किया जा रहा है और यहां घंटों से बिठा कर रखा गया है और हमे अपमानित  की जा रही है? हमारे पास तो ऐसी कोई संदेहास्पद  आपत्तिजनक  वस्‍तु  बरामद नहीं हुई है. वह छु‍िरयों का सेट? वह तो घरेलू उपयोग की चीजें हैं. उन्हें अपने पास रखना या कहीं ले जाना कोई अपराध नहीं है. अशोक इन चीजों से कोई हत्या और रक्तपात या दंगा फसाद नहीं करना चाहता था वह तो उन्हें अपने घर अपने घरेलू उपयोग के लिए ले जाना चाहता था. “परंतु किससे ये बातें कहे, किस के सामने अपनी बेगुनाही की सफाई पेश करे. यहां तो आवाज़ भी मुँह से निकलती है तो उत्‍तर  में कभी गालियां मिलती हैं तोकभी घूँसे. इस संकट  से कैसे छुटकारा मिल दोनों अपनी अपनी तौर पर सोच रहे थे जब सोचों से घबरा जाते तो कानाफूसी में एक दूसरे से एक दो बातें कर लेते.
अनवर अब क्या होगा?”
कुछ नहीं होगा अशोक! तुम धैर्य  रखो. हमने कोई अपराध नहीं किया है.”
फिर हमें यहां यूँ क्यों बिठा कर रखा गया है. हमारे साथ आदी अपराधियों का व्यवहार क्यों किया जा रहा है?”
यहाँ के रूप तरीके ऐसे ही हैं. अब हमारा केस किसी के सामने गया भी नहीं है.”
मेरा साला  स्थानीय एम. एल. ए का दोस्त है. उसे फोन करके सारी बातें बता दें, वह हमें इस नरक से मुक्ति  दिला देगा.”
पहली बात तो ये लोग हमें फोन करने नहीं देंगे. फिर थोड़ा धैर्य  रखो इंस्पेक्टर के आने के बाद क्या स्थिति पैदा होती है उस समय इस बारे में सोचेंगे.”
इतनी देर हो गई घर न पहुंचने पर पत्नी चिंतित हो गयी.”
मेरी भी यही स्थिति है. एक दो घंटे लेट हो जाता हूँ तो वह घबरा जाती है. इन लोगों का कोई भरोसा नहीं कुछ न मिलने की स्थिति में किसी भी आरोप में फंसा देंगे.”
अरे सब उनका पैसा खाने के लिए यह नाटक रचाया गया है.” बगल में बैठा आदमी उनकी कानाफूसी  की बातें सुनकर फुसफुसाया. “कड़की लगी हुई है किसी अपराधी से हफता  नहीं मिला होगा या उसने हफता  देने से इन्‍कार कर दिया होगा. उसके विरूध  तो कुछ नहीं कर सकते उसकी भरपाई करने के लिए हम शरीफों को पकड़ा गया है. ”
तुम्हारे पास क्या मिला?” उसने पलट कर उस आदमी से पूछा.
एसिड की बोतल.” वह आदमी बोला. “उस एसिड से मैं अपने बीमार पिता के कपड़े धोता हूं जो कई महीनों से बिस्तर पर है. उसकी बीमारी के जीवाणु मर जाएं उनसे किसी को नुकसान न पहुंचे इसके लिए डॉक्टर ने उसके सारे कपड़े इस एसिड में धोने के लिए कहा है. आज एसिड समाप्त हो गया था वह मेडिकल स्टोर से खरीद कर ले जा रहा था. मुझे क्या पता था इस संकट  में पड़ जाऊँगा. वरना मैं अपने घर के पास के मेडिकल स्टोर से खरीद लेता. ”
हे! क्या खुसर पुसर चालू है?” उनकी कानाफूसी सुनकर एक सिपाही दहाड़ा तो वह सहम कर चुप हो गए. मन में फिर अशंकाएं सिर उठाने लगे. यदि अशोक पर कोई   अपराध लगा के गिरफ़्तार कर लिया गया तो उसे भी बख्शा नहीं जाएगा. अशोक की मदद करने वाला साथी उसे करार देकर इस पर भी वही आरोप पत्र लगाना कौन सी बड़ी बात है. पुलिस तो उन पर आरोपपत्र लगा उन्हें अदालत में पेश कर देगी. उन्हें अदालत में अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी. और भी अपराध को साबित करने में सालों लग जाएंगे. वर्षों अदालत कचहरी के चक्कर. इस कल्पना से ही उसे झुरझुरी आ गई. फिर लोग क्या कहेंगे किस किस को वह अपनी बेगुनाही की दास्तान सुना कर अपनी सफाई पेश करेंगे.
अगर पुलिस ने उन पर आरोप पत्र लगा तो मामला केवल अदालत तक सीमित नहीं रहेगा. पुलिस उनके बारे में बढ़ा चढ़ा कर अखबारों में भी उनके अपराध की कहानी छपवा देगी. अखबार वाले तो इस तरह की कहानियों की ताक में रहते हैं.
दो सफेद पोशों के काले कारनामे.”
एक कार्यालय में काम करने वाले दो क्लर्क आतंकवादियों के साथी निकले.”
एक कुख्यात गिरोह से संबंध रखने वाले दो गुंडे गिरफ्तार.”
दंगे  के लिए हथियार ले जाते हुए दो गुंडे गिरफ्तार.”
शहर के दो शरीफ लोगों का संबंध खतरनाक आतंकवादी   संगठनों से निकला.” इन बातों को सोच कर वह अपना सिर पकड़ लेता. जैसे जैसे समय बीत रहा था. उसकी हालत खराब  हो रही थी और उसे इन बातों विचारों से छुटकारा पाना मुश्किल हो रहा था.
ग्यारह बजे के समीप  इंस्पेक्टर आया वह गुस्से में भरा था.
नालायक, पाजी, हरामी, साले कुछ भी झूठी खबर  देकर हमारा समय खराब करते हैं. सूचना है कि आतंकवादी   रेलवे स्टेशन से खतरनाक हथियार लेकर जाने वाले हैं. कहां हैं आतंकवादी  , कहां है हथियार? चार घंटे रेलवे स्टेशन पर मगज़ पाशी करनी पड़ी. रामू यह कौन लोग हैं? ”
उन्हें रेलवे स्टेशन पर शक में गिरफ्तार किया गया था.”
एक एक को मेरे पास भेजा.”
एक आदमी उठ कर इंस्पेक्टर के पास जाने लगा और सिपाही उसे बताने लगे कि इस व्यक्ति को किस लिए गिरफ्तार किया गया है.
उसके पास से एसिड की बोतल मिली है.”
साहब वह एसिड घातक नहीं है. इससे मैं अपने बीमार पिता के कपड़े धोता हूं. वह एक मेडिकल स्टोर से खरीदी थी. उसकी रसीद भी मेरे पास है और जिस डॉक्टर ने यह लिख कर दी है डॉक्टर की स्टेटमैंट भी. यह कीटनाशक एसिड है. बर्फ की तरह ठंडा. “वह व्यक्ति अपनी सफाई पेश करने लगा.
जानते हो एसिड लेकर लोकल ट्रेन में यात्रा करना अपराध है?”
जानता हूँ साहब! परंतु यह एसिड आग लगाने वाला नहीं है.”
अधिक मुंह ज़ोरी मत करो. तुम्हारे पास एसिड मिला है. हम तुम्हें एसिड लेकर यात्रा करने के जुर्म में गिरफ्तार कर सकते हैं.”
अब मैं क्या कहूं साहब!” वह आदमी विवश्‍ता  से इंस्पेक्टर का मुंह ताकने लगा.
ठीक है तुम जा सकते हो परंतु भविष्य एसिड लेकर ट्रेन में यात्रा नहीं करना.”
नहीं साहब अब तो ऐसी गलती फिर कभी नहीं होगी.” कहता हुआ वह आदमी अपना सामान उठाकर तेजी से पुलिस स्टेशन के बाहर चला गया.
अब अशोक की बारी थी.
हम दोनों एक कंपनी के सेल्‍स  विभाग में काम करते हैं. यह हमारे कार्ड है. कहते अशोक ने अपना कार्ड दिखाया मैंने छु‍िरयों का सेट घरेलू उपयोग के लिए खरीदा था और घर ले जा रहा था. आप देखिए यह घरेलू उपयोग कीछरियां हैं.
साब उनकी धार बहुत तेज है.” बीच में सिपाही बोल उठा.
इंस्पेक्टर एक छुरी उठाकर उसकी धार परखने लगा.
सचमुच उनकी धार बहुत तेज है. उनके एक ही वार से किसी की जान भी ली जा सकती है.”
इस बारे में क्या कह सकता हूं साहब!” अशोक बोला. “कंपनी ने इस तरह की धार बनाई है. कंपनी को इतनी तेज धार वाली घरेलू उपयोग की छुरियां नहीं बनानी चाहिए.”
ठीक है तुम जा सकते हो. इंस्पेक्टर अशोक से बोला और उससे संबोधित हुआ.
तुम?”
साहब यह इसके साथ था.”
तुम भी जा सकते हो परंतु सुनो.” उसने अशोक को रोका. पूरे शहर में इस तरह की तलाशियां चल रही हैं. यहां से जाने के बाद संभव है तुम उन छु‍िरयों की वजह से किसी और जगह धर लिए जाओ. ”
नहीं इंस्पेक्टर साहब अब मुझ में छुरियां ले जाने की हिम्मत नहीं है. मैं उसे यहीं छोड़ जाता हूँ.” अशोक बोला तो इंस्पेक्टर और सिपाही के चेहरे पर विजयी मुस्कान उभर आई.
वे दोनों अपने अपने ब्रेफ मामले उठाकर पुलिस स्टेशन के बाहर आए तो उन्हें ऐसा लगा जैसे उन्हें नरक से रिहाई का आदेश मिल गया है.
अप्रकाशित
मौलिक
————————समाप्‍त——————————–पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
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Hindi Short Story Akela By M.Mubin

कहानी      अकेला   लेखक  एम मुबीन   
अचानक उसे लगा कि वह जंगल में बिल्कुल अकेला है. इस बात का एहसास होते ही वह काँप उठा. उसके हृदय की धडकनें तेज हो गईं. भय की लहरें उसके शरीर में दौड़ने लगीं और माथे पर पसीने की बूँदें उभर आईं. आवाज़ जैसे गले में घुट कर रह गई.
चारों ओर दूर दूर तक फैला भयानक जंगल और उस पर छाया पर होल सन्नाटा उसे किसी अजगर की तरह पहुंच के लिए आगे बढ़ रहा था.
जंगल का एक गोनग उसे पर आसेब और पर ख्र महसूस होने लगा.
उसकी समझ में नहीं आ रहा था यह सब अचानक कैसे हो गया?
वह अचानक जंगल में कैसे रह गया है?
बाअस्तित्‍व  लाख कोशिशों के वह पता नहीं लगा सका कि वह कब और क्यों अकेले हुआ. जहां तक उसे याद था वह जंगल में अकेला नहीं था वह तो कई लोगों में घिरा हुआ था. वह सब एक जगह साथ बैठते थे आपस में हंसी मजाक करते थे एक दूसरे के दुख दर्द और तनहाईाँ बांटने थे. किसी को कभी महसूस ही नहीं होता था कि वह जंगल में अकेले हैं उनके घर भी आसपास ही थे और एक तरह से जंगल में उस जगह एक अच्छी खासी बस्ती आबाद थी जिसमें जीवन की गहमागहमी थी. परंतु उसे याद नहीं आ रहा था वे सभी अचानक कहाँ और कैसे उसे इस जगह अकेले छोड़ कर चले गए हैं और तो और जाते समय अपने साथ अपने घर और अपनी हर चीज़ भी खूबी से लेकर चले गए हैं यह पता ही नहीं चल सका.
अचानक हवा के चलने से जंगल में एक भयानक आवाज गूंज लगी और उस आवाज को सुनकर उसका दिल किसी सूखे पत्ते की तरह लरज़ने लगा.
तुम सब कहाँ हो?” जब से सहन  नहीं हुआ तो वह चीख उठा.
तुम लोग मुझे अकेला छोड़ कर कहाँ चले गए हो? मुझे बहुत डर लग रहा है.”
परंतु उसकी आवाज़ जंगल के परहोल सन्नाटे में गूंज रह गई वह लाख अपनी सदा के उत्‍तर  में जवाबी सदा के लिए बेचैन रहा. परंतु उसकी आवाज़ किसी गुंबद में गूंज वाली रेडियो गूँज बनकर रह गई और इस जंगल में गूंजती रही.
वह गूंज क्षण बह क्षण तेज से तेजी से होता गया और अंत में इतनी भयानक हो गई कि उसे अपने कानों के पर्दे फटने लगती महसूस होने लगे. घबरा कर ध्वनि ाज़त से बचने के लिए उसने अपने कानों में अपनी उंगलियां ठौंस लें.
अचानक एक नीज़ा हवा में लहराता हुआ आया और उसने कुछ क़दमों की दूरी पर आकर भूमि पीोस्त हो गया. भय से उसका रंग पीला पड़ गया और सारा शरीर पसीने में भीग गया. उसे लगा कि यह पहला और आखिरी नीज़ा नहीं वह चारों ओर से नीज़ों के बीच घिरा हुआ है. वह नीज़े इसके आसपास छिपे हुए हैं.
अचानक उस पर नीज़ों की बरसात सी होने लगी. नीज़ों की नवकीं आकर उसके शरीर से टकराएँ है और उसका शरीर लहोहान होकर अपनी आत्मा को खोदे है. वह अच्छी तरह देख रहा था उसके चारों ओर हजारों नीज़े तने हुए हैं. समय समय वह नीज़े उसके पास आ आकर गिर रहे थे. कभी कभी कोई भाला आकर उसके शरीर से टकरा जाता और उसके शरीर को घायल कर देता. यह कैसा प्रकोप  है उसकी समझ में नहीं आ रहा था. पहले तो उसने उस जगह कभी नीज़ों को नहीं देखा था पहले तो इस पर कभी इस तरह नीज़ों से हमला नहीं हुआ था वह आठ सालों से वहां रह रहा था.
अचानक उसे अपने पास लकड़ी का एक टुकड़ा नज़र आया. उसने लकड़ी का वह टुकड़ा उठा लिया और उससे ढाल का काम लेने लगा. जैसे ही हवा में सुरसुराने हुआ कोई भाला उसके शरीर को छूने के लिए आगे बढ़ता वह लकड़ी के टुकड़े से उसे रोक लेता था. वह भाला रुक जाता था परंतु यह बड़ा मुश्किल काम था. क्योंकि कभी कभी नीज़े लकड़ी के टुकड़े में धनस उसके हाथों को घायल कर देते थे.
उसकी समझ में नहीं आ रहा था उनके नीज़ों इस पर कौन और क्यों हमला कर रहा है? हमलावर उसे दिखाई नहीं दे रहे थे.
अचानक उसे एक पेड़ की आड़ में एक साया नजर आया उसके हाथ में भाला था उसकी ओर फेंकने के लिए जैसे ही उसने भाला ताणा उसने उसके साये को अच्छी तरह देख लिया. उसे रूप और सूरत कुछ ननवा सी लगी.थोड़ा याद करने पर उसे याद आया कि यह वही शख्स है जो कुछ क्षणों पहले उसके साथ था जब वह अकेला नहीं था. उसे बड़ी हैरानी हुई. कुछ पल पहले तक का उसका मूनस और गमसुार उसका वह दोस्त उसकी जान केदरपे क्यों हो गया है? इस पर नीज़े से हमला क्यों कर रहा है? उसने घबरा कर चारों ओर देखा तो उसे कुछ नजर नहीं आया. परंतु उसे लगा चारों तरफ पेड़ों की आड़ में उस पर हमला करने के लिए नीज़े ताने वही लोग छिपे हुए हैं जो कुछ पल पहले तक उसके साथ थे.
तुम! तुम लोगों को मैं पहचान गया हूँ. तुम मुझ पर हमला करके मेरी जान क्यों लेना चाहते हो?” वह चीख उठा.
मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूँ. तुम भी मेरे दोस्त हो. कुछ देर पहले तक हम साथ रहते थे और एक दूसरे के मूनस और गमसुार थे. उसकी इस बात को सुनकर कई चेहरे पेड़ों की ऊट से बाहर आए सभी चेहरे इस के ननवा थे. परंतु उस समय उनके चेहरे पर इसके लिए दुश्मनी की भावना मचल रहे थे. उनके होंटों पर ज़हरीली मुस्कान थी और आँखों में उसके लिए नफरत की भावना था.
तुम लोग मेरे साथ हो. फिर मेरी जान क्यों लेना चाहते हो?” उसने उनसे पूछा.
उत्‍तर  कई नीज़े उसके शरीर से टकराने के लिए आगे बढ़े और वे सभी चेहरे फिर पेड़ों की ऊट में छुप गए. उसने जल्दी से स्‍वंय  का बचाव किया और चीख उठा.
बचाव! बचाव. में संकट  में हूं, जो कल तक मेरे दोस्त थे आज मेरी जान के दरपे हैं मुझे मार डालना चाहते हैं. बचाव में सख्त संकट  में हूँ. ”
हमें पता है तुम सख्त संकट  में हो.” उसे दूर से एक ननवा आवाज़ आती महसूस हुई. उसे याद आया कि यह आवाज भी उन लोगों में से किसी की है जो कुछ क्षणों पहले उसके साथ थे. “फिर तुम मेरी मदद के लिए क्यों नहीं आ रहे हो? “उसने पूछा.” हम तुम से इतनी दूर हैं कि चाहकर भी तुम्हारी मदद के लिए नहीं आ सकते हैं. हमें पता है तुम कौन मुसीबतों में घिरे हुए हो और भविष्य तुम पर क्या मसेबतें आने वाली हैं. हम जिस जगह हैं वहां हमें कोई ख़तरा नहीं है. हमने उन्हें ख़तरों खदशों के कारण वह जगह छोड़ दी. ”
जब तुम्हें पता था कि इस जगह रहने में हमें खतरा है और इन्हीं ख़तरों से बचने के लिए तुम यहाँ से चले गए हो. तो तुम मुझे भी साथ क्यों नहीं लिया, तुमने मुझे आने वाले ख़तरों से आगाह क्यों नहीं किया?”
तुम भूल रहे हो. हमने तुम्हें इन खतरों से आगाह करते हुए उस जगह को छोड़ देने का सुझाव दिया था परंतु तुमने हमारा मजाक उड़ाया था और यह दलील पेश की थी कि इस जगह कोई ख़तरा नहीं है खतरा इस जगह अधिक है जहाँ हम खतरों से बचने के लिए जा रहे हैं. जोखिम यहां भी हैं परंतु इस जगह से कम जहां इस समय तुम हो. “दूर से आवाज आई, उस आवाज को सुनकर उसे याद आया कभी इस संबंध में उनकी बातचीत हुई थी परंतु ने खदशों को ैक्सर निराधार कहकर अनदेखा कर दिया था.
अब तुम ही बताओ मैं क्या करूँ?” उसने पूछा.
परंतु उसे कोई उत्‍तर  नहीं मिला उसने फिर दुहराया. वह उसी जगह बालक अकेला है और खतरों में घिरा हुआ है इन ख़तरों से बचने के लिए उसे कुछ न कुछ करना चाहिए. जो लोग उसकी जान के दरपे हैं उसे उनसे ही पूछना चाहिए वह उसकी जान के दरपे क्यों हो गए और क्या चाहते हैं?
सुनो मेरी जान के दुश्मन मैं तुमसे पूछ रहा हूँ. तुम जो कुछ पल पहले तक मेरे संगी थे अब मेरे रकेब क्यों बन गए हो तुम मेरी जान क्यों लेना चाहते हो?” “हम चाहते हैं जिस तरह तुम्हारे दूसरे साथी उस जगह को छोड़ कर चले गए हैं तुम भी चले जाओ.” पेड़ों की ऊट एक ननवा स्थिति उभरी.
परंतु क्यों?”
क्योंकि यह जगह हमारी है.”
परंतु कुछ देर पहले तो यह जगह किसी की नहीं थी. यह जगह हम सब की थी. फिर अब यह जगह मेरी न होकर केवल तुम्हारी क्यों हो गई है?”
जिस क्षण तुम्हारे दूसरे साथी उस जगह को छोड़ कर दूसरी जगह चले गए और उन्होंने इस जगह को अपनी जगह कहकर जंगल वितरण किया उसी क्षण से यह जगह हमारी और सिर्फ हमारी हो गई है. अब तुम्हें यहाँ रहने का कोई हक़ नहीं है. तुम यहाँ से चले जाओ. वहां पर जहां तुम्हारे दूसरे साथी चले गए हैं “.” परंतु तुम भी तो मेरे साथी हो, क्या मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता हूँ? ”
तुम हमारे साथ नहीं रह सकते, तुम्हारे साथ थे जो उस जगह को छोड़ कर चले गए. अगर तुमने यह जगह नहीं छोड़ी तो हम इसी तरह तुम पर हमले करते रहेंगे और तुम्हें यह जगह छोड़ने के लिए मजबूर कर देंगे. या फिर तुम्हारी जान ले लेंगे. ”
तुम इतने बदल क्यों गए हो? किसी की जान लेने में भी कोई ार महसूस नहीं कर रहे हो, यह तो वहशयों का काम है.”
जंगल में वहशी ही रहते हैं.”
तो मुझे यह जगह छोड़कर जाना ही होगा?”
हां!”
ठीक है मैं अपने साथियों से कहता हूँ कि मैं आ रहा हूँ ….. साथ! तुम सच कहते हो यहाँ मेरे लिए बहुत खतरे हैं. उनके खतरों से मुक्ति  पाने के लिए तुम्हारे पास आ रहा हूँ.”
नहीं!” दूर से आवाज आई. “तुम यहां नहीं आ सकते अब यहाँ किसी को आने की अनुमति नहीं है. अब उनके खतरों से निपटना, वहां रहना या न रहना या कहीं चले जाना यह तुम्हारा अपना समस्या है. इस समस्या को तुम ही नपटो. ”
यह क्या संकट  है. तुम मुझे वहाँ आने नहीं दे रहे हो. और यहाँ के लोग मुझे यहाँ रहने नहीं देना चाहे हैं. मैं क्या करूँ?” उसे कोई उत्‍तर  नहीं मिला. उसकी समझ में नहीं आ रहा था वो क्या करे? यहां उसे खतरा था, परंतु कोई ऐसी जगह नहीं थी जहां जाने के बाद वह सुरक्षित हो और यहाँ तो खतरा बदस्तूर कायम था ही बल्कि इसमें बढ़ोतरी भी होता जा रहा था. अचानक उसे अपना घर आग की लपटों में घिरा हुआ नज़र आया. वह तेजी से अपने घर की आग बुझाने के लिए दौड़ा. परंतु पूरी कोशिश के बाअस्तित्‍व  वह अपने घर को जलने से नहीं बचा सका. अपना अध जला घर देख कर उसकी आंखों में आंसू आ गए. परंतु फिर एक संकल्प से उसने अपने आँसू पोछें . केवल घर ही जला है ना? घर तो फिर भी बन सकता है. अब उसने अपना संकल्प पूरा नहीं किया था कि एक दलख़राश चीख ने उसे लरज़ा दिया. उसे अपना बेटा लहू लुहाण नज़र आया. उसका सारा शरीर नीज़ों से भरा हुआ था. उसकी आंखें बेजान थीं. बेटे का शव देखकर वह चीख उठा. पता नहीं कितनी देर तक वह आह और बेज़ारी करता रहा. फिर यह सोच कर बेटे को दफन करने के लिए गढ़ा खोदे लगा.
एक दिन मनुष्य के शरीर को उसकी आत्मा को छोड़ना ही है. कभी जल्दी कभी देर से. शायद यह भी मेरे बेटे की आत्मा का मेरे बेटे के शरीर को छोड़ने का एक बहाना हो.”
सुनो!” अचानक वह पूरी ताकत से चीख उठा. “तुम यह सोच रहे हो कि मैं अकेला इस जंगल में नहीं रह सकता? मुझे मेरी तन्हाई का एहसास दिलाव हैं, मुझ पर तरह तरह की मसेबतें और ज़ुल्म व सितम डखाउ तो में यह जंगल छोड़कर चला जाऊँगा. परंतु तुम्हारा कच्चे विचार है. मैं यहाँ रहता आया हूं और मैं यहीं रहूंगा. मुझे भी यहाँ रहने का उतना ही अधिकार है जितना तुम लोगों को है. यह जगह नहीं छोर सकता. चाहे मुझे कितना भी ाज़यतें मसेबतें क्यों न सहन करनी पड़ी. ”
तुम सच कहते हो!” अचानक जंगल में सैकड़ों आवाज़ें गूंज उठें. “तुम्हें यहाँ रहने का उतना ही अधिकार है जितना और लोगों को है. सचमुच यह एकांत, यह ज़ुल्म व सितम, यह मसेबतें तुम्हें घबरा कर यह जंगल छोड़ने पर मजबूर नहीं कर सकते. हम तुम्हारी तन्हाई बान्टीं हैं. हम तुम्हारी आने वाली मुसीबतों से रक्षा करेंगे. क्योंकि तुम्हारे जाने के बाद हम भी यहां अकेले हो जाएंगे. हम सब मिलकर इस जंगल में रहेंगे और एक दूसरे की तन्हाई दूर करेंगे.
नहीं यह तुम गलत काम कर रहे हो”. अचानक दूसरी सैकड़ों आवाज़ें जंगल में गूंज लगीं. “तुम उसकी मदद नहीं कर सकते. उसे यह जगह छोड़ कर जाना है और हर हाल में जाना है. हम उसे यह जगह छोड़ने के लिएमजबूर कर देंगे या उसके अस्तित्व को ही इस जगह से कर देंगे. यह नापाक अस्तित्व इस पवित्र जगह रहने लायक ही नहीं है “.
नापाक तुम्हारे विचार हैं. जो दूसरों को नापाक कहते हो”. उत्‍तर  हजारों आवाज़ें ाभरें. और फिर दोनों तरफ से आवाज़ें उभरने लगीं. आवाज़ें एक बे हनगम कान के पर्दे फाड़ देने वाले शोर में तब्दील होने लगी. कभी समर्थन में उभरने वाली आवाज़ें सुनकर उसका दिल खुशी से झूम उठता और सारे शरीर में एक नया संकल्प संचार   कर जाता. कभी अपने विरोध में उठने वाली आवाज़ें सुनकर उसका अस्तित्व किसी सूखे पत्ते की तरह लरज़ने लगता. सारा शरीर पसीने से तर हो जाता और अस्तित्व प्रशन   का लावा सा खोलने लगता. वह घबरा कर अपने दोनों कानों पर हाथ रख देता. अचानक उसे महसूस हुआ, पर चारों ओर से तैरों की बारिश हो रही है. वह घबरा गया और अपने हाथों में पकड़िय लकड़ी से ढाल का काम लेकर स्‍वंय  को नीज़ों से तैरों से बचाने की कोशिश करने लगा. परंतु उसे महसूस होने लगा वह अधिक देर तक स्‍वंय  को बचा नहीं पाएगा. तैरों और नीज़ों की संख्या इतनी है कि कभी न कभी तो वह उसके अस्तित्व में पीोस्त होउसकी आत्मा को शरीर की कैद से मुक्त कर देंगे.
इसके लिए अधिक देर तक अपना बचाव करना संभव ही नहीं था. परंतु अचानक उसे लगा एक नज़र न आने वाली शक्ति है जो उसके साथ है और उसका बचाव कर रही है. वरना अब तक तो यह नीज़े और तीर कब के इसे समाप्‍त  कर चुके होते. इस एहसास ने उसके भीतर एक नई आत्मा फूंक दी कि वह अकेले नहीं है. कोई और शक्ति भी उसके साथ है. और एक नए जोश से स्‍वंय  की रक्षा करने लगा.
 
अप्रकाशित
मौलिक
————————समाप्‍त——————————–पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

Hindi Short Story Brain Tumer By M.Mubin

कहानी     ब्रेन टयूमर   लेखक  एम मुबीन   
जब होश आया तो उसने स्‍वंय  को एक सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ पाया. सामने तारकोल की सड़क पर दूर दूर तक धूप फैली हुई थी. इक्का दुक्का सवारयाँ आ जा रही है. आसपास की गगनचुम्बी इमारतें बालकनियाँ वीरान थीं. धूप की तीव्रता के कारण शायद मैक्केन उनसे झांकने की जसारत भी नहीं कर रहे थे.
सड़क के दोनों ओर दूर दूर तक दुकानों की एक श्रृंखला था. इनमें कुछ दुकानें बंद थीं परंतु बाकी खुली हुई थीं. बंद दुकानों के शेड में दो आवारा कुत्ते धूप और गर्मी से बचने के लिए लेटे हुए थे. या इक्का दुक्का राह भरउनके साये में खरे होकर सस्ता रहे थे. कभी कभी उनकी बेचैन नज़र बार बार वीरान सड़क की ओर उठ जाती थीं. शायद उन्हें अपनी सवारी का इंतजार था.
जो दुकानें खुली हुई थीं उनमें ग्राहकों का नाम व निशान नहीं था. इन दुकानों में दुकानों के मालिक और उनमें काम करने वाले नौकर बैठे या तो ऊँघता रहे थे या मुंह फाड़कर जमाहीाँ ले रहे थे.
समय जानने के लिए उसने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देखी तो उसका दिल धक से रह गया. कलाई पर घड़ी नहीं थी.
कलाई पर बंधी घड़ी न देख कर याद आया कि उसके पास एक छोटी सी अटैची थी. जिसमें दोपहर के खाने का डिब्बा, एक दो अनावश्यक फ़ाइल, कुछ समाचार पत्रिका और कुछ नोटिस आदि थे.
वह अटैची उसे कहीं नज़र नहीं आई. इसका मतलब था वह अटैची भी घड़ी की तरह गायब है. मन पर उसका हाथ पतलून की जेब की ओर रेंग गया और वह जेब में परस खोज करने लगा.
ज़ाहिर सी बात है ऐसी स्थिति में जेब में परस की मौजूदगी असंभव सी बात थी. उसने एक ठंडी सांस ली और पैंट की चोर जेब में अपनी उंगलियां डालें उसकी उंगलियां नोटों से टकराएँ तो उसे कुछ संतोष हुआ.
परस में दस बीस रुपए के नोट, कुछ ोज़ीटिंग कार्ड और स्थानीय का मासिक पास था.
धीरे धीरे उसे याद आने लगा कि जब वह घर से ऑफिस जाने के लिए निकला था तो सिर में हल्का हल्का दर्द था. जो समय बीतने के साथ तीव्रता अधिकार करता जा रहा था. उसे अच्छी तरह याद है वह वी टी जाने वाली लोकल ट्रेन में सवार हुआ था. परंतु ट्रेन से यहाँ कैसे पहुँचा? उसे कुछ याद नहीं आ रहा था.
परंतु यह जगह कौन सी है?
इस प्रशन   के मन में सिर उठाते ही उसने सामने वाली दुकानों के साइन बोर्ड गौर से देखे.
तुम इस समय घाट कोपर में हूँ.” बड़बड़ाते हुए उसने अपने हूंठ भींच और फिर आसमान की तरफ देखने लगा. सूरज जिस ज़ाोए पर रुका हुआ था, उससे तो ऐसा लग रहा था कि इस समय दोपहर का एक या डेढ़ बज रहाहोगा.
वह मुंब्रा से आठ बजे लोकल में सवार हुआ था.
इसका मतलब है वह चार, पांच घंटे मदहोश की हालत में रहा.
शरीर पर कोई खराश का निशान नहीं था. इसका मतलब है आज उसके साथ कोई हादसा पेश नहीं आया.
बस कुछ घंटों के लिए उसके मस्तिष्क का शरीर से संपर्क टूटा और इस बीच शरीर क्या किया, और उसके साथ क्या हुआ उसे कुछ याद नहीं आ रहा था. और अब याद आ भी नहीं सकता था.
उसे पता था मस्तिष्क शरीर का संपर्क टूटते ही लोकल से उतर गया होगा और यूं ही अनजान सड़कों पर भी उद्देश्य आवारा आतंकवाद कर रहा होगा. या तो चकरा कर उसी जगह गिर पड़ा होगा जिस जगह उस समय बैठा है. या फिर मदहोश में विचित्र मजनूनाना हरकतें कर लोगों को आकर्षित कर रहा है.
उसकी मजनूनाना हरकतें और उसके हाथ की अटैची किसी गुंडे का ध्यान का केन्द्र बनी होगी.
गुंडे ने बड़े इत्मीनान से उसे उस जगह बिठाया होगा जहां इस समय वह बैठा हुआ है. बड़े इत्मीनान से उसने एक दो बातें की हूंगी और उसकी कलाई से घड़ी उतारी होगी फिर जेब से परस निकाला होगा और हाथ से अटैची लेकर इत्मिनान से चलता बना होगा. वह चुपचाप उसे जाता देख रहा होगा या फिर पेड़ के साये में लेट गया होगा. क्या हुआ होगा? यह केवल अनुमान ही लगा सकता था. उसके साथ क्या हुआ है? किसी से मालूम भी नहीं हो सकता था. मगर जो कुछ उसके साथ हुआ उसे बहुत दुख था.
आज उसे फिर घर वालों और पत्नी को अपने लटने की फर्जी कहानी सुनानी पड़ेगी परंतु कल ऑफिस में क्या उत्‍तर  देगा? बिना सूचना के वो ऑफिस से क्यों गायब रहा. इसी तरह पहले ही उसकी बेशुमार छुट्टियां हो चुकी थीं. और आज तो ऑफिस में उसकी मौजूदगी बेहद जरूरी थी.
उसकी अनुपस्थिति से ऑफिस में हंगामा मच गया है.
डेढ़ दो बज रहे हैं. क्या करें? ऑफिस जाने का अब भी समय है.
परंतु वह अपने आप को शारीरिक रूप से इतना लागर और थका हुआ महसूस कर रहा था कि न तो इसमें ऑफिस जाने की शक्ति थी न घर जाने की. परंतु कार्यालय भी न जाए उसे वापस घर तो जाना ही पड़ेगा.
वह उठा और बोझल क़दमों से स्टेशन जाने का रास्ता ढूँढा स्टेशन की ओर चल दिया. रास्ते में उसने एक गाड़ी के पास से ोड़ा पाउ खाया और चाय पी.
कुछ देर पहले जो भूख की शिद्दत से उसे कमजोरी का महसूस हो रही थी वह कुछ दूर हुई. उसके मन में एक ही बात गूंज रही थी.
आज फिर उस पर दौरा पड़ा था. और यह दौरा छह घंटे का था.”
डॉक्टरों का कहना संभव है शुरुआत में इस तरह के दौरे कुछ घंटों तक सीमित रहें परंतु यही स्थिति रही तो यह यात्रा कई कई दिन और कई महीनों तक भी हो सकते हैं. यानी वह कई महीनों तक होते हुए भी पुरुषों सारहेगा. महीनों ऐसी जीवन गज़ारसकता है जिसका उसकी वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं होगा. उसकी वास्तविक जीवन की कोई बात उसे याद नहीं आएगी. और बाद में ला संबंध जीवन की कोई बात भी उसे याद नहीं आएगी . और ऐसा भी हो सकता है इस तरह के दौरों के बीच वह टीोमर फट जाए और उसके जीवन का अंत हो जाए.
आखिर वह फट क्यों नहीं जाता?” वह झुंझला कर सोचने लगा. “उसे फट जाना चाहिए. इसके फट जाने से मुझे पीड़ा नअक जीवन से मुक्ति तो मिल जाएगी.”
तुम मरना चाहते हो?” इस में कोई ज़ोर से हँसा. “नहीं, तुम मर नहीं सकते तुम मरने से डरते हो. तुम मरना नहीं चाहते हो. इसीलिए तो तुम अपना इलाज नहीं करवा रहे हो. क्योंकि संभव है इलाज दौरान तुम्हारी मौत हो जाए. या तुम जीवन भर के लिए अंधा, लंगड़ा, लोले, अपाहिज हो जाओ. या तुम्हारा मन हमेशा के लिए एक कभी न छुट्टने वाली अंधेरे में डूब जाए. और तुम होश में रहते हुए भी हमेशा के लिए भी होश हो जाओ. ”
आखिर वह इन दौरों का प्रकोप  कब तक झेलना रहेगा?
शायद मौत ही उसे इस प्रकोप  से मुक्ति  दिला सकती है. परंतु मौत कब आएगी? जब उसके मस्तिष्‍क का टीोमर फट जाएगा.
उसके मस्तिष्‍क का टीोमर कब फटे है?
इस बारे में तो न कोई बता सकता था और न कोई भविष्यवाणी कर सकता है. सकता है अभी एक सेकंड बाद टीोमर फट जाए या फिर हो सकता है जीवन भर वह टीोमर न फटे और जीवन भर वह प्रकोप  में लगे रहे.
उसे तो इस बात का कतई इल्म नहीं था कि उसके मस्तिष्‍क में कोई टीोमर है. जिसे उर्फ आम में ब्रेन टीोमर कहते हैं. हां यह बात जरूर थी कि बचपन से वह दर्द सिर का रोगी था. और बढ़ती उम्र के साथ साथ दर्द बढ़ता ही गया. और वह पीड़ा नअक प्रकोप  से ग्रस्त रहा.
बचपन में जब उसका सिर दर्द करता तो वह दर्द का बहाना बनाकर स्कूल से छुट्टी ले लेता था. उसकी टीचर उसके चेहरे के टिप्पणी और स्थिति देखकर ही अनुमान लगा लेते थे कि सचमुच उसके सिर में सख्त दर्द और वह उसे छुट्टी दे देते थे. इस समय वह बहुत खुश होता था और सोचता था प्रतिदिन  उसका सिर दिखा करे और उसे प्रतिदिन इसी तरह स्कूल से छुट्टी मिलती रहे.
परंतु बढ़ती उम्र के साथ बढ़ने वाली इस सिर दर्द की तकलीफ से उसे कोफ़्त होने लगी थी. उसने इस रोग कई डॉक्टरों से दवाएं लें. डॉक्टरों की दवाओं से अस्थायी तौर पर दर्द गायब हो जाता. परंतु कुछ दिनों बाद फिर सामान्य सिर उठाता.
उसकी पुरानी सिर दर्द की शिकायत देखकर डॉक्टरों ने उसे माईगरीन का रोगी बताया. माईगरीन जिसका कोई इलाज नहीं है. स्‍वंय  को माईगरीन का रोगी करार दिए जाने के बाद उसे कम से कम इस बात का संतोष हो गया कि अ ब उसे दवाओं का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत नहीं है. वह एक ऐसे रोग से ग्रस्त है जिस पर दवाएं कारगर साबित नहीं होती.
उसने अपने अंदर दर्द की तीव्रता को सहन करने की शक्ति पैदा की. यह सिलसिला वर्षों तक चलता रहा. जब भी उसके सिर में दर्द उठता वह न तो उसका इलाज करता न कोई दवा गोली लेता. चुपचाप इस दर्द को सहन करता . कुछ घंटे बाद वह दर्द स्वतः गायब हो जाता. परंतु धीरे धीरे उसे पता चला जब वह गंभीर सिर दर्द से ग्रस्त होता है तो कभी कभी बड़ी अजीब हरकतें करने लगता है. जिससे लोगों को इसके बारे में चिंता होनेलगती है.
इस बारे में उसे दोस्तों और ऑफिस के लोगों ने बताया था कि कई पत्र हिस्सा खराब हिस्सा खराब कर डाले और कोरिया पत्र को बुरे सलीके से फाइलों में लगाकर रख दिया. कई महत्वपूर्ण काग़ज़ात पर बुला कारण अनावश्यक ास्टांप लगाकर अपने हस्ताक्षर कर दिए . तो कभी कभी समाचार कार्यालय के पत्र पर घंटों पता नहीं क्या पहला फ़ूल टाइप करता रहा.
उसकी हरकतों से लोगों ने अनुमान लगाया कि इस पर अजीब किस्म के गंभीर दौरे पड़ते हैं. दौरे पड़ने की शिकायतें इससे कई बार उसके घर वालों और दोस्तों ने की थी. दौरों की स्थिति में वह चावल को पानी की तरह पीने लगता और पानी को रोटी की तरह खाने की कोशिश करता. घर की चीजें गलत स्थानों पर रखता या उनका दुरुपयोग करता है.
एक बार तो इन हरकतों से जीवन खतरे में पड़ गई थी. उसने मिट्टी का तेल अपने शरीर पर डाल लिया और पानी समझ कर मिट्टी का तेल पी लिया. सामान्य आने के बाद उसे अपने दौरों का विवरण पता होती तोशरीर में डर शीत लहरें दौड़ने लगतीं. आज उसके साथ क्या हो जाता.
उफ़! वह किस तरह का जीवन गज़ारर रहा है. अंत इन दौरों से मजबूर होकर उसे डॉक्टर की सलाह लेनी पड़ी. डॉक्टर ने उसकी पूरी केस हिस्ट्री सुनी, सिर का एक्स रे निकाला. अच्छी तरह चेकअप किया और उसके बाद उसे बताया गया.
तुम्हारे मस्तिष्‍क में एक टीोमर है और इसकी वजह से तुम इस तरह की हरकतें करते हो या तुम्हारे साथ ऐसा होता है.” डॉक्टर ने उसे बड़ी विवरण से ब्रेन टीोमर या बीमारी के बारे में बताया था. उसके सिर में दर्द इसलिए होता था कि टीोमर के कारण मस्तिष्क के कुछ हिस्सों को खून की आपूर्ति रुक जाती है.
जैसे टीोमर बड़ा होने लगा दर्द की तीव्रता भी बढ़ने लगी. और अब स्थिति यह है कि जब मस्तिष्क के बहुत बड़े हिस्से को रक्त की आपूर्ति रुक जाती है तो मस्तिष्‍क और शरीर का संबंध टूट जाता है. और वह इस हालत में पहला जलूल हरकतें करने लगता है.
इसका कोई इलाज है डॉक्टर साहब?”
उसका तो बस एक ही इलाज है. ऑपरेशन द्वारा सिर से इस टीोमर को निकाल दिया जाए.” “में प्रकोप  से मुक्ति  पाने के लिए ऑपरेशन कराने के लिए भी तैयार हूं डॉक्टर साहब!”
परंतु यह ऑपरेशन इतना आसान नहीं है जितना तुम समझ रहे हो. मामला मस्तिष्‍क का है हो सकता है यह ऑपरेशन सफल न हो और इस ऑपरेशन के बीच तुम्हारी मौत हो जाए या यह भी संभव है ऑपरेशन के दौरान तुम्हारे मस्तिष्‍क का हिस्सा प्रभावित जाए और तुम जीवन भर के लिए अंधा, लंगड़ा, लोले या अपाहिज बन जाओ. तुम्हारी आँखों की बीनाई खो जाए. या तुम्हारी शक्ति गोियाई सलब हो जाए. यह बड़ा पुर्र ऑपरेशन होता है. अगर ऑपरेशन के दौरान मस्तिष्‍क का कोई
भी हिस्सा मामूली रूपपर प्रभावित हो जाये तो वह अपना काम बंद कर देता है और उसके प्रभाव क्या हो सकते हैं तो बता ही चुका हूँ.
नहीं नहीं डॉक्टर साहब!” डॉक्टर की बात सुनकर वह कांप उठा था. “मैं मरना नहीं चाहता. मैं अंधा, लंगड़ा, लोला सकता हूँ. नहीं नहीं मैं ऑपरेशन नहीं करूंगा. चाहे मुझे कितना ही दर्द कितनी ही तकलीफ़ सहनी पड़े. चाहे मुझे कितने ही गंभीर दौरों के प्रकोप  से गुजरना पड़े. अगर मेरे मस्तिष्‍क का टीोमर फट जाता और मेरी मौत हो जाती है तो मुझे मौत मंजूर है क्योंकि वह मेरी प्रकृति मौत हो गयी. परंतु ऑपरेशन करके न तो गैर प्राकृतिकजीवन जीना चाहता हूँ न गैर प्राकृतिक मौत मरना चाहता हूँ. ”
डॉक्टर ने उसे बहुत समझाया परंतु उसने चिकित्सक एक न मानी. उसने किसी को नहीं बताया कि उसके मस्तिष्‍क में एक टीोमर है और टीोमर की वजह से प्रकोप  में लगे है. और संभव है वह टीोमर एक दिन उसकी जानले ले. ज़ाहिर सी बात थी वह परिवार या दोस्तों को अपनी बीमारी के बारे में बताता तो वह उसकी जान बचाने के लिए उसे जीवित देखने के लिए पर ऑपरेशन के लिए जोर डालते. और ऑपरेशन का परिणाम क्या हो सकता है उसे पता था.
इसलिए उसने अपनी भलाई इसी में समझी कि अपने रोग के बारे में किसी को न बताया जाए. और इस तरह हर तरह के दबाव से मुक्त रहकर कुछ दिनों की ही सही परंतु बाकी बची ज़िंदगी तो वह चैन से बैठ पाए. इसकेके बाद उसके साथ वही होता रहा जो पहले होता आ रहा था. कभी कभी दर्द की तीव्रता इतनी बढ़ जाती कि वह दीवारों से अपना सिर टकराकर लहोलहान कर लेता था. कभी कभी यात्रा स्थिति में उसके हाथों से ऐसे काम दाखिल हो जाते थे जिनके नुकसान की भरपाई वह महीनों तक नहीं कर पाता था. उसे ऑफिस से कई मीमो मिल चुके थे. क्योंकि वे यात्रा के रूप में कार्यालय के कई जरूरी कागजात फाड़ चुका था.
एक बार उसके बॉस ने उसके दौरों से विनंती  आकर उसे मीमो दे दिया कि वह पंद्रह दिन के भीतर अपना मेडिकल सर्टिफिकेट पेश करे अन्यथा उसे नौकरी से हटा दिया जाएगा. नौकरी से हटा के विचार से ही वह काँप उठा. अगर उसे नौकरी से निकाल दिया गया तो वह क्या करेगा, कौन उसे नौकरी देगा, ऐसी हालत में क्या वह कोई दूसरा काम कर पाएगा, उसके घर वालों और पत्नी बच्चों का गुजर कैसे होगा. बरसने उसे अपनी नौकरी बचाने केएक डॉक्टर को रिश्वत देकर अपनी फटनीस का झूठा प्रमाणपत्र प्राप्त करना पड़ा. तब से वह बहुत डरता था. और रात दिन भगवान से प्रार्थना करता था कि कम से कम अपने कार्यालय में यात्रा न पड़े. यदि पड़े भी तो उसके हाथों कोई ऐसा न हो जिससे उसकी नौकरी पर आंच आए. परंतु यह उसके बस में कहाँ था. अगर यही बात उसके बस में होता तो उसके लिए कोई समस्या ही नहीं था.
कई बार ऐसा हुआ कि दौरे की स्थिति में भटक वह पता नहीं कहा से कहां पहुंच गया या सवारी से टकरा कर सख्त घायल हो गया. दौरे की स्थिति में उसका सामान कहाँ गिर गया या किसी ने चुरा लिया? उसे पता नहीं हो सका. वह घर से निकलता तो उसे लगता अब उसके सिर का टीोमर फट जाएगा और अब उसकी मौत हो जाएगी. उसकी लाश ला वारिस लाश की तरह सड़क पर भी गोर और कफ़न पड़ी रहेगी . घर वालों को उसकी मौत की खबर भी नहीं मिल पाएगी.
ऑफिस में होता तो काम करते करते बार बार उसे लगता कि उसका टीोमर अब फट पड़ेगा और उसके जीवन का अंत हो जाएगा. रात में जब वह सोने के लिए लेटा तो हर रात उसे लगता यह उसके जीवन की अंतिमरात है. रात के किसी पहर उसके सिर का टीोमर फट जाएगा और सवेरे घर वालों को बिस्तर पर उसकी लाश मिलेगी.
पता नहीं उसके जीवन एक पल भी बाकी है या फिर उसे प्रकोप  में अभी वर्षों जीना है. वह तरशनको बनकर जीवन और मौत के बीच लटका हुआ था. न उसे जीवन अपने मोह से मुक्त कृपा रही थी और न मौत उसे गलेलगा रही थी. वह बोझल क़दमों से रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ रहा था अचानक सिर में हल्का हल्का दर्द होने लगा. इसकी तीव्रता बढ़ती जा रही थी. उसके हृदय की धडकनें तेज हो गईं. फिर …… दर्द …… फिर यात्रा. ओह गॉड!. वह घर वापस पहुंच पाएगा भी या नहीं?
और सिर पकड़ करवह एक जगह बैठ गया.
 
अप्रकाशित
मौलिक
————————समाप्‍त——————————–पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
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Hindi Short Story Devta By M.Mubin

कहानी       देवता   लेखक  एम मुबीन   
डॉक्टर ऑपरेशन रूम से निकलते ही चारों ओर से लोगों ने उसे घेर लिया.
डाक्टर साहब! मामा की हालत अब कैसी है?” विश्वास गाईकोाड़ ने पूछा.
डाक्टर साहब! मामा जीवन तो अब कोई ख़तरा नहीं है?” अरुण शनदे ने पूछा.
डाक्टर साहब मामा जल्दी अच्छे हो जायेंगे ना? जल्दी बताइए मेरा दिल बहुत घबरा रहा है.” शंकर पाटिल ने बेचैनी से पूछा.
डाक्टर साहब! मामा यहां अच्छे हो जायेंगे ना?” गोपीनाथ महस्क्र ने पूछा. “उन्हें कहीं और ले जाने की तो जरूरत नहीं आएगी? अगर जरूरत हो तो बता दीजिए हमने उन्हें कहीं और ले जाने की व्यवस्था भी कर लिए हैं. ”
डाक्टर साहब बाहर से यदि दवाएं मंगोाने की जरूरत पड़ी तो बे झिझक कह दीजिए. मामा के लिए हम महंगी से महंगी दवाएं लाने के लिए तैयार हैं.” प्रकाश जाधव बोला.
डॉक्टर घबरा गया. उसे उस समय कम से कम बीस पच्चीस लोगों ने घेर रखा था और उसे पता था उस समय अस्पताल के कंपाउंड में कम से कम सौ सवा सौ लोग मामा की तबियत के बारे में जानने के लिए बेचैन हैं.
वे पीड़ा  जवार के गांवों से आए हुए थे. कोई नगर सिविल से आया था तो कोई अंदर सिविल कोई लहीत से कोई ग्राहक से तो कोई राजा जयपुर से. उनमें से बहुत से लोग एक दूसरे से ननवा थे तो बहुत से लोग एक दूसरे से पहली बार मिल रहे थे.
वे सभी व्यक्ति एक ही उद्देश्य के लिए इकट्ठा हुए थे. वह सब मामा की स्थिति के बारे में पता लगाने वहाँ आए थे और उसी के लिए बेचैन थे. उनमें बहुत से लोग ऐसे थे जिन्होंने मामा को लाकर अस्पताल में भर्ती किया था.
जैसे मामा पर कातिलाना हमले की खबर फैल रही थी और यह मालूम हो रहा था मामा को इलाज के लिए शहर के अस्पताल में भर्ती किया गया है, लोग जूक दर जूक मामा को देखने के लिए आ रहे थे.
जब वह लोग घायल मामा को लेकर सरकारी अस्पताल जा रहे थे तो रास्ते में जो भी मिलता वहां जैसे ही यह खबर मिलती कि मामा पर कातिलाना हमला हुआ है और वह बुरी तरह घायल हुए हैं और उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा है. इस गाँव कई लोग आकर उनके साथ हो जाते जो मामा को अस्पताल ले जा रहे थे.
जब मामा को अस्पताल में भर्ती कराया गया उस समय पचास के समीप  लोग अस्पताल में जमा थे. फिर जैसे जैसे यह खबर आसपास के गांवों में फैल गई चारों ओर से लोग मामा की स्थिति का पता लगाने और उसे देखने के लिए अस्पताल में आने लगे .
जब मामा को अस्पताल में भर्ती कराया गया मामा बेहोश था. उसके सारे कपड़े खून से लथपथ थे. जो लोग मामा को सहारा देकर लाए थे उनके कपड़ों पर भी जगह जगह खून लगा हुआ था.
डॉक्टर ने मामा के घाव का मुआयना किया. घाव पीछे था. पूरे डेढ़ फुट लंबा घाव था और लगभग एक इंच गहरा. कहीं कहीं तो गहराई दो इंच हो गई थी. कहीं कहीं हड्डी दिखाई दे रही थी. तलवार का वार था. इसलिए एक दो जगह की हड्डी भी प्रभावित हुई थी. डॉक्टर ने तुरंत मामा को ऑपरेशन वार्ड में ले जाने के लिए कहा.
घाव बहुत बड़ा और गहरा है टांके लगाने परें है. इसके अलावा खून बहुत बह गया है. खून की भी आवश्यकता पड़ेगी.”
डाक्टर साहब! मेरा खून ले लीजिए.”
डाक्टर साहब! मेरा खून ले लीजिए.” तीन चार आवाज़ें एक साथ ाभरें.
ठीक है हम पहले खून टेस्ट करते हैं. इस के बाद खून की जरूरत महसूस हुई उसका खून ले लेंगे.”
लोगों और मामा का खून टेस्ट किया गया. 10. 12 लोगों का खून मामा के खून से मेल खाता था.
जे देव पाटिल, मानक शनदे, आना पवार और विक्रम खेरनार के शरीर से एक एक बोतल खून निकाला गया.
दो बोतल खून चढ़ाने के बाद मामा के शरीर में हल्की सी हरकत हुई. डॉक्टर और नर्सों के चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई.
जो खून बह गया था खून ने उसकी कमी पूरी कर दी है. रोगी को बहुत जल्दी होश आ जाएगा. उसे जनरल वार्ड में शिफ़्ट कर दिया जाए.” डॉक्टर ने नर्सों से कहा और वार्ड से बाहर निकला तो लोगों ने उसे घेर लिया.
देखिए मैं ने मामा का घाव सी है. दो बोतल खून भी चढ़ाया गया है. जरूरत पड़ी तो और दो बोतल खून चढ़ा दिया जाएगा. अब मामा खतरे से बाहर हैं. घबराने की कोई बात नहीं. एक दो घंटे में शायद उसे होश आ जाएगा. परंतु होश में आने के बाद आराम की वजह से हम उसे नींद का इंजेक्शन देकर सलादें है. आप लोग रोगी के कमरे में या पलंग के पास भीड़ लगाएँ. रोगी को देखने के लिए हम हैं. चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. आप मामा को देख कर अपने अपने घर चले जाइए.
डॉक्टर इतना कहकर आगे बढ़ गया और लोग मामा के बाहर आने का इंतजार करने लगे. कुछ लोगों ने मामा क रिश्तेदारों को घेर लिया.
भाबी! हम न कहते थे कि तुम मत घब्रािए. मामा को कुछ नहीं होगा. अब तो आपने अपने कानों से सुन लिया है कि मामा खतरे से बाहर है. अब यह रोना धोना छोड़िए और अपनी स्थिति को संभाला. आपके रोने से बच्चे भी रोने लगते हैं. कुछ मामा की पत्नी को समझाने लगे तो कुछ मामा के बच्चों को.
अरे फरत (ताज़ग़ी ) क्यों रो रहा है? तेरे अब्बा को कुछ नहीं होगा. वह बिल्कुल ठीक है. थोड़ी देर में हम सबसे बातें करेंगे. तू तो बड़ा है, समझदार है तो रोयेगा तो फिर तेरी माँ, भाई, बहनों और तेरे दादा दादी को कौन समझाए है. तो स्‍वंय  को संभाल. किसी तरह की कोई चिंता न हम तेरे साथ हैं. ”
कुछ मामा के माता पिता को समझाने लगे.
सब कुछ ठीक हो जाएगा. मामा को कुछ नहीं होगा. उनकी जान बचाने के लिए हम अपनी जान की बाजी लगा देंगे.”
मेरे मासूम बच्चे को मार कर उन लोगों को क्या मिला.” उनकी बातें सुनकर मामा के पिता बोले. “वह तो किसी की छेड़छाड़ नहीं रहता था. सवेरे भूखा पियासह घर से निकल कर गांव, देहात की धूल छान कर अपने बाल बच्चों और हमारे लिए दो वक़्त की रोटी की व्यवस्था करता था. उन्हें मार उन्हें क्या मिला. वह तो न कोई धार्मिक नेता था और न ही कोई राजनीतिक नेता था फिर उन्होंने मेरे बच्चे की जान लेने की कोशिश क्यों की? ”
अब्बा! कुछ लोग सर फिरे हैं और दीवानगी के लिए वह मानव मूल्यों और रिश्तों को भूल जाते हैं उन पर तो केवल अपने पंथ के विचारों का जुनून तारी रहता है. जिन लोगों ने मामा पर हमला किया वे भी इसी समूह से जुड़े थे. “सबसे मामा के पिता को समझाने लगे.
किसी ने भी सोचा नहीं था कि आज जब मामा उनके गाँव से जाएगा तो उस पर इस तरह का जानलेवा हमला होगा और उसकी जान लेने की कोशिश की जाएगी. आज भी वह सामान्य रूप से गांव आया था. जिस तरह पिछले सालों से आ रहा था.
अपनी साइकिल पर आगे बड़ा सा पिटारी लटकाए हर किसी को सलाम करता उनसे उनकी खैरियत दरयाफ्त करता अपने विशेष ठिकानों पर गया था. उसे पूरे पलकह के गांवों में किस किस घर में मरगयाँ हैं यह पता था. उसने प्रतिदिन  कुछ विशेष गांवों का निशाना बांध लिया था. वह उस दिन इन विशिष्ट गांवों के उन घरों और खेतों में जाता था जहां मरगयाँ थीं. इस घर के मालिकों भी उस दिन मामा का इंतजार करते थे.
सप्ताह भर उनकी मरगयाँ जो अंडे देती थीं वह अंडे वह जमा करते थे और मामा को बेच देते थे. दिन भर मामा इन गांवों से अंडे बटोरता और शाम को शहर आकर मुर्गी अंडे के व्यापार को बेच देता था जो अंडों को मुंबई जैसे बड़े शहरों में बेचता था.
गर्मी के दिनों में अंडे गर्मी से जल्द खराब हो जाते हैं. गर्मी के दिनों में वह अपने विशेष गांवों में सप्ताह में दो बार जाता था. ताकि अंडे खराब न हूं. अपनी टूटी फूटी पुरानी साइकिल पर वह प्रतिदिन तीस चालीस किलोमीटर का सफर तय करता था.
इससे गांव का बच्चा बच्चा परिचित था तो वह भी हर गांव के हर व्यक्ति को जानता था और उन लोगों के घरों के हालात भी जानता था. कभी कभी तो उसे उन लोगों के घरेलू झगड़ों में न्यायाधीश का कर्तव्य भी अदा करना परता था. इस ने गांवों के सैकड़ों झगड़े नपटाए थे. इसके उचित निर्णय पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होता था. हर कोई बड़े सम्मान से फैसलों को स्वीकार कर लेता था. न केवल फ़र्क बल्कि विवाह  ब्याह के मामलों में भी मामा प्रमुख भूमिका निभाता था .
अगर किसी के घर पलकह में कहीं से रिश्ता आता तो वह मामा से इस घर के बारे में जरूर पूछता जहां से रिश्ता आया है. या घर और लड़के के बारे में जानकारी निकालने की जिम्मेदारी मामा पर डाल देता था.
मामा अपनी जिम्मेदारी को बड़ी खुश ढंग से निभाता था. और इतनी जानकारी निष्पादन पहुंचा देता था कि रिश्ते के बारे में फैसला करने में व्यक्ति को कोई दिक्कत पेश नहीं आती थी. कभी कभी उस व्यक्ति का फैसला नकारात्मक होता और मामा को लगता कि वह व्यक्ति निर्णय लेने में कहीं ग़लती कर रहा है तो मामा उसे टोक कर अपना फैसला बता देता था और फिर वही होता था जो मामा का फैसला होता था.
कई बड़े घराने अपनी लड़कियों के संबंध की जिम्मेदारी मामा पर डालते थे. और मामा इस तरह जिम्मेदारी निभाते हुए पिछले 25. 30 वर्षों में हजारों शादियां करवा चुका था.
गांवों की हर विवाह  ब्याह में मामा कर भाग चाहिए थी. लड़के की विवाह  हो या लड़की की. मामा को वही सम्मान दिया जाता था, जो लड़के के पिता को दी जाती थी. हर विवाह  में मामा को ापरना (एक तरह का रूमाल) ज़रूर दिया जाता था. दीवाली दसहरह या होली पर हर घर में मामा को उपस्थिति देनी पड़ती थी. जिस घर वह किसी मजबूरी की वजह से नहीं जा पाता था घर के मैक्केन को शिकायत होती थी बल्कि मामा का हिस्सा सप्ताह तक संभाल कर रखा जाता था. बल्कि कुछ मामलों में तो मामा का हिस्सा उसके घर पहुंचा दिया जाता था.
ईद बकर ईद शब बरात के मौके पर मामा के घर में ग्रामीणों का मेला लगा रहता था. इन तीवहारों के आने से पहले मामा सभी गांवों में आम निमंत्रण दे आता था. और शेर सुरमह पीने और हलवह खाने के लिए लोग जूक दर जूक उसके घर आते थे. हर रात दो तीन गांवों की स्थापना मामा के घर का सामान्य था. जो लोग किसी काम से शहर आते थे और किसी वजह से उनकी अंतिम बस छूट जाती थी या वापस गांव जाने के लिए उनके पास कोई साधन नहीं होता था. वह मामा के घर चले जाते थे. मामा के घर में एक विशेष कक्ष अतिथि था. वहाँ इस तरह के लोगों के लिए सोने का विशेष प्रबंध रहता था. रात को वह मामा के मेहमान खाने में आराम करते और सवेरे चाय और हल्का नाश्ता कर वापस अपने घर चले जाते थे.
मामा ने जब अपनी बड़ी बेटी की विवाह  की थी तो उसके घर विवाह  में ग्रामीणों की भीड़ सबसे अधिक थी. मामा ने उनके लिए खाने का अलग व्यवस्था की है. वे अपने साथ इतने उपहार लाए थे कि बेटी के दहेज में एक एक वस्‍तु  दो दो तीन तीन देने के बाद भी बहुत सी बच गई थी.
किसी सप्ताह मामा अगर गांव नहीं आता तो सारे गाँव में हलचल मच जाती थी. “मामा इस सप्ताह नहीं आया, क्या बात है? जाकर पता लगाना.”
जो भी इस गाँव से दूसरे दिन शहर जाने वाला होता था उसे यह जिम्मेदारी सौंपी जाती थी और वह वापस आकर सारे गाँव को इस बारे में बताता था.
मामा बीमार है.”
मामा एक रिश्तेदार की विवाह  में अन्य शहर है.”
भक्ति मामा में कोट कोट कर भरी हुई थी. जिस जगह नमाज़ का समय हो जाता कहीं से पानी मांग कर वुज़ू बनाकर वहीं नमाज़ के लिए खड़ा हो जाता था. बल्कि कुछ घरों के लोगों ने तो मामा की नमाज़ के लिए व्यवस्था कर रखे थे.
वह गांव जहां मसजदें थीं या मुसलमान थे. गांवों की मस्जिदों में अगर पेश इमाम नहीं होता था तो अस्र और ज़ोहर की नमाज़ें मामा की पेश इमामी में अदा की जाती थीं. गांवों में अगर किसी मुसलमान की मौत हो जाती तो उसकी मय्यित को स्नान देने, कफनाने और नमाज़ जनाज़ा अदा कर दफना काम मामा अंजाम देता था.
ग्रामीणों के अपने अपने काम होते हैं. खाली समय में भी चर्चा अपने विषय होते हैं. घरेलू मामलों, खेती के मामले, बैंक, ऋण झंझट के किस्से, ग्राम पंचायत, जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव आदि पर बहसें. आम दिनों क्या हो रहा था गांवों के कुछ लोगों को ही मालूम रहता है. वह भी केवल गांवों में जहां इक्का दकह अखबारों पहुँच जाते थे. या जिन लोगों के पास टीवी और रेडियो था वह समाचार सुनकर इस बारे में अन्य लोगों को बता देते थे. उन दिनों पता चला कि मुसलमानों की किसी बड़ी मस्जिद को शहीद कर दिया गया जो दरअसल राम जन्मभूमि थी. इतनी बड़ी ख़बर भी गांवों में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुआ. फिर समाचार आने लगीं कि देश के कई हिस्सों में प्रतिक्रिया में दंगे हो रहे हैं. बम्बई में खासकर बहुत प्रतिक्रिया है. अधिक वे नहीं जान सके.
इन दिनों भी मामा सामान्य रूप से आता था. कुछ लोग इस से इन मामलों पर चर्चा करते थे. मामा को जो मालूम होता मामा अपनी जानकारी के अनुसार उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश करता. उस दिन सामान्य रूप से मामा गांव आया था. और गाँव से अंडे और मरगयाँ खरीद कर दूसरे गांव की तरफ जा रहा था. अचानक एक लड़के ने आकर गांव में खबर दी.
विष्णु पुराडकर, भास्कर पाटिल, किशन जाधव, अतुल जाड़ियह ने गांव के बाहर मामा को घेर लिया है. उनके हाथों में हथियार हैं. एक के हाथ में तलवार है. वह जे श्री राम, जे भोानी और जे शिव जी के नारे लगाते हुए मामा पर हमला कर रहे हैं और मामा अपने बचाव की कोशिश कर रहा था.
यह सुनना था कि लगभग सौ के समीप  लोग मामा की मदद के लिए भागे थे. उन्होंने जाकर न केवल मामा को बचाया था, बल्कि उन लोगों को हथियारों के साथ पकड़ भी लिया था. मामा कड़ी घायल था.
तुरंत मामा को अस्पताल ले जाया गया. और उन लोगों को पुलिस स्टेशन.
उन लोगों ने इन हथियारों के साथ िबदालगनी कृपा रहमान उर्फ मामा पर कातिलाना हमला किया था. हम सब इसके गवाह हैं उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर उनके विरूध  सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए.” दस बारह लोगों ने पुलिस स्टेशन में गवाहयाँ करें थीं.
इन सब को हिरासत में ले लिया गया. पुलिस को चेतावनी किया गया था कि अगर उन लोगों के साथ नरमी से पेश आया गया या उन्हें रिहा कर दिया गया तो उसके विरूध  आंदोलन जाएगी. हमलावरों के पक्ष में बोलने केलिए लोगों की पार्टी के लोग ही आए थे परंतु उनके विरूध  बोलने के लिए चारों ओर से लोग आए थे. हमलावरों को पुलिस के हवाले करने के बाद मजमा अस्पताल में इकट्ठा जहां मामा का उपचार किया जा रहा था.
मामा को आवश्यक खून देने के लिए कतारें लगी हुई थीं. चारों ओर से अस्पताल के डॉक्टरों और नर्सों पर दबाव डाला जा रहा था कि मामा का अच्छी तरह इलाज करें. उसके इलाज में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए. अगर उसका इलाज नहीं हो सकता तो वह कह दें हम मामा के जिले के सरकारी अस्पताल ले जाएंगे. या बड़े से बड़े निजी अस्पताल ले जाएंगे. परंतु डॉक्टरों द्वारा उन लोगों को संतोष दिलाया जा चुका था कि मामा का इलाज यहां हो जाएगा. चिंता करने की और घबराने की कोई बात नहीं है.
मामा को ऑपरेशन थिएटर से लाकर वार्ड में रख दिया गया. वह बेहोश था. उसके चारों ओर भीड़ थी. डॉक्टर आदि लोगों को मामा के पास से हट जाने के लिए और वार्ड से बाहर जाने के लिए बार बार अपील कर रहे थे परंतु मामा को देखना चाहते थे.
दो घंटे बाद मामा ने आंख खोली. अपने चारों ओर देखा. अपने आसपास खड़े चेहरों को पहचाना. एक ननवा सी मुस्कान उसके चेहरे पर उभरी. और नहीफ आवाज़ में बोला.
मैं बिल्कुल ठीक हूँ. उन लोगों को पुलिस के हवाले न करना. वह नादान हैं, उन्हें नहीं मालूम वह क्या कर रहे हैं.” सबसे चुपचाप मामा को देख रहे थे. उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि पलंग पर मामा लेटा या कोई देवता.
अप्रकाशित
मौलिक
————————समाप्‍त——————————–पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918